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विश्व सोमवार दिनांक 10 सितम्बर, को विश्व आत्म हत्या रोक थाम दिवस के रुप में मनाया गया।

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विश्व सोमवार दिनांक 10 सितम्बर, को विश्व आत्म हत्या रोक थाम दिवस के रुप में मनाया गया। हालिया ऑकडों के अनुसार विश्व में आठ लाख लोग हर साल आत्म हत्या कर रहे हैं । हर चालीस सेकेण्ड में आत्महत्या की जा रही है । हमारे देश में गत 15 साल में आत्महत्या की दर में २३प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है । आत्म हत्या करने वालों में ज्यादा प्रतिशत १८ वर्ष से ४८ वर्ष के लोगों का है । जब समस्यायें विकराल रूप ले लेती हैं तब समाज उसके निराकरण के रास्ते ढूँढता है। निराकरण के उपाय करता है । उन्हीं उपायों के रूप में एक क़दम है उसे किसी विशेष दिन के रुप में आयोजित किया जाये । इसप्रकार सामान्य जन और नागरिक , समस्या की गहनता को समझे और समस्या निराकरण में अपनी महती भूमिका निभायें ।

इस तरह के आयोजन करसमूहों में समझाइश कर आत्महत्या को रोकने के प्रयत्न किया जाना एक सभ्य समाज में स्वागत योग्य क़दम है ।
किन्तु इसके साथ -साथ आत्म हत्या की प्रवृति कब ,क्यों उपजती है इसके कारणों की पड़ताल किया जाना भी जरुरी है । यह कारण घर , परिवार , समाज और अब कार्य स्थलों पर खोजे जाने चाहिये । इसी लिये इस वर्ष की थीम च्च्वर्किंग टुगेदर टू प्रिवेन्ट सुसाइड च् रखी गयी है । जिस पर वर्ष भरआयोजन कर सार्थक परिणामों की ओर महती क़दम होगा । आज इस विषय पर क़लम से इस लिये लिखा जा रहा है क्योंकि मैंने अपने जीवन में कुछ मामले क़रीब से देखे हैं जिनके याद आते ही आज भी ऑंखें नम हो जाती हैं ।

एक मामला तो क़रीब पॉच साल पहले का है । परिवार का सबसे नटखट चंचल स्वास्थ्य उर्जा से लबरेज़ बच्चे ने अचानक रात तीन बजे आत्महत्या कर ली ।यह एक ह्रदय विदारक घटना थी जिसे चाह कर भी नहीं भूल पाती ।उर्जा से परिपूर्ण इस बच्चे को उसकी क्षमता के अनुकूल दिशा नहीं मिला पाना मुझे इसकी बड़ी वजह महसूस होती है । तथा कथित सम्भ्रान्त परिवारों में बच्चों की इच्छा उनकी रूचि ,उनके व्यक्तित्व को जाने बिना अपनी अधूरी महत्वाकांक्षा बच्चों के माध्यम से पूरी करने के लिये उन पर थोपते हैं ।खुद जिस क्षेत्र में मॉ बाप सफल नहीं होते वो बच्चे को उस क्षेत्र में सीखने से पहले अर्जित करने की उम्मीद करने लगते हैं । इस तरह के मामलों के उदाहरण हम नित समाचार पत्रों में पढ़ते है। हर दूसरा माँ बाप अपने बच्चे से ढ्ढढ्ढञ्ज द्बठ्ठ होने की उम्मीद पाल बैठता है। ।

ऐसे ही महिलायें घरेलू हिंसा की वजह से आत्महत्या कर लेती हैं । हाल ही घटना आई.ए.एस पति द्वारा लगातार सताये जाने पर लड़की को सहने की सलाह देते रहे आन्जम महिला ने आत्म हत्या को अंगीकर कर लिया । जब की उसे आत्म हत्या करने से पहले जीने के रास्ते ढूँढ कर जी सकती थी।

इसी तरह कि एक और घटना आज से ५७ साल पहले एक युवा लड़की जो तीन भाईयों कि बहन थी ।पढ़ने में होनहार और लेक्चरार बनने की सभी योग्यतायें होते हुये भाईयों की बुरी ग़लत आदतों की वजह से आत्म हत्या करने को मजबूर हुई । इसी तरह का एक मामला छुटपन की यादों से जुड़ा है ।एक युवा जिसके पिता नहीं थे बहन ने ज़िम्मेवारी लेकर सब बहन भाईयों को पढ़ाया ।इनमें से एक भाई कोडाक्टर बनाया ।क़रीब ५५ साल पहले की ये घटना एक राहगीर लड़की की अस्मत बचायी पर लड़की ने कोर्ट में बयान बदल कर डॉ लड़के दोषी क़रार करवा दिया । डॉ को कोई रास्ता समझ नहीं आया और उसने आत्महत्या कर ली ।

किन्तु आज के आर्थिक युग मेंकिसानों द्वारा व्यापारियों द्वारा क़र्ज़ में डूबने के कारण आत्म हत्या करने वाले बढ़ रहे हैं । व्यापारी का व्यापार जब परवान पर होता है तब सरकारें , परिवार ,समाज सब उनके साथ होता पर घाटे में अपने बीवी बच्चे भी तिरस्कार कर आत्महत्या करने के लिये मजबूर करते देखे गये हैं ।

किन्तु आत्महत्या करने से पहले अपनी क्षमताओं का सही आकलन कर जीने के रास्ते कभी बन्द नहीं करनेज चाहिये। मरना तो दो मिनट का काम है । कसौटी तो जीना है ।इस कसौटी मेंखरा उतरने के लिये परिवार समाज के साथ संवेदन शील राज्य का भी दायित्व है कि वो व्यक्ति को जीने किससे प्रेरित करे ना मरने को मजबूर । यह कुछ मामले परिस्थिति या प्रताड़ना के थे ।इसके अतिरिक्त आत्म हत्या के कुछ कारण बदले सामाजिक परिवेश की देन भी है । कम होती संघर्ष करने की शक्ति भी आत्म हत्या के मुख्य कारण होते जा रहे हैं । इन्हें दूर करने के लिये सामाज शास्त्रियों के साथ शिक्षकों ,माता पिता को आदर्श व्यक्तित्व के रूप में सामने आना होगा । तभी आत्महत्या के मामलों में कमी आ सकती है । आत्म हत्या के कारणों में ही निदान सम्भव है । आत्महत्या के मामले तभी कम होगे जब हम स्वयं अपने मार्गदर्शन होगें । तभी इस दिवस को मनाने का लाभ भी है ।अन्यथा यह दिन मात्र औपचारिकता बन कर रह जायेगा ।

उ️रेणु जुनेजा

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