झिरिया माईंस को कोर्ट से राहत: हाईकोर्ट के आदेश में सिविल कोर्ट कोतमा ने झिरिया भूमिगत खदान का खोला ताला, द्वितीय पाली से उत्पादन हुआ आरम्भ
अनूपपुरPublished: Feb 21, 2019 09:00:16 pm
झिरिया माईंस को कोर्ट से राहत: हाईकोर्ट के आदेश में सिविल कोर्ट कोतमा ने झिरिया भूमिगत खदान का खोला ताला, द्वितीय पाली से उत्पादन हुआ आरम्भ
झिरिया माईंस को कोर्ट से राहत: हाईकोर्ट के आदेश में सिविल कोर्ट कोतमा ने झिरिया भूमिगत खदान का खोला ताला, द्वितीय पाली से उत्पादन हुआ आरम्भ
कॉलरी प्रशासन ने आसपास के खदान भेजे गए अधिकारी-कर्मचारियों को वापस भेजने दिया निर्देश
अनूपपुर। सप्ताहभर बाद हाईकोर्ट के आदेश में सिविल कोर्ट कोतमा ने एसईसीएल अंतर्गत हसदेव के आरओ उपक्षेत्राधीन रामनगर झिरिया भूमिगत खदान के सील हुए कार्यालय को खोल दिया। कोर्ट ने यह कार्रवाई गुरूवार की दोपहर की है। हालंाकि कोर्ट ने फिलहाल बत्ती घर और खदान प्रवेश द्वार को ही खोला है, उपक्षेत्रीय प्रबंधक कार्यालय के ताला अब भी बंद हैं। कॉलरी प्रशासन ने झिरिया खदान के बंद होने के बाद आसपास शिफ्ट किए गए लगभग ७७० अधिकारियों और कर्मचारियों को सम्बंधित खदान प्रबंधकों से वापस भेजने के निर्देश दिए हैं। सम्भावना है कि कॉलरी प्रबंधन द्वितीय पाली से कोल उत्पादन की प्रक्रिया आरम्भ करेगी। उपक्षेत्रीय प्रबंधक झिरिया माईंस रामनगर आरके शर्मा ने बताया कि कोर्ट में कॉलरी द्वारा लगाई गई याचिका के बाद हाईकोर्ट ने खदान में पानी भरने से आग लगने की सम्भावनाओं एवं खदान के नुकसान को देखते हुए दोबारा खदान संचालित करने का आदेश दिया है। हमने सभी कर्मचारियों को वापस खदान पर बुलाया है, अब कोल उत्पादन का कार्य आरम्भ किया जाएगा। आरके शर्मा ने बताया कि कोर्ट के आदेश में मुख्य कार्यालय द्वारा मजदूरों को नौकरी देने की प्रक्रिया अपनाएगी। दरअसल १३ फरवरी को सिविल कोर्ट कोतमा ने सुको के आदेश में सील करने की कार्रवाई की थी। यह कार्रवाई वाटर कैरियर से जुड़े श्रमिकों द्वारा वर्ष १९९४ में कार्य से बाहर निकाले जाने तथा भुगतान नहीं किए के सम्बंध में हुई थी। श्रमिकों ने जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर करने के उपरांत सुप्रीमकोर्ट में भी याचिका दायर की थी। याचिका में बताया गया था कि 1 जुलाई 1982 से रामनगर ब्लॉक नंबर ०१ में मंगल सिंह एवं अन्य 25 लोगों द्वारा वाटर कैरियर (पानी भरने) का कार्य किया जाता था। इसमें उनका पेमेंट कॉलरी के द्वारा काउंटर पेमेंट द्वारा किया जाता था। लेकिन यह कार्य रामनगर उपक्षेत्र एसईसीएल द्वारा बंद करा दिया गया। जबकि १९८२ से पूर्व वाटर कैरियर में कार्यरत रहे कर्मचारियों को1982 में परमानेंट कर दिया गया था। उनके स्थान पर आए 26 मजदूरों को १९९४ में बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इस प्रकरण में २७ जनवरी २०११ को कोर्ट ने 26 मजदूरों को ‘ए’ कैटेगरी का पेमेंट देने फैसला सुनाया था। बावजूद कालरी प्रबंधन ने सात सालों तक कोर्ट के आदेश को दरकिनार रखा हुआ था। जिसपर पुन: याचिका लगाने पर कोर्ट ने पूर्व दिए गए निर्देशों के आलोक में प्रकरण में डिग्री अनुसार पालन नहीं किए जाने पर कॉलरी को ही सील करने के आदेश जारी किए दिया था। खदान सील होने के कारण कोल कंपनी को रोजाना ७०० टन कोयला का उत्खनन बंद हो गया था।