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दीपवाली की रात हुई बाबा विश्वनाथ की भव्य सप्तऋषि आरती, देखें तस्वीरें

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Published: November 13, 2023 08:09:47 am
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धर्म की नगरी काशी में दीपावली का पर्व धूम-धाम से मनाया गया। इस दौरान बाबा विश्वनाथ के धाम में भी दियों से आकर्षक सजावट की गई। वहीं सप्तऋषि आरती के दौरान बाबा विश्वनाथ के अरघे पर दिए जलाए गए और भव्य आरती की गई। आरती अपने समयानुसार शाम 7 बजे शुरू हुई और बाबा के प्रांगण की सबसे बड़ी आरती सप्तऋषि अपने निर्धारित समय 8 बजकर 15 मिनट पर समाप्त हुई।

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दीपवाली की रात बाबा विश्वनाथ के धाम में भी दीयों से सजावट की गई। मंदिर प्रांगण में गंगा द्वार की सीढ़ियों पर जहां दिये जलाए। वहीं मंदिर प्रांगण में ॐ और स्वस्तिक का चिह्न बनाकर अर्चकों ने दीपोत्सव मनाया। इस दौरान बाबा की भव्य सप्तऋषि आरती की गई।

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बाबा विश्वनाथ के प्रांगण में होने वाली पांचों आरतियों में सप्त ऋषि आरती सबसे खास मानी जाती है। दीपवाली की रात ये और भव्यता से हुई। इस आरती को अलग-अलग गोत्र के सात ब्राह्मण करते हैं। सात प्रकार के अलग-अलग रास्तों से होते हुए ब्राह्मण या ऋषि डोली लेकर बाबा की आरती के लिए मंदिर पहुंचते हैं। काशी विश्वनाथ में ये परंपरा 750 वर्षों से ज्यादा लंबे समय से निभाई जा रही है। इस आरती के दर्शन का बहुत महत्व है।

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इस आरती में मंदिर ट्रस्ट और नाटकोट चेट्टियार सम्प्रदाय के कोई भी पुजारी, ऋषि या महंत नहीं शामिल होते हैं। इस अलग-अलग राज्यों के ऋषि और पुजारी शामिल होते हैं। दीपवाली रात बाबा विश्वनाथ को फूलों और चांदी के हार से सजाया गया और मस्तक पर चांदी का चांद भी दमका। दीयों से बाबा की आभा देखते ही बनती थी।

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इस आरती को अलग अलग राज्यों के सात ऋषि या ब्राह्मण करते हैं, जो अलग-अलग गोत्र के होते हैं। ये सभी ऋषि अलग-अलग रास्ते से डोली लेकर बाबा के मंदिर पहुंचते हैं। हर कोई इसका साक्षी बनना चाहता है। दीपवाली की रात होने वाली यह सप्तऋषि आरती बेहद खास होती है। इसके दर्शन को भक्त उमड़ पड़ते हैं।

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दीपवाली की रात हुई इस आरती में बाबा विश्वनाथ का स्वरुप देखते ही बन रहा था। मस्तक पर चांदी का चंद्र अपनी आभा बिखेर रहा था और दियों की रौशनी में गर्भगृह से अलौकिक रौशनी निकल रही थी जिसके दर्शन कर भक्त निहाल हो रहे थे।

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