RUSSIA : सत्ता विस्तार के पीछे ये है व्लादिमीर पुतिन की मंशा

-अब 83 वर्ष की उम्र तक रूस पर राज करेंगे पुतिन (Putin will rule Russia by the age of 83)-स्टालिन ने 31 तो पीटर द ग्रेट ने 43 वर्ष तक सोवियत रूस पर किया था शासन (Stalin ruled 31 then Peter the Great ruled Soviet Russia for 43 years)

<p>RUSSIA : राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन</p>
मास्को.
दो दशक से रूस की सत्ता पर काबिज राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को पछाडक़र सत्ता के नए द्वार पर खड़े हैं। संविधान संसोधन (Constitutional amendment) को लेकर इसी हफ्ते हुए मतदान के बाद वे मौजूदा कार्यकाल (2024 तक) के बाद 12 वर्षों तक और देश के राष्ट्रपति रहेंगे। यदि वे 2036तक क्रेमलिन में रहे तो सोवियत संघ के नेता जोसेफ स्टालिन (31 वर्ष) के कार्यकाल को पार कर लेंगे। रूस के इतिहास में 43 वर्ष तक सबसे लंबा शासन पीटर द ग्रेट ने किया था। जिसने 1682 से 1725 में मृत्यु होने तक शासन किया।1999 में पहली बार प्रधानमंत्री बने पुतिन तब 43 वर्ष के थे और 2036 में 83 वर्ष के हो जाएंगे। पुतिन के करीब चेचन नेता रमजान कादिरोव ने कहा है कि आज पुतिन जैसा राजनीतिक नेता दुनिया में और कोई नहीं है। पुतिन अभी भी ज्यादातर रूसियों की पसंद है।
संविधान बदलने के पीछे ये है पुतिन की मंशा

क्रीनिया विवाद को कानूनी हल देना चाहते हैं
वाशिंगटन पोस्ट में इसाबेल खुरसुदयान लिखती हैं, पुतिन को अपने सत्ता विस्तार को लेकर राष्ट्रव्यापी चुनाव करवाने की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि मार्च में रूस की संसद पहले ही इसकी मंजूरी दे चुकी है। दरअसल चुनाव के जरिए पुतिन इस विस्तार को वैध बनाना चाहते थे। इसके लिए पुतिन ने पहले से तैयारी कर ली थी। कोरोना प्रकोप के बावजूद 24 जून को लॉकडाउन से प्रतिबंध हटा लिए। भले ही साढ़े छह लाख से अधिक संक्रमितों के कारण वह अमरीका और ब्राजील के बाद तीसरा सबसे अधिक प्रभावित देश है। कार्नेगी मॉस्को सेंटर की तातियाना स्तानोवाया का मानना है कि चुनाव के बहाने पुतिन क्रीमिया विवाद को कानूनी हल देना चाहते हैं, जिस पर रूस ने 2014 में कब्जा कर लिया था। पुतिन भले ही लंबे समय तक रूस पर शासन करेंगे, लेकिन वे स्थिरता को छोड़ मौजूदा हालातों में मजबूती नहीं दे सकते। कई विदेशी नेता पुतिन के कार्यकाल विस्तार से चिंतित हो सकते हैं।
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इस हफ्ते एक रिपोर्ट के मुताबिक अमरीकी खुफिया अधिकारियों ने पता लगाया है कि एक रूसी सैन्य जासूसी समूह ने अफगानिस्तान में गठबंधन सेना पर हमला करने के लिए तालिबान से जुड़े आतंकियों को इनाम की पेशकश की थी। गठबंधन सेना में अमरीका के अलावा ब्रिटिश सैनिक भी हैं। हालांकि मास्को ने इन आरोपों का यह कहते हुए खंडन कर दिया कि इस तरह की बातें अमरीकी खुफिया अधिकारियों की कम बौद्धिक क्षमता को उजागर करता है, जिन्होंने अफगानिस्तान में 20 वर्ष के युद्ध के दौरान अमरीका को विफल बनाया।
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