न्यायमूर्ति मंजूर अहमद और न्यायमूर्ति सरदार तारिक मसूद समेत दो सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट खंडपीठ ने हाफिज सईद को राहत देते हुए यह फैसला सुनाया। लाहौर उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ संघीय सरकार की अपील को खारिज करते हुए पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात के कोई ठोस सबूत नहीं हैं कि सईद की जमात उद दावा अथवा फलाही इंसानियत फाउंडेशन ने चंदे में मिले पैसे का दुरुपयोग आतंकी कार्रवाई के लिए किया। अपनी जीत पर प्रतिक्रिया देते हुए सईद ने कहा “हम सर्वशक्तिमान अल्लाह के आभारी हैं कि उसने जमात उत दावा को जीत दी, जो निःस्वार्थ भाव से मानवता की सेवा कर रहा है।”
आतंकी नेटवर्क की आड़ में जमात समाज सेवा का ढोंग करता है। पाकिस्तान में जमात उद दावा के तथाकथित सोशल वेलफेयर नेटवर्क में 300 मदरसे और स्कूल, अस्पताल, एक प्रकाशन घर और सैकड़ों एम्बुलेंस सेवाएं शामिल हैं। पाकिस्तान में आतंकवाद विरोधी अधिकारियों के मुताबिक हाफिज के पास 50,000 स्वयंसेवक और सैकड़ों कर्मचारी हैं जिन्हें बाकायदा भुगतान किया जाता है।
पहले पाकिस्तान सरकार ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रतिबंध सूची में आने के बाद जमात और उसके अन्य आनुषंगिक संगठनों को दान देने के लिए कंपनियों और व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। बता दें कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सूची में अल-कायदा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, लश्कर-ए-झांगवी, जुद, एफआईएफ, लश्कर-ए-तैयबा और अन्य आतंकवादी संगठनों के नाम शामिल हैं। जानकारों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पाकिस्तान सरकार के पास अधिक विकल्प बचे नहीं है। फिर भी कहा जा रहा कि पाकिस्तान सरकार इस फैसले के खिलाफ पुर्नविचार याचिका जरूर दायर करेगी क्योंकि उसे दुनिया के सामने दिखाना होगा कि वह आतंक के खिलाफ लड़ाई को लेकर गंभीर है।