आज खरी नहीं उतरती मार्क्सवादी विचारधारा
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि ‘समुदाय के भौतिक संसाधन’ की अभिव्यक्ति को एक निश्चित आर्थिक या राजनीतिक विचारधारा के दृष्टिकोण से लेबल करना गलत होगा, विशेष रूप से मार्क्सवाद जैसी विचारधारा जो आज समय की कसौटी पर खरी नहीं उतरती है। शायद, आर्टिकल 39(b) के अर्थ को देखने का सटीक लेंस संवैधानिक मूल्यों के समग्र उद्देश्य से है, जिसने इस प्रावधान को जन्म दिया। सीधे शब्दों में कहें तो आर्टिकल 39(b) की व्याख्या लगातार विकासमान संवैधानिक सिद्धांतों के दृष्टिकोण से होनी चाहिए, न कि किसी चश्मे में फंसी ऐतिहासिक विचारधारा से।
प्राइवेट प्रॉपर्टी पर राज्य का कितना हक
गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की सदारत वाली बेंच को तय करना है कि क्या प्राइवेट प्रॉपर्टी अनुच्छेद-39(बी) के तहत ‘समुदाय के संसाधन’ के तहत आती हैं? अर्थात क्या राज्य किसी निजी संपत्ति को सामुदायिक भलाई के लिए पुनर्वितरित कर सकता है? दरअसल, कांग्रेस ने जब से लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का पता लगाने का वादा किया है, तब से वेल्थ री-डिस्ट्रीब्यूशन के मुद्दे ने जोर पकड़ा हुआ है।