हमारे लिए नींद दिमाग को आराम देने के लिए बेहद जरूरी है। माना जाता है कि एक 60 वर्ष की उम्र का व्यक्ति बचपन से लेकर ६० वर्ष की उम्र तक अपनी जिंदगी के 20 साल सोने में गुजारता है। ऐसे में जीवन की हरेक अवस्था में पर्याप्त नींद लेना बहुत जरूरी है। वक्त पर नहीं सोने व जरूरी नींद नहीं लेने से हमें दिमाग संबंधी समस्याओं के साथ हृदय रोग व फेफड़े संबंधी परेशानियां हो सकती हैं। जानते हैं कि उम्र व अवस्था के हिसाब से नींद हमारे लिए क्यों जरूरी है :
बचपन में : कम सोने से अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर की आशंका।
असर : बच्चे की ग्रोथ और बौद्धिक क्षमता कम हो जाती है।
कितनी नींद जरूरी
नवजात शिशु के लिए 16-18 घंटे।
3 साल की उम्र तक 12-14 घंटे।
3-12 साल की उम्र तक 10-13 घंटे।
युवाओं व बुजुर्गों में : नींद कम लेने से कई तरह के डिसऑर्डर होने की आशंका रहती है।
स्लीप इनर्सिया
व्यक्ति की निर्णय लेने की क्षमता पर असर। दुनियाभर में हुई कई बड़ी दुर्घटनाओं में संबंधित व्यक्ति इस डिसऑर्डर से पीडि़त पाए गए।
ओब्सट्रेक्टिव स्लीप एप्नीया सिंड्रोम
सांस की नली में आंशिक या पूर्ण रूप से रुकावट से रेस्पिरेटरी फेल्योर। इसके अलावा डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और हृदय रोग की भी आशंका।
कितनी नींद जरूरी : रोजाना 7 घंटे 30 मिनट से 8 घंटे।
प्रेग्नेंसी में महिलाओं में इस दौरान ब्लड प्रेशर बढऩे की आशंका रहती है।
कितनी नींद जरूरी : दिन में आधा से एक घंटा और रात में 8 घंटे।
नींद से संबंधित अन्य डिसऑडर्स
सर्केडियन रिद्म डिसऑर्डर
कभी भी सोना और किसी भी समय उठ जाना। यह डिसऑर्डर ट्रांसपोर्टर्स, ड्राइवर्स, डॉक्टर्स, नर्सेज, एविएशन और बीपीओ कर्मचारियों में ज्यादा देखने को मिलता है।
क्या करें : बिस्तर पर जाने से कुछ घंटे पहले कैफीन व निकोटीन (चाय, कॉफी व तंबाकू) के सेवन से बचें।
डिलेड स्लीप फेज सिंड्रोम
सामान्य से दो या अधिक घंटे देरी से सोने की आदत हो जाती है। किसी भी उम्र में यह समस्या हो सकती है।
क्या करें : सोने का समय निश्चित करें, दिन में न सोएं, ब्राइट लाइट देखें, बोरिंग एक्टीविटिज करें, टेलीविजन से दूरी बनाएं, बैडरूम में घड़ी न रखें।
एडवांस स्लीप फेज सिंड्रोम
सामान्य समय से पहले ही बिस्तर पर चले जाना, यह भी किसी भी उम्र में हो सकता है।
क्या करें : परिवार के साथ समय बिताएं और निश्चित समय में टेलीविजन देखने की आदत डालें।
कम नींद से आते हैं खर्राटे
खर्राटे संबंधी परेशानी से रेस्पिरेटरी फेल्योर की आशंका रहती है। बच्चों में यह समस्या होने पर उनके टॉन्सिल्स बढ़ जाते हैं।
सामाजिक असर
कम सोने से हमारा सामाजिक कार्यक्षेत्र भी प्रभावित होता है। इससे तनाव, पारिवारिक संबंधों में खटास, चिड़चिड़ापन व भूलने की प्रवृत्ति जैसी परेशानियां होती हैं।