Strange Tribal Traditions: आदिवासियों की यह अजीबोगरीब रस्में डाल देंगी हैरानी में

Strange Tribal Traditions: इन जनजातियों के लोगों ने स्वयं को अभी तक देश दुनिया की मुख्यधारा से अलग-थलग कर रखा है और इनका रहन-सहन, जीवन शैली, कार्य एवं परंपराएं बड़ी ही विचित्र हैं।

नई दिल्ली। Strange Tribal Traditions: आज देश-दुनिया में पहले की तुलना में बहुत कुछ बदल चुका है। और इस परिवर्तन को लोगों ने स्वीकारा भी है। विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में तो बहुत ही क्रांतियां हुई हैं। परंतु इन सबके बावजूद भी कुछ जनजाति समुदाय ऐसे भी हैं जो अभी तक देश की मुख्यधारा से दूर हैं। या यूं कहें कि उन्होंने स्वयं को सभी तरह की क्रांतियों से दूर रखा हुआ है। उनकी रस्मों-रिवाज एवं परंपराएं भी बहुत ही अलग-थलग हैं। आज हम आपको कुछ ऐसे ही जनजाति समाज की विचित्र रस्मों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो हैरानी में डाल देती हैं…

• भील जनजाति
राजस्थान में निवास करने वाली भील जनजाति देश की सबसे बड़ी जनजातियों में से एक है। इस जनजाति की खुद की परंपराएं और नियम हैं। हालांकि इस जनजाति समुदाय के भीतर महिलाओं को इतनी आजादी होती है कि वह पुरुषों के साथ बैठकर खुलकर हुक्का और शराब पी सकती हैं। और ऐसा करने पर महिलाओं के चरित्र पर कोई सवाल नहीं उठाया जाता। हैरानी वाली बात है कि इस भील समुदाय में महिलाओं के बहुविवाह का भी रिवाज है। पहली शादी करने के बाद भी उनको कई जीवनसाथी रखने की अनुमति होती है।

 

 

• चेंचस जनजाति
यह जनजाति समुदाय मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश में निवास करता है। इस जनजाति की सोच और कार्य बहुत ही प्रगतिशील प्रतीत होते हैं। यहां पर युवाओं को अपनी इच्छा से विवाह करने की आजादी होती है। बच्चों के माता-पिता उन पर कोई दबाव नहीं बनाते हैं। और साथ ही आपको जानकर आश्चर्य होगा कि, जहां एक तरफ हमारे समाज में आज भी एक ही जाति में शादी करने के लिए प्रतिबंधित किया जाता है, वहीं इस जनजाति उसमें यह प्रतिबंध है कि, वे एक ही गोत्र के अंदर शादी नहीं कर सकते हैं, बल्कि गोत्र में बंटे होते हैं।

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• संथाल जनजाति
यह जनजाति समुदाय पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, झारखंड और असम के इलाकों में पाए जाते हैं। इस जनजाति के लोगों का शहरी दुनिया से संपर्क होने के साथ वे संथाली के अलावा कई भाषा बोलते हैं। वैसे तो संथाल नास्तिक नहीं होते हैं, लेकिन वे मूर्ति पूजा में भी विश्वास नहीं करते हैं। उनके कोई मंदिर भी नहीं होते हैं। बल्कि वे लोग स्थानीय भगवानों और आत्माओं को पूजते हैं। विचित्र बात है कि भूतों से डरने के कारण संथाल जनजाति के लोग अपने इलाके के भूतों को खुश करने की कोशिश करते हैं। और भूतों को प्रसन्न करने के चक्कर में यह लोग अक्सर पशुओं की बलि देते हैं।

• जारवा जनजाति
जारवा, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की प्रमुख जनजाति है। यह जनजाति समुदाय सूअर, मछली और कुछ अन्य जानवरों का शिकार करके अपना पेट भरते हैं। लेकिन यह लोग हिरण को नहीं मारते। इस जनजाति में यह परंपरा है कि बच्चों के बालिग होने के बाद उनका नाम परिवर्तित कर दिया जाता है। जिसके लिए एक समारोह आयोजित होता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि, यदि बालिग लड़की है तो उसके नाम परिवर्तन से पहले लड़की को सूअर के तेल, मिट्टी और गोंद का टीका लगाया जाता है। और यदि लड़का है, तो लड़के द्वारा सूअर का शिकार करके गांव के सभी लोगों को खिलाना होता है। उसके बाद नाम परिवर्तित किया जाता है।

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