केतु के कुपित होने पर जातक के व्यवहार में विकार आने लगते हैं, काम वासना तीव्र होने से जातक दुराचार जैसे दुष्कृत्य करने की ओर उन्मुख हो जाता है। इसके अलावा केतु ग्रह के अशुभ प्रभाव से गर्भपात, पथरी, गुप्त एवं असाध्य रोग, खांसी, सर्दी, वात और पित्त विकार, पाचन संबंधी रोग आदि होने का अंदेशा रहता है। केतु ग्रह के अशुभ प्रभाव से जातक के जीवन में मुकदमेबाजी, झगड़ा, वैवाहिक जीवन में अशांति, पिता से मतभेद होने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं। जन्म कुंडली के लग्न, षष्ठम, अष्ठम तथा एकादश भाव में केतु की स्थिति को शुभ नहीं माना गया है।
केतु के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए जातक को लाल चंदन की माला को अभिमंत्रित कराकर शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार को धारण करना चाहिए। केतु के मंत्र से अभिमंत्रित असगंध की जड़ को नीले धागे में शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार को धारण करने से भी केतु ग्रह के अशुभ प्रभाव कम होने लगते हैं।
केतु ग्रह की शांति के लिए तिल, कम्बल, काले पुष्प, काले वस्त्र, उड़द की काली दाल, लोहा, काली छतरी आदि का वस्तुओं का दान भी किया जाता है। इससे लाभ मिलेगा। ऐसे जातकों को महादेव की पूजा-अर्चना करना भी फायदेमंद होती है।