कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी : मेवाड़ में सांवरे के मंदिर सजे, यहां उमड़ती थी भीड़, जान‍िए कृृृृृष्‍ण के इन धामों को

कृष्ण जन्माष्टमी : मेवाड़ के मंदिरों में पहला मौका, जब भक्त दर्शनों से वंचित, कोरोना संकट के चलते मंदिरों में नहीं होंगे आयोजन

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उदयपुर. कृष्ण मंदिरों में कान्हा जन्म लेंगे, बधाई गीत भी गूंजेंगे, लेकिन इस बार आधी रात को जय कन्हैयालाल की जयकारे लगाने वाले भक्त नहीं होंगे। जन्माष्टमी पर इस बार कृष्ण मंदिर सूने रहेंगे तो भक्त घरों में ही पूजा कर के मन को संतुष्ट करेंगे। ऐसा संभवतया पहली बार हो रहा है, जब मंदिरों में कृष्ण जन्म के बाद दर्शन के लिए लंबी कतारें नहीं होंगी। मेवाड़ में कई कृष्ण मंदिर हैं और इनमें हर साल होने वाले उत्सव को देखने हजारों भक्त उमड़ते रहे हैं, लेकिन कोरोना संकट के चलते इस बार मंदिरों में आयोजन नहीं होंगे। कुछ मंदिरों के वर्चुअल दर्शन की व्यवस्था संभव है। जन्माष्टमी के अवसर पर हम मेवाड़ के ऐसे ही कृष्ण मंदिरों के बारे में बता रहे हैं, जहां कृष्ण अलग-अलग नामों से विराजमान हैं-
श्रीनाथजी, जहां दी जाती है तोपों की सलामी
राजसमंद के नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथजी मंदिर भगवान कृष्ण के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है। श्रीनाथजी वैष्णव सम्प्रदाय के केंद्रीय पीठासीन देव हैं, जिन्हें पुष्टिमार्ग या वल्लभाचार्य की ओर से स्थापित वल्लभ सम्प्रदाय के रूप में जाना जाता है। श्रीनाथजी की मूर्ति पहले मथुरा के निकट गोकुल में स्थित थी। परंतु जब औरंगजेब ने इसे तोडऩा चाहा, तो वल्लभ गोस्वामीजी इसे राजपूताना (राजस्थान) ले आए। जिस स्थान पर मूर्ति की पुन: स्थापना हुई, उस स्थान को नाथद्वारा कहा जाने लगा। आराध्य प्रभु को जन्माष्टमी के दिन प्रात: मंगला की झांकी के बाद परंपरानुसार श्रीजी बावा को पंचामृत स्नान कराया जाता है। दर्शन लाभ के लिए सैंकड़ों वैष्णव श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। वहीं रात 12 बजे 21 तोपों की सलामी के साथ जन्मोत्सव मनाया जाता है। दूसरे दिन नंदमहोत्सव में श्रीजी बावा के सम्मुख केसर हल्दी युक्त दही की होली खेली जाती है। इस बार सभी आयोजन नहीं होंगे, लेकिन तोपों की सलामी दी जाएगी।
द्वारिकाधीश : 350 सालों में पहली बार नहीं होंगे दर्शन

कांकरोली में द्वारकाधीश मंदिर पर्यटकों के मुख्य आकर्षणों में से एक है। यहां लाल पत्थर से बनी श्रीकृष्ण की मूर्ति की पूरे भक्ति और समर्पण के साथ पूजी जाती है। कई लोगों का मानना है किलाल पत्थर से बनी श्रीकृष्ण की यह मूर्ति मथुरा से लाई गई थी। महाराणा राज सिंह द्वारा 1676 में इस मंदिर का निर्माण किया गया था। यह मंदिर वैष्णव और वल्लभाचार्य संप्रदायों के अंतर्गत आता है। वल्लभ संप्रदाय की तृतीय पीठ कांकरोली में प्रभु द्वारकाधीश मंदिर में इस बार ग्वालों की तरफ से होने वाली मटकी फ ोड़ आयोजन नहीं होगा। रात्रि को बारह बजे जागरण के दर्शन होंगे लेकिन श्रद्धालुओं के लिए गेट नहीं खुलेंगे। 350 साल में पहली बार भक्त आराध्य प्रभु के दर्शन नहीं कर पाएंगे। द्वारकेश बैण्ड विठ्ठल विलास बाग से द्वारकाधीश मंदिर आते हैं और प्रभु को सलामी देते रहे हैं लेकिन इस बार ये द्वारकेश बैण्ड मंदिर परिसर में ही परेड करेगा।

