चीन का संविधान दे मान्यता
बता दें कि यह बातें आध्यात्मिक गुरु ने ग्लोबल पीस एंड हार्मनी को बढ़ावा देने में नैतिकता और संस्कृति की भूमिका विषय पर व्याख्यान देते समय बोलीं। इस कार्यक्रम का आयोजन भारत के 82 वर्षीय तिब्बती आध्यात्मिक प्रतीक के निर्वासन की 60 वीं वर्षगांठ पर किया गया था। उन्होंने आगे कहा, ‘ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से, तिब्बत स्वतंत्र है। उन्होंने कहा कि चीन ने 1950 में तिब्बत पर अपना अधिकार जमा लिया और इसे शांतिपूर्ण मुक्त बताया। दलाई लामा ने कहा कि जब चीन का संविधान हमारी संस्कृति और तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के विशेष इतिहास को मान्यता देगा तभी यह चीन में रह सकता है।’
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रोहिंग्याओं के खिलाफ जातीय हिंसा दुखद
वहीं, दलाई लामा ने म्यांमार में रोहिंग्याओं के खिलाफ जातीय हिंसा पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे दुखद और डरावना बताया। इसके अलावा उन्होंने बुरे दौर के विकास और शांति के लिए काम करने की आवश्यकता पर बल दिया। देश की शिक्षा में प्राचीन भारतीय परंपराओं को शामिल करने की बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘शैक्षिक व्यवस्था में प्राचीन भारतीय परंपराओं को शामिल करने के तरीकों पर चर्चा शुरू होनी चाहिए।’
विश्व स्तर पर पहुंचे भारती परंपरा
दलाई लांमा ने कहा कि भारत में आधुनिक शिक्षाओं के साथ प्राचीन शिक्षा को जोड़ने की जरूरत है ताकि समस्याओं को हल करने में मदद मिल सके। इससे भारत की ओर से आतंक और ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ लड़ने में मदद मिलेगी। साथ ही उन्होंने विश्व स्तर पर भारतीय परंपराओं को फैलाने के प्रयासों की बात कही।
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भारतीयों द्वारा ‘इंडिया टाउन’ क्यों नहीं?
उन्होंने कहा, ‘प्राचीन भारतीय परंपराओं को पुनर्जीवित करने का प्रयास करें। दलाई लांमा ने कहा कि किसी भी चीज में वास्तविक परिवर्तन प्रार्थना या मांगने से नहीं आता है, कुछ करने से आता है। उन्होंने कहा कि जहां भी चीनी जाते हैं, उनके पास ‘चीन टाउन’ है। भारतीयों द्वारा ‘इंडिया टाउन’ क्यों नहीं?