फेस्टिवल मनाने के पीछे ये है कहानी
सुलावेसी में मा’नेने फेस्टिवल की शुरुआत लगभग 100 साल पहले हुई थी। गांव के बुजुर्ग फेस्टिवल के पीछे की कहानी बयां करते हैं। बताते हैं, 100 साल पहले गांव में टोराजन जनजाति का एक शिकारी शिकार के लिए जंगल आया। इस शिकारी को जंगल में एक सड़ी गली लाश देखी। उस शिकारी ने उस शव को साफ कर अपने कपड़े पहनाए और फिर उसका अंतिम संस्कार किया। इसके बाद शिकारी के दिन फिर गए। वह काफी सुखी और समृद्ध जीवन जीने लगा। इसी के बाद से यहां के लोग अपने पूर्वजों को सजाने की इसी प्रथा का पालन करते आ रहे हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उनकी आत्मा खुश होती हैं और आशीर्वाद देती हैं।
सुलावेसी में मा’नेने फेस्टिवल की शुरुआत लगभग 100 साल पहले हुई थी। गांव के बुजुर्ग फेस्टिवल के पीछे की कहानी बयां करते हैं। बताते हैं, 100 साल पहले गांव में टोराजन जनजाति का एक शिकारी शिकार के लिए जंगल आया। इस शिकारी को जंगल में एक सड़ी गली लाश देखी। उस शिकारी ने उस शव को साफ कर अपने कपड़े पहनाए और फिर उसका अंतिम संस्कार किया। इसके बाद शिकारी के दिन फिर गए। वह काफी सुखी और समृद्ध जीवन जीने लगा। इसी के बाद से यहां के लोग अपने पूर्वजों को सजाने की इसी प्रथा का पालन करते आ रहे हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उनकी आत्मा खुश होती हैं और आशीर्वाद देती हैं।
ऐसे होती है फेस्टिवल की शुरुआत
आमतौर पर ऐसा बुजुर्गों की मौत के बाद किया जाता है। मरने वाले बुजुर्ग को दफनाते नहीं हैं बल्कि उन्हें लकड़ी के ताबूत में रख देते हैं और उनकी मौत को जश्न की तरह मनाते हैं। मान्यता है कि मृतक नई यात्रा पर निकल गया। इसलिए उसके शव को दफनाया नहीं जाता बल्कि ताबूत में रख दिया जाता है। फिर तीन वर्ष बाद शव निकाल कर नए कपड़े पहनाए जाते हैं। उसके साथ बैठकर खाना खाया जाता है और फिर उन्हें वैसे ही सुला दिया जाता है। शवों से उतरे हुए कपड़ों को परिजन पहन लेते हैं। फिर कई वर्ष बाद जब शव की हड्डियां निकलने लगती हैं, तब उन्हें जमीन में दफनाया जाता है।
आमतौर पर ऐसा बुजुर्गों की मौत के बाद किया जाता है। मरने वाले बुजुर्ग को दफनाते नहीं हैं बल्कि उन्हें लकड़ी के ताबूत में रख देते हैं और उनकी मौत को जश्न की तरह मनाते हैं। मान्यता है कि मृतक नई यात्रा पर निकल गया। इसलिए उसके शव को दफनाया नहीं जाता बल्कि ताबूत में रख दिया जाता है। फिर तीन वर्ष बाद शव निकाल कर नए कपड़े पहनाए जाते हैं। उसके साथ बैठकर खाना खाया जाता है और फिर उन्हें वैसे ही सुला दिया जाता है। शवों से उतरे हुए कपड़ों को परिजन पहन लेते हैं। फिर कई वर्ष बाद जब शव की हड्डियां निकलने लगती हैं, तब उन्हें जमीन में दफनाया जाता है।