RAJ RAJESHWARI DEVI Temple : यहां की भभूत अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और UAE तक भी जाती है

– 12 फरवरी: माघ गुप्त नवरात्रि प्रारंभ, कुंभ संक्रांति… – जानें देवभूमि की देवी राज राजेश्वरी की महिमा…

<p>World Famous RAJ RAJESHWARI DEVI TEMPLE</p>

साल 2021 का दूसरा महीना फरवरी शुरु होने जा रहा है। ऐसे में इस माह सनातन धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक गुप्त नवरात्र की भी शुरुआत होगी। दरअसल 12 फरवरी 2021 को कुंभ संक्रांति के साथ ही माघ गुप्त नवरात्रि का प्रारंभ होगा।

ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे अद्भुत देवीय मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां नवरात्र के लिए हरियाली प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। यहां तक की इस सिद्धपीठ में अटूट आस्था को आप इस तरह से भी समझ सकते हैं कि पोस्ट ऑफिस के माध्यम से यहां के हवन-यज्ञ की भभूत यानी राख विदेशों में तक जाती है।

दरअसल में आज हम आपको देवी मां भगवती के एक रूप जिन्हें मां राज-राजेश्वरी देवी के नाम से जाना जाता है के बारे में बता रहे हैं। यहां मां राज-राजेश्वरी देवी मंदिर के बजाय पठाल से बने घर में निवास करती हैं।

श्री राजराजेश्वरी सिद्धपीठ जो देवभूमि उत्तरांचल के श्रीनगर गढ़वाल से 18 किमी दूर स्थित है। यहां सालभर लोग मां के दर्शनों के लिए पहुंचते है। धन, वैभव, योग और मोक्ष की देवी कही जाने वाली श्री राज राजेश्वरी का सिद्धपीठ घने जंगलों और गांवों के बीच देवलगढ़ में है।

प्राचीन काल से आध्यात्म के लिए जानी जाने वाली राजराजेश्वरी को कई राजा महाराज भी अपनी कुल देवी मानते थे। वही आज के दौर में भी मां के भक्तों में कोई कमी नहीं आई है। सिद्धपीठ के दर्शन के लिए देश-विदेश के दर्शनार्थी देवलगढ़ पहुंचकर मन्नतें मांगते है।

कहा जाता है कि गढ़वाल नरेश रहे अजयपाल ने चांदपुर गढ़ी से राजधानी बदलकर देवलगढ़ को राजधानी बनाया था। जिसके बाद अजयपाल देवलगढ़ में ही पठाल वाले भवन के रूप में मंदिर बनवाया। अद्भुत काश्तकारी का ये नमूना आज भी हर किसी को हैरान करता है। यहीं भगवती राजराजेश्वरी देवी की पूजा होती है।

इसके बाद चांदपुर गढ़ी से श्रीयंत्र लाया गया और देवलगढ़ में बने मंदिर में उसे स्थापित किया गया। इसके अलावा श्री महिषमर्दिनी यंत्र और कामेश्वरी यंत्र को भी इसी राजराजेश्वरी मंदिर में स्थापित किया गया। बताया जाता है कि ये सन् 1512 की बात है।

राजराजेश्वरी मंदिर की प्रमुख विशेषता…
राजराजेश्वरी मंदिर की प्रमुख विशेषता ही ये है, कि मां मंदिर में नहीं रहती है। इसलिए मंदिर की मूर्ति और यंत्र भवन में रखे गए हैं। यहां नित्य विशेष पूजा, पाठ, हवन परंपरा के अनुसार होता है।

प्रथम नवरात्र से यंत्रों की पूजा-अर्चना के साथ नौ दिनों तक चलने वाली नवरात्र के लिए हरियाली प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। इस सिद्धपीठ के पुजारी कहते हैं कि 10 सितंबर 1981 से पीठ में अखंड ज्योति की परंपरा शुरु हुई।
इसके अलावा बीते कई सालों से हर दिन हवन की परपंरा जारी है। ये भी कहा जाता है कि उत्तराखंड में जागृत श्रीयंत्र भी यहीं स्थापित है।

विदेश तक में है अटूट आस्था…
देश ही नहीं विदेश में रहने वाले लोगों की भी इस सिद्धपीठ में अटूट आस्था है शायद यही वजह है पोस्ट ऑफिस के जरिए हवन-यज्ञ की भभूत यानी राख विदेशों में भेजी जाती है। जिसमें सऊदी अरब, ऑस्ट्रेलिया, लंदन, अमेरिका का नाम शामिल है।

इस बात से ही आप इस शक्तिपीठ की ताकत का अंदाजा लगा सकते हैं। इस मंदिर के पंडित बताते है कि नवरात्र पर सफाई की व्यवस्था के लिए भी उनके द्वारा ही सेवक रखे जाते हैं।

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