गौर करें तो पूर्वांचल में विधानसभा की 123 सीटें है। कहते हैं यूपी हो या दिल्ली की सत्ता बिना पूर्वांचल जीते हासिल नहीं की जा सकती है। वर्ष 2014 से अब तक पूर्वांचल पर बीजेपी का एकछत्र राज देखने को मिला है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा बसपा गठबंधन के बाद भी बीजेपी का प्रदर्शन यहां अच्छा रहा लेकिन हाल के दिनों में राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदला है।
उदाहरण के तौर पर वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सुभासपा बीजेपी के साथ थी लेकिन 2019 का चुनाव वह अकेले दम पर लड़ी थी। पार्टी पूर्वांचल में खास असर नहीं छोड़ा पाई थी। अब सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने सपा से हाथ मिला लिया है और अखिलेश यादव के विजय रथ पर सवार हो गए हैं। वर्ष 2017 के विधानसभा सभा चुनाव में माफिया मुख्तार अंसारी का परिवार बसपा के साथ था अब वह साइकिल पर सवार हो चुका है। चंद्रशेखर सिंह का परिवार दो खेमों में बंटा था। नीरज शेखर सपा के साथ थे तो अब सपा एमएलसी व पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह के बड़े भाई के प्रपौत्र रविशंकर सिंह भाजपा में चले गए हैं। यानि पूरा चंद्रशेखर कुनबा बीजेपी के साथ है। इससे चुनावी समीकरण बदले हैं।
ओमप्रकाश को भरोसा है कि सपा के साथ के दम पर वे पूर्वांचल में बड़ा फेरबदल करने में सक्षम होंगे। तो बीजेपी को सुहेलदेव के नाम पर भरोसा है। पार्टी ने बहराइच में सुहेलदेव स्मारक बनाने के बाद पूर्वांचल के आजमगढ़ में विश्वविद्यालय का नाम सुहेलदेव रखकर ओमप्रकाश का काट खोजने की कोशिश की है। वहीं अब यहां असल मुद्दा बन चुका है पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे। पीएम मोदी ने 16 अक्टूबर को सुल्तानपुर से इसका लोकापर्ण किया लेकिन उससे पहले सपा कार्यकर्ताओं ने अखिलेश के निर्देश पर आजमगढ़ से गाजीपुर तक जगह-जगह एक्सप्रेस-वे का फीता काटा।
अब अखिलेश यादव की विजय यात्रा में भी एक एक ही बात दिख रही है पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे। अखिलेश यादव बार बार यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि पूर्वांचल एक्सप्रेस उनकी सोच का परिणाम है। उन्होंने अपने विजयरथ के चौथे चरण का शुभांरभ इसी एक्सप्रेस-वे से किए और 341 किमी लखनऊ तक अपने विजय रथ को दौड़ाए। इस दौरान वह सात बार वह पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का नाम लिए। उन्होंने इसे सपा की सोच देन बताने का पूरा प्रयास किया। एक्सप्रेस-वे की गुणवत्ता पर सवाल भी उठाए, लेकिन कई फायदे भी गिनाए। सीएम का पूरा संबोधन सिर्फ इसी एक्सप्रेस-वे पर केंद्रित रहा। यहीं नहीं सपा में पूर्व मंत्री और विधायक यहां तक दावा कर रहे हैं कि सत्ता में आते ही पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का नाम बदल देंगे लेकिन आम आदमी की समस्या और उनके मुद्दों की बात एक बार भी नहीं की।
इससे पहले गृहमंत्री और मुख्यमंत्री भी आजमगढ़ दौरे पर माफिया, आतंकवाद, विश्वविद्यालय और एक्सप्रेस-वे तक सीमित रहे। ऐसे में आम आदमी के मन में यह सवाल उठना लाजमी है कि स्थानीय मुद्दों पर चर्चा कब होगी। राजनीति के जानकार रामजीत सिंह कहते हैं कि पूर्वांचल का सबसे बड़ा मुद्दा है रोजगार। यहां औद्योगिक इकाइयों का आभाव है। महंगाई जिससे समाज का हर तबका परेशान है लेकिन इसपर बात करने के लिए कोई तैयार नहीं है।