सैन्य सरकार के कानूनों में बदलाव नहीं कर पाईं
उनकी सरकार ने पिछली सैैन्य सरकारों के कानूनों में कोई फेरबदल नहीं किया। उनके कार्यकाल में मीडिया की स्वतंत्रता को सीमित करना और राजनीतिक सहयोग का अभाव साफ दिखाई देता था। उन्होंने न तो लोकतांत्रिक विकास के लिए कुछ किया और न ही एनएलडी और सेना के अलावा किसी की बात सुनी। सारी कवायद एक ही लक्ष्य से की गई कि सत्ता का केंद्र सेना से लेकर आंग सान सू की के हाथों में दे दिया जाए, क्योंकि वे आलोचनाओं का सामना नहीं कर सकती थी, इसलिए लोकतंत्र की भी रक्षा नहीं कर पाई। इस प्रकार उन्हें अपनी गलतियों का खमियाजा भुगतना पड़ा और सेना ने गिरफ्तार कर लिया।
उनकी सरकार ने पिछली सैैन्य सरकारों के कानूनों में कोई फेरबदल नहीं किया। उनके कार्यकाल में मीडिया की स्वतंत्रता को सीमित करना और राजनीतिक सहयोग का अभाव साफ दिखाई देता था। उन्होंने न तो लोकतांत्रिक विकास के लिए कुछ किया और न ही एनएलडी और सेना के अलावा किसी की बात सुनी। सारी कवायद एक ही लक्ष्य से की गई कि सत्ता का केंद्र सेना से लेकर आंग सान सू की के हाथों में दे दिया जाए, क्योंकि वे आलोचनाओं का सामना नहीं कर सकती थी, इसलिए लोकतंत्र की भी रक्षा नहीं कर पाई। इस प्रकार उन्हें अपनी गलतियों का खमियाजा भुगतना पड़ा और सेना ने गिरफ्तार कर लिया।
विरोध प्रदर्शन भी दिशाहीन हो गया
तख्तापलट के तुरंत बाद लोग लोकतंत्र के बचाव में म्यांमार की सडक़ों पर उतर आए लेकिन जल्द ही विरोध दिशाहीन हो गया, क्योंकि उनके पास नेतृत्व नहीं था, जो उन्हें संगठित रख पाता। आज वहां एक भी सिविल सोसायटी नहीं है जो सैन्य शासन के खिलाफ संगठित रूप से आवाज उठा सके।
तख्तापलट के तुरंत बाद लोग लोकतंत्र के बचाव में म्यांमार की सडक़ों पर उतर आए लेकिन जल्द ही विरोध दिशाहीन हो गया, क्योंकि उनके पास नेतृत्व नहीं था, जो उन्हें संगठित रख पाता। आज वहां एक भी सिविल सोसायटी नहीं है जो सैन्य शासन के खिलाफ संगठित रूप से आवाज उठा सके।
अभी रिहाई की उम्मीद कम
जनता के बीच आज भी सू की लोकप्रिय हैं, लेकिन निकट भविष्य में उनकी रिहाई की कोई उम्मीद नजर नहीं आती। कागजों में उनका सियासी रुतबा फिलहाल कायम है, पर अगर वे ज्यादा समय कैद में रहीं तो जनता को कैसे प्रेरित कर पाएंगी, इसलिए म्यांमार में लोकतंत्र के आंदोलन को झटका लगना तय है।
जनता के बीच आज भी सू की लोकप्रिय हैं, लेकिन निकट भविष्य में उनकी रिहाई की कोई उम्मीद नजर नहीं आती। कागजों में उनका सियासी रुतबा फिलहाल कायम है, पर अगर वे ज्यादा समय कैद में रहीं तो जनता को कैसे प्रेरित कर पाएंगी, इसलिए म्यांमार में लोकतंत्र के आंदोलन को झटका लगना तय है।