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म्यांमार में तख्तापलट : आंग सान सू की को भारी पड़ी ये गलती

-40 वर्ष से म्यांमार में लोकतंत्र का मतलब कमोबेश आंग सान सू की ही रहीं। लेकिन अब उनका राजनीतिक कॅरियर ढलान पर है और वे अब तक अपना उत्तराधिकारी तक तैयार नहीं कर पाईं।

Feb 25, 2021 / 12:02 am

pushpesh

म्यांमार में तख्तापलट : आंग सान सू की को भारी पड़ी ये गलती

म्यांमार की लोकप्रिय नेता आंग सान सू की एक बार फिर कैद में है। लेकिन इस बार सबकुछ बदला हुआ है। अब दुनिया में सू की को लोकतंत्र की नायिका के रूप में वह दर्जा प्राप्त नहीं है, जो किसी जमाने में उन्हें हासिल था। अब उनमें पहले की तरह हालात बदलने की ताकत नहीं है। छह साल से म्यांमार में सरकार का नेतृत्व कर रही सू की लोकतंत्र और मानवाधिकार के मुद्दों पर विफल साबित हुईं। उन्होंने उन सिद्धांतों को पीछे छोड़ दिया, जिनके कारण वे लोकप्रिय हुईं थीं। रोहिंग्या मुसलमानों के प्रति सेना के बर्ताव को उचित ठहराना उनकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई। गत नवम्बर को हुए आम चुनाव में सू की की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) ने रोहिंग्या समुदाय को मताधिकार से वंचित कर दिया था।
सैन्य सरकार के कानूनों में बदलाव नहीं कर पाईं
उनकी सरकार ने पिछली सैैन्य सरकारों के कानूनों में कोई फेरबदल नहीं किया। उनके कार्यकाल में मीडिया की स्वतंत्रता को सीमित करना और राजनीतिक सहयोग का अभाव साफ दिखाई देता था। उन्होंने न तो लोकतांत्रिक विकास के लिए कुछ किया और न ही एनएलडी और सेना के अलावा किसी की बात सुनी। सारी कवायद एक ही लक्ष्य से की गई कि सत्ता का केंद्र सेना से लेकर आंग सान सू की के हाथों में दे दिया जाए, क्योंकि वे आलोचनाओं का सामना नहीं कर सकती थी, इसलिए लोकतंत्र की भी रक्षा नहीं कर पाई। इस प्रकार उन्हें अपनी गलतियों का खमियाजा भुगतना पड़ा और सेना ने गिरफ्तार कर लिया।
विरोध प्रदर्शन भी दिशाहीन हो गया
तख्तापलट के तुरंत बाद लोग लोकतंत्र के बचाव में म्यांमार की सडक़ों पर उतर आए लेकिन जल्द ही विरोध दिशाहीन हो गया, क्योंकि उनके पास नेतृत्व नहीं था, जो उन्हें संगठित रख पाता। आज वहां एक भी सिविल सोसायटी नहीं है जो सैन्य शासन के खिलाफ संगठित रूप से आवाज उठा सके।
अभी रिहाई की उम्मीद कम
जनता के बीच आज भी सू की लोकप्रिय हैं, लेकिन निकट भविष्य में उनकी रिहाई की कोई उम्मीद नजर नहीं आती। कागजों में उनका सियासी रुतबा फिलहाल कायम है, पर अगर वे ज्यादा समय कैद में रहीं तो जनता को कैसे प्रेरित कर पाएंगी, इसलिए म्यांमार में लोकतंत्र के आंदोलन को झटका लगना तय है।

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