उदयपुर. तेलीवाड़ा स्थित हुमड़ भवन में आचार्यश्री सुनीलसागर संघस्थ बाल ब्रह्मचारी विशाल भय्या की सोलहकरण उपवास साधना पूरी होने पर मंगलवार सुबह सकल दिगम्बर जैन समाज की ओर से पारणा उत्सव का आयोजन हुआ। इसमें करीब 70 श्रावक-श्राविकाओं ने ब्रह्मचारी का पारणा कराया। महिला मण्डल अध्यक्षा मंजू गदावत ने बताया कि कार्यक्रम में महिलाओं ने मंगल गीत गाए और सभी ने बारी-बारी से लोंग, गोंद, मूंग और गर्म पानी से पारणा कराया। ब्रह्मचारी विशाल ने विचार व्यक्त किए। तप से होती है आत्मा की शुद्धि..इधर, धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि धर्मभूषण ने कहा कि दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ आचार्य भगवन का आशीर्वाद हो तो कैसी भी कठिन साधना पूरी हो सकती है। तप साधना से आत्मा शुद्धि होती है। मन निर्मल होता है। साधना के माध्यम से ही आत्मा को परमात्मा में तब्दील किया जा सकता है।
अणुव्रत का उद्घोष ही संयम
साध्वी गुणमाला ने कहा कि अणुव्रत का उदघोष ही संयम है। भावनात्मक विकास अछूता रह गया। बौद्धिक विकास हो, लेकिन भावनात्मक नहीं हो तो समस्या का समाधान नहीं हो सकता। किसी का दिल नहीं पसीजता। सौभाग्य की बात है कि जब जब ऐसी स्थितियां आई हैं। तब तब महापुरुषों का जन्म हुआ। स्वतंत्रता के बाद समस्याओं का आंकलन किया और अपूर्व दर्शन के रूप में अणुव्रत दिया। साध्वी ने ये विचार मंगलवार को अणुव्रत चौक स्थित तेरापंथ भवन में पयुर्षण के पांचवें दिन आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए। साध्वी लक्ष्यप्रभा, साध्वी प्रेक्षाप्रभा और साध्वी नव्यप्रभा ने भी विचार व्यक्त किए। सभा उपाध्यक्ष अर्जुन खोखावत ने बताया कि सांयकालीन प्रतिस्पर्धाओं में भी समाजजनों का उत्साह बना हुआ है।
देने वाले के लिए रखें कृतज्ञता भाव
आचार्य शिवमुनि ने कहा कि कर्मनिर्जरा करने का मूल तत्व है सम्यक तत्व। कर्मों को तपा कर जो तप में परिवर्तित होता है। वही तप होता है। आज्ञा ही तप है और आज्ञा ही धर्म है। यह भगवान की आज्ञा है। आज्ञा क्या है तप और धर्म तो है ही लेकिन इसके मूल में क्या है। महाप्रज्ञ विहार स्थित शिवाचार्य समवशरण में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए शिव मुनि ने कहा कि भगवान की आज्ञा है कि ज्ञाता दृष्टाभाव में रहे। आत्मा का भाव मात्र ज्ञाता है, दृष्टा है। शरीर तो कर्मनिर्जरा करने का बहुत बड़ा साधन हैं। दृष्टा भाव में रहने से उत्कृष्ट कर्मनिर्जरा होती है। युवाचार्यश्री महेन्द्र ऋषि ने भी विचार व्यक्त किए।
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भगवान महावीर की त्याग भावना अपनाएं
उदयपुर. मुनि शास्त्र तिलक विजय ने कहा कि भगवान महावीर ने संसारिक वस्तुओं का त्याग किया। जैन सन्यास अपनाया। हमें भगवान के किए गए त्याग की इच्छा नहीं रखनी चाहिए, अपितु भगवान ने जो अपनाया उसे अपनाने की इच्छा रखनी चाहिए। हिरण मगरी सेक्टर ४ स्थित जिनालय में आयोजित धर्मसभा में मुनि विजय ने कहा कि जीवन में भगवान के आदर्शों का पालन करना चाहिए।
संतोष से जीवन प्रसन्न
आयड़ वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संस्थान के तत्वावधान में ऋषभ भवन में चातुर्मास कर रहे मुनि प्रेमचंद ने पर्युषण महापर्व के छठे दिन मंगलवार को कहा कि जीवन में प्रत्येक व्यक्ति मनचाहा व अनचाहा दोनों मिलता हैै। व्यक्ति का दृष्टिकोण सकारात्मक हैै तो वह दोनों परिस्थितियों में खुश रहेगा। जो मिले उसे ही मनचाहा मान लेने की कला रखने वाला व्यक्ति जीवन में खुश रहता है।
महावीर का जीवन अलौकिक
जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में आयड़ तीर्थ पर वर्षावास कर रहे आचार्य यशोभद्र सूरिश्वर ने पर्यूषण महापर्व के छठे दिन कल्प सूत्र की प्रवचन धारा में भगवान महावीर को जो उपसर्ग हुए। उन सब का विस्तार किया। पर्यूषण पर्व के छठे दिन महावीर स्वामी के पाठशाला गमन का वर्णन भी किया। महासभा के मंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि मंगलवार को सभी श्रावक-श्राविकाओं एवं बच्चों को रजिस्टर व पेन वितरित किए।
समझने की चीज है धर्म
जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रीसंघ के तत्वावधान में आराधना भवन में चातुर्मास कर रहे पन्यास प्रवर श्रुत तिलक विजय ने पयुर्षण महापर्व के छठे दिन प्रवचन में भगवान महावीर स्वामी के जन्म से लेकर निर्वाण तक का हृदय स्पर्शी वर्णन किया। भगवान महावीर ने दीक्षा लेने से पहले एक वर्ष तक दान दिया था। रहस्य यह है कि भगवान दुनिया को समझाना चाहते थे। प्रन्यास प्रवर ने कल्प सूत्र आगम की बातों को वैज्ञानिक आधार के साथ समझाया।