VIDEO : बायकॉट चायनीज के बीच फिर धूम मचाएगी लकड़ी की काठी

उदयपुर के लकड़ी के खिलौने की होने लगी कद्र, सजा बाजार, लकड़ी के खिलौनों के लिए जाना जाता उदयपुर, चीनी खिलौने से दब गया था बाजार, अब उम्मीदों के साथ बाजार में रौनक

<p>झीलों की नगरी के लकड़ी के खिलौने </p>
मधुलिका सिंह / प्रमोद सोनी. उदयपुर. झीलों की नगरी के लकड़ी के खिलौने ना केवल राजस्थान में बल्कि पूरे देश में मशहूर थे लेकिन इन खिलौने की मांग कम होने के बाद यहां फैले कारोबार में मंदी आ गई लेकिन आत्मनिर्भर भारत और बायकॉट चीनी सामान की बात आने के बाद इन खिलौनों को लेकर उम्मीदें जगी। आज उदयपुर के बाजारों में ये खिलौने बेचने वालों व खरीदने वालों में उत्साह है और दुकानों पर रौनक भी दिखने को मिल रही है। यह अलग बात है कि कोविड-19 के चलते पर्यटकों की रेलमपेल नहीं होने की कमी जरूर खल रही है।
शहर के खेरादीवाड़ा में कई लकड़ी के खिलौने बनाए जाते थे और वही केन्द्र बिन्दु था। अब धीरे-धीरे खिलौने बनाने व बेचने वाले अलग-अलग इलाके में बस गए लेकिन अभी भी ज्यादातर खेरीदारीवाड़ा में ही है। अभी त्योहारी सीजन शुरू होने के साथ ही दुकानों पर लकड़ी के खिलौने के मोल-भाव होने लगे और जो स्थानीय शहरवासी है वे भी खरीद रहे तो दुकानदारों को दीपावली से पहले खुशी मिली। चायनीज खिलौने ज्यादा बाजार में आने से स्थानीय खिलौने से लोगों ने मुंह फेर लिया था।

इसलिए उदयपुर के खिलौने उद्योग की उम्मीदें बढ़ी
– पीएम नरेन्द्र मोदी ने वॉकल फॉर लॉकल का नारा
– चायनीज आयटम का बायकॉट
– आत्म निर्भर भारत के लिए छोटे उद्योगों को बढ़ावा
– स्थानीय उद्योग को बढ़ावा देने के लिए उनका सामान खरीदें
– सोशल मीडिया पर चले अभियान से लोगों का मन बदला

ऐसे बदलता गया समय
– वह भी दिन थे जब उदयपुर में लकड़ी के कारीगरों को काम के आगे खाने-पीने तक का समय नहीं मिलता था। ऑर्डर पर ऑर्डर आते थे। जबकि एक समय था जब उदयपुर के खेरादीवाड़ा के काष्ठ कला मार्ग था जहां शायद ही कोई परिवार ऐसा था जो लकड़ी के खिलौनों का निर्माण नहीं करता हो। लगभग 150 परिवार रहते थे और सभी यही काम करते थे।
– चायनीज खिलौने व ऑनलाइन खिलौने की प्रतिस्पर्धा में इस उद्योग को बड़ा झटका भी लगा। मुश्किल से कुछ ही लोग इस काम से जुड़े रहे, बाकी धीरे-धीरे दूसरी तरफ डायवर्ट हो गए तो।
येे लकड़ी काम में ली जाती
खिलौनों के लिए काम आने वाली खिरनी की लकड़ी का पेड़ नहीं बल्कि उसकी टहनियां काम में ली जाती थी। यह लकड़ी उदयपुर जिले के गोगुन्दा, केवड़ा की नाल, झाड़ोल (फलासिया) के जंगलों में बहुतायात पाई जाती है।

इस तरह के बनते हैं खिलौने
लकड़ी की काठी, लट्टू, टिकटिक, टेबल लैम्प, शतरंज, फ्लावर पॉट, दीपक स्टेण्ड, झूमर, झाड़ लैम्प, चूड़ी स्टेण्ड आदि .

इनका कहना है…
यह सही है कि यहां के खिलौने की मांग कम हो गई थी लेकिन इस समय उम्मीदें बढ़ी है। लकड़ी के खिलौने को लेकर पर्यटक तो आते ही थे लेकिन अब स्थानीय लोग भी रूचि ले रहे है। देश में चले अभियान का असर है कि इस बाजार में फिर से चहल-पहल बढ़ी है। इस दीपावली से पहले अच्छे कारोबार की उम्मीद है।
– मुस्तनसीर, हाथीपोल दुकानदार
लकड़ी के खिलौने बनाने का पुश्तैनी काम है। इस काम में पहले काफी मुनाफा था, लेकिन जब बाजार में चीनी खिलौने आ गए तो इसकी मांग घटती गई। धीरे-धीरे कलाकारों ने आजीविका के लिए कई और रास्ते ढूंढ लिए। इस दीपावली पर अच्छी उम्मीद लिए है,
सरकार को भी इसे प्रोत्साहन देना चाहिए।
– संजय कुमावत व शिवकुमार शर्मा, (लकड़ी के खिलौने से जुड़े)

यहां का खिलौना उद्योग देश-दुनिया में प्रसिद्ध था। पहले जो पर्यटक उदयपुर आते थे, वे यहां से लकड़ी के खिलौने ले जाना नहीं भूलते थे। लेकिन, बाद में ये खिलौने बाजारों से गायब ही हो गए। इनके बजाय लोग चीनी खिलौनों को प्राथमिकता देने लगे। लेकिन, अब वापस ये समय है जब स्वदेशी कला को बढ़ावा देने का माहौल बना है। बाजार में अभी ये खिलौने भी खरीदें जा रहे है। बहुत उम्मीदें है।
– प्रेम कुमार, कलाकार
Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.