विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के चुनाव जीतने पर पूरी दुनिया चकित है। बता दें कि इन चुनावों के निष्पक्ष नहीं होने का दावा पूरी दुनिया कर रही थी।यहां तक कि मोहम्मद सोलिह भी चुनाव निष्पक्ष नहीं होने की बात कर रहे थे। चुनाव जीतने के बाद भी उन्होंने कहा कि चुनावों में व्यापक धांधली हुई है अन्यथा जीत का अंतर और भी बड़ा होता। अब मोहम्मद सोलिह की जीत के बाद पूरी दुनिया मालदीव में शासन व्यवस्था और मानवाधिकारों के फिर से बेहतर होने की उम्मीद कर रही है।
मालदीव चुनावों के नतीजों से भारत और मालदीव के एक दूसरे के करीब आने की संभावना जताई जा रही है। माना जा रहा है कि फिर से दोनों देशों के बीच फिर से बेहतर द्विपक्षीय संबंध स्थापित हो सकेंगे। बता दें कि भारत वह पहला देश था जिसने मालदीव चुनाव में विजय मिलने पर मोहम्मद सोलिह को बधाई दी थी। कूटनीति के जानकरों के अनुसार मोहम्मद सोलिह को बधाई देकर भारत ने एक तरह से चीन को कड़ा संदेश देने की कोशिश की है। यह साफ़ संदेश था कि अब्दुल्ला यामीन की आड़ में अपने प्रभाव का विस्तार कर रहे चीन के दिन अब लद गए हैं।पिछले वर्ष यामीन ने भारत के प्रति बेहद तल्ख रवैया दिखाया था। उनकी चीन को समर्थन देने की नीति समूचे क्षेत्र की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन गई थी। यामीन सरकार ने चीन के साथ एक के बाद एक समझौते कर हिंद महासागर में भारत के लिए चिंता की कई वजहें पैदा कर दीं थी।
माना जा रहा है कि भारत और मालदीव के बीच रिश्ते फिर से वैसे हो सकेंगे जैसे पूर्व राष्ट्रपति नशीद के समय थे। विपक्ष को समर्थन देने के लिए पूर्व राष्ट्रपति नशीद ने भारत का शुक्रिया अदा किया। भारत में मालदीव के राजदूत अहमद मोहम्मद ने इन चुनावों पर टिप्पड़ी करते कहा कि कहा, ‘इतिहास ने साबित किया है कि बहुत सी चीजों के लिए हम एक-दूसरे पर आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन हम लोकतंत्र में यकीन करते हैं। भारत और मालदीव एक दूसरे के पुराने सहयोगी रहे हैं। मैं उम्मीद करता हूँ कि दोनों देश अपने संबंधों को नई सरकार के अंतर्गत आगे बढ़ाएंगे।’
चीन परस्त अब्दुल्ला यामीन की हार भारत और मालदीव के कूटनीतिक संबंधों में सुधार का अवसर है। विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की विजय चीन के लिए बेहतर संकेत नहीं है। यह भी संभव है कि चीन के कर्ज के बोझ तले दबे मालदीव की नई सरकार सभी पुराने प्रॉजेक्ट्स की ऑडिट भी करा सकती है। हिंद महासागर में चीन की बढ़त को अब गहरा झटका लग सकता है। बात दें कि यामीन के शासन के दौरान चीन का मालदीव के रोजमर्रा के शासन में दखल काफी बढ़ गया था।