सात वर्ष बाद कोलकाता लौटीं तो एक अखबार से जुड़ गईं, लेकिन पर्यावरण के प्रति कुछ करने का जज्बा उन्हें फैशन इंडस्ट्री में ले आया। वे कहती हैं कि पढ़ाई के दौरान जाना कि प्रदूषण का एक कारण फैशन भी है। कपड़ा प्रदूषण पर ध्यान देने की आवश्यकता है। एक अनुमान के मुताबिक करीब 20 फीसदी जल प्रदूषण इनकी वजह से होता है। मेघना बताती हैं, ‘एक दिन मेरी मम्मी ने अलमारी खोली, जिसमें मेरी दादी की खूबसूरत साड़ियां थीं, जो मम्मी ने संभाल रखी थीं।’ ये सब देखकर विचार आया कि देश में ऐसे न जाने कितने घर हैं, जहां पुरानी साड़ियों को सहेजा जाता है।
महिलाएं लाती हैं पुरानी साड़ियां
मेघना कहती हैं कि मैं ‘सेंड योर साड़ी’ प्रोजेक्ट भी चलाती हूं, जो पिछले पांच वर्ष से चल रहा है। इसमें महिलाएं पुराने कपड़े और साड़ियों के बैग व सूटकेस लेकर मेरे पास आती हैं। साड़ियों के साथ काम करने में समय लगता है, क्योंकि प्रत्येक कपड़े के टुकड़े पर व्यक्तिगत रूप से काम करना पड़ता है। मेरा काम ताइवान, इंग्लैंड, केन