क्या है समझौता
दरअसल, चीन को ब्रह्मपुत्र, सतलुज नदी के जल प्रवाह संबंधी जानकारी भारत के साथ साझा करनी होती है। एक समझौते के तहत दोनों ही देशों के बीच संबंध में ऐसा एक तंत्र विकसित हुआ है। एक्सपर्ट स्तर के इस तंत्र की आखिरी बैठक 2016 में हुई थी। समझौते के मुताबिक नदियों का हाइड्रोलॉजिकल डाटा 15 मई से 15 अक्टूबर के बीच नियमित रूप से साझा करना होता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार का कहना है कि इस साल मई से अभी चीन की ओर से कोई आंकड़ा प्रस्तुत नहीं किया गया है। उन्होंने यह बात असम समेत पूर्वोत्तर की बाढ़ के संबंध में पूछे गए एक सवाल पर कही। इस बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या चीन की ओर से डाटा शेयर न होने से बाढ़ से निपटने की तैयारियों पर कोई असर पड़ा है। इस पर विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि इस क्षेत्र में बाढ़ पहले भी आती रही है। हालांकि चीन द्वारा डाटा शेयर न करने की ठोस वजह अभी तक पता नहीं चल सकी है। प्रवक्ता का कहना है कि कई बार तकनीकी वजहों से भी डाटा नहीं भेजा जाता।
डोकलाम की वजह से तनातनी
दरअसल, विदेशी मामलों के कुछ जानकार इस विवाद को डोकलाम विवाद से जोड़कर देख रहे हैं। 16 जून को डोकलाम में भारत और चीन के बीच शुरू हुए तनाव आक्रमक रूप लेता जा रहा है। इसको लेकर जहां चीन की ओर से आए दिन नई-नई धमकी ओर चेतावनी मिल रही हैं, वहीं भारत ने इस विवाद को कूटनीतिक और शांतिपूर्ण ढ़ंग से निपटाने की पैरवी की है। यही वजह है कि जल प्रवाह के आंकड़े साझा नहीं करने पर भी सवाल उठ रहे हैं।