चारभुजानाथ : गूंजते हैं छोगाला छैल के जयकारे
चारभुजा गढ़बोर का मन्दिर मेवाड़ के चार धाम में से एक माना जाता है। मंदिर में मुख्य मूर्ति एक ऊंचे आसन पर विराजित है और भगवान श्रीकृष्ण के चारभुजानाथ के सुदर्शन स्वरूप की है जिसकी चार भुजाओं में शंख, चक्र गदा और कमल पुष्प धारण किए हुए है। ये भगवान विष्णु का दुष्टों का संहार करने वाल स्वरुप है। मेवाड़ के चार धामों में श्रीनाथजी (नाथद्वारा), एकलिंग (कैलाशपुरी), द्वारकाधीश (कांकरोली) एवं चारभुजा (गढबोर) है। इनमें चारभुजा मंदिर, जो प्रभु बद्रीनाथ को समर्पित है। यहां इन्हें छोगाला नाथ भी कहा जाता है। यहां की जलझूलनी एकादशी बहुत ही प्रसिद्ध है। गढ़बोर में चारभुजानाथ का प्रतिवर्ष भाद्रपद मास की एकादशी (जलझूलनी एकादशी) को विशाल मेला लगता है। चारभुजा गढ़बोर में हर वर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। यहां पर आने वाले भक्तों की मनोकामना पूरी होती है।
वृंदावन धाम है सांवलिया सेठ
मेवाड़ के प्रख्यात कृष्णधाम श्रीसांवलियाजी मंदिर जन-जन की आस्था का केन्द्र बन चुका है। इसे मेवाड़ का वृंदावन धाम भी कहा जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी से पहले मंदिर पर भव्य सजावट होती हैै तो जन्माष्टमी पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है। चित्तौडगढ़़ से करीब 41 किलोमीटर दूर मण्डपिया गांव में स्थित भगवान सांवलिया सेठ के इस मंदिर में दर्शनों के लिए पूरे वर्ष श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। हर वर्ग व उम्र के लोग पूरी श्रद्धा से यहां आते हैं। भगवान श्री सांवलिया सेठ का संबंध मीरा बाई से बताया जाता है। किवदंतियों के अनुसार सांवलिया सेठ मीरा बाई के वही गिरधर गोपाल है जिनकी वह पूजा किया करती थी। सांवलिया सेठ के बारे में यह मान्यता है कि नानी बाई का मायरा करने के लिए स्वयं श्रीकृष्ण ने वह रूप धारण किया था। लोग यहां जितना चढ़ाते हैं, उससे ज्यादा उन्हें वापस मिलता है। इसलिए व्यापारी व्यापार को बढ़ाने के लिए बिजनेस पार्टनर बनाते हैं।
उदयपुर और घसियार में भी श्रीनाथजी

शहर से पिंडवाड़ा फोरलेन स्थित ईसवाल के पास घसियार में प्रभु श्रीनाथजी का ये अति प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर श्री गोवर्धन धरण प्रभु श्रीनाथजी (नाथद्वारा) का पूर्व निवास निवास स्थल है। बहुत समय पहले पिंडारियों ने नाथद्वारा पर आक्रमण किया था, नाथद्वारा में काफी लोग मारे गए और मंदिर की संपत्ति को उनके द्वारा लूटा जाने लगा था और इससे भगवान श्रीनाथ प्रभु जी पूजा और सेवा में विघ्न पडऩे लगा, तब नाथद्वारा मंदिर के गुसाई जी ने प्रभु जी को अन्यत्र ले जाने का विचार बनाया और घसियार क्षेत्र के बियाबान और दुर्गम स्थान पर किलेनुमा मंदिर का निर्माण कराया और घसियार मंदिर का निर्माण पूरा होने तक पहले प्रभु जी को उदयपुर ले जाकर कुछ महीनों तक वहां एक मंदिर में उनकी सेवा व पूजा की। उदयपुर में आज भी श्रीनाथजी की हवेली के नाम से यह जाना जाता है। उसके बाद मंदिर निर्माण पूरा हो जाने के बाद प्रभु श्रीनाथ जी को घसियार मंदिर ले आए। कई वर्षों बाद मंदिर घसियार वास करने के पश्चात प्रभु कको वापिस नाथद्वारा ले गए और वहीं पर प्रभु श्रीनाथ जी सेवा, पूजा होने लगी।

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