ऐसे हुआ जीन्स पैंट का आविष्कार

– जीन्स पैंट फैशन की प्रतीक मानी जाती है। कई मनमोहक रंगों में उपलब्ध जीन्स को हर आयु वर्ग के स्त्री-पुरुष बड़े उत्साह से स्टाइलिश दिखने के लिए पहनते हैं। लेकिन जीन्स का पहनावा मूल रूप से मेहनतकशों और कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों और नाविकों से संबंध रखता है।

उद्योगीकरण के बाद यूरोप में कामगारों और नाविकों के लिए ऐसे परिधानों की जरूरत महसूस की गई, जो मजबूत हों और देर से फटें। सोलहवीं सदी में यूरोप ने भारतीय मोटा सूती कपड़ा मंगाना शुरू किया। जिसे डुंगारी कहा जाता था। बाद में इसे नील के रंग में रंग कर मुंबई के डोंगारी किले के पास बेचा गया था। नाविकों ने इसे अपने अनुकूल पाया और इससे बनी पतलूनें पहनने लगे। कंधे से लेकर पाजामे तक का यह परिधान डंगरी कहलाता है। लगभग ऐसा ही परिधान कार्गो सूट होता है। जिसे नाविक और वायुसेवाओं के कर्मचारी पहनते हैं। डंगरी के कपड़े और जीन्स में फर्क यह होता है कि जहां डंगरी में धागा रंगीन होता है। वहीं, जीन्स को तैयार करने के बाद रंगा जाता है। आमतौर पर जीन्स नीले, काले और ग्रे शेड्स में होती हैं। इन्हें जिस नील से रंगा जाता था। वह भारत या अमरीका से आती थी। पर जीन्स का जन्म यूरोप में हुआ। सन् 1600 की शुरुआत में इटली के कस्बे ट्यूरिन के निकट चीयरी में जीन्स वस्त्र का उत्पादन किया गया। इसे जेनोवा के हार्बर के माध्यम से बेचा गया था। जेनोवा एक स्वतंत्र गणराज्य की राजधानी थी। जिसकी नौसेना काफी शक्तिशाली थी। इस कपड़े से सबसे पहले जेनोवा की नौसेना के नाविको की पैंट्स बनाई गईं।

नाविकों को ऐसी पैंट की जरूरत थी। जिन्हें सूखा या गीला भी पहना जा सके। इन जीन्सों को सागर के पानी से एक बड़े जाल में बांध कर धोया जाता था। समुद्र के पानी उनका रंग उड़ाकर उन्हें सफेद कर देता था। इस तरह कई लोगों के अनुसार जीन्स नाम जेनोवा पर पड़ा है। जीन्स बनाने के लिए कच्चा माल फ्रांंस के निम्स शहर से आता था। जिसे फ्रांंसीसी में देनिम कहते थे। इसीलिए इसके कपड़े का नाम डेनिम पड़ गया। उन्नीसवीं सदी में अमरीका में सोने की खोज का काम चला। उस दौर को गोल्ड रश कहते हैं। सोने की खानों में काम करने वाले मजदूरों के लिए भी मजबूत कपड़ों के परिधान की जरूरत थी। सन् 1853 में लेओब स्ट्रॉस नाम के एक व्यक्ति ने थोक में वस्त्र सप्लाई का कारोबार शुरू किया। लेओब ने बाद में अपना नाम लेओब से बदल कर लेवाई स्ट्रॉस कर दिया।

लेवाई स्ट्रॉस को जैकब डेविस नाम के व्यक्ति ने जीन्स नामक पतलून की पॉकेटों को जोडऩे के लिए मेटल के रिवेट इस्तेमाल करने की राय दी। डेविस इसे पेटेंट कराना चाहता था। पर इसके लिए उसके पास पैसा नहीं था। वर्ष 1873 में लेवाई स्ट्रॉस ने कॉपर के रिवेट वाले ‘वेस्ट ओवर ऑल’ बनाने शुरू किए। तब तक अमेरिका में जीन्स का यही नाम था। वर्ष 1886 में लेवाई स्ट्रॉस ने इस पतलून पर चमड़े के लेबल लगाने शुरू कर दिए। इन लेबलों पर दो घोड़े विपरीत दिशाओं में जाते हुये एक पतलून को खींचते हुए दिखाई देते थे। इसका मतलब था कि पतलून इतनी मजबूत है कि दो घोड़े भी उसे फाड़ नहीं सकते। बीसवीं सदी में हॉलीवुड की काउ ब्वॉय फिल्मों ने जीन्स को काफी लोकप्रिय बनाया। पर यह फैशन में बीसवीं सदी के आठवें दशक में ही आई।

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