आज से करीला जाने वाले रास्ते हो जाएंगे सील, सूना रहेगा जानकी दरबार

रंगपंचमी मेला नहीं लगेगा, कोरोना संक्रमण के कारण प्रशासन का सख्त फैसला

<p>आज से करीला जाने वाले रास्ते हो जाएंगे सील, सूना रहेगा जानकी दरबार</p>
रोहित ओझा, बामौरीशाला. कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए रंगपंचमी पर लगने वाले करीला मेले पर प्रशासन ने रोक लगा दी है। दर्शनार्थियों की भीड़ को रोकने के लिए प्रशासन ने करीला पहुंचने वाले सभी रास्तों को गुरूवार से सील करने का निर्णय लिया है। मंदिर परिसर के आसपास से प्रसाद एवं खाद्यान्न सामाग्री,खेल खिलौनों कढाई आदी की दुकानों को भी हटा दिया गया है। मंदिर के बाहर जहां दुकानों से जो रौनक होती थी वहां आज सन्नाटा पसरा हुआ है। व्यापारियों के चेहरों पर रौनक नहीं रही। मेला स्थगित करने का फैसला जनहित में ही है, लेकिन लोगों का व्यापार बुरी तरह प्रभावित होगा। संक्रमण बढऩे के बाद मार्च महीने मे कई समीक्षा बैठकों मे करीला मेले को लेकर अधिकारियों ने जायजा लिया और फिर संकट को भांपते हुए मेला निरस्त करने का फैसला लिया था।
आस्था स्थल है जानकी मंदिर
अशोकनगर एवं विदिशा जिले की सीमा पर स्थित बामौरीशाला के पास मां जानकी मंदिर करीला एक महत्वपूर्ण स्थान है। विदिशा जिला मुख्यालय से करीब 125 किमी एवं अशोकनगर जिला मुख्यालय से करीब 35 किमी दूर एक ऊँचे टीले पर स्थित करीला में माँ जानकी का मंदिर है। इस स्थान पर रंगपंचमी पर लगने वाला मेला मध्यप्रदेश के बड़े मेलों में से एक है। यहां बामौरीशाला के पास ललितपुर गांव का पहला झंडा एवं प्रसाद चढने के बाद ही करीला में राई नृत्य एवं मेले की शुरुआत की जाती हैं। यह मेला मप्र तीर्थ एवं मेला प्राधिकरण में पंजीबद्ध होकर वित्तपोषित है। यह मेला क्षेत्र के ही नहीं बल्कि दूर दराज के लोगों के लिए भी बड़ी आस्था का केंद्र है।
करील के वृ्रक्षों की अधिकता से नाम पड़ा था करीला
करील के वृक्षों की अधिकता के कारण जिस टीले को करीला कहा गया वो इस जंगल की सबसे ऊँची चोटी है। इस पर एक गढ़ी बनी हुई थी, जिसके चार बुर्ज आज भी देखे जा सकते हैं। यहां अफगान पठानों का काफी आतंक था और वे लूटपाट तथा लोगों को तंग किया करते थ्ेा। उस समय जयसिंह को इस इलाके में भेजा था। बामौरशाला के पूर्व शिक्षक डीएन सांबले बताते हैं करीला के एकमात्र पुराने रास्ते पर 500 मीटर की दूरी पर एक चोटी पर गढ़ पहरा नाम का स्थान है जो करीला गढ़ी का एक प्रकार का वॉचिंग टावर था जहां से करीला आने वाले लोगों पर दूर दूर से नजर रखी जा सकती थी। लेकिन 1811 में जब यह क्षेत्र सिंधिया स्टेट के अधीन हुआ तब इस क्षेत्र में बहादुरपुर का महत्व बढ़ता गया इस दौरान करीला गढी वीरान हो गई, जिसे बाद में दीपनाखेड़ा के महंत तपस्वी महाराज ने अपने प्रयासों से आबाद करने के प्रयास किये और अपने शिष्य बलरामदास जी को यहाँ का जिम्मा दिया वो अयोध्या से करीला आये थे। वैष्णव परंपरा के महंत इस मंदिर को निरंतर सवारते रहे। अब मंदिर एक न्यास के माध्यम से संचालित होता है जो भव्य रूप ले चुका है। यहाँँ बुन्देली लोक नृत्य राई को बधाई के रूप में माँ जानकी के दरबार में बेडिया जाति की महिलाओं द्वारा किया जाता है जो श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने पर कराते हैं।
राई नृत्य पूर्णत: प्रतिबंधित
अधिकांशत: श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर यहां पहुंचते है और बधाई स्वरूप यहां राई नृत्य कराते हैं। मान्यता है कि मां जानकी ने लव-कुश को इसी स्थान पर जन्म दिया था तब अप्सराएं स्वर्ग से बधाई नृत्य करने आईं थीं, तभी से यहां राई नृत्य की परंपरा है। हर साल करीब 1 हजार नृत्यांगनाएं यहां नृत्य करती हैं। लेकिन इस बार मां का आंगन सूना रहेगा और बधाई नृत्य नहीं हो सकेगा।
आज से करीला के पहुंच मार्ग हुए सील
गुरुवार से करीला पहुंचने वाले सभी मार्ग सील कर दिए जाएंगे। इन मार्गों में बंगलाचौराहा, बामौरीशाला, पथरिया मार्ग की सीमाएं शामिल हैं। करीलाधाम जाने वाले लोगों को लौटाया जाएगा। अलग अलग प्रवेश मार्गो पर पुलिस के स्थाई पाइंट रहेंगे जो कि यहां से गुजरने वाले दूसरे जिलों के श्रद्धालुओं को वापस लौटाएंगे । इन रास्तों पर सभी सवारी वाहनों पर रोक रहेगी।
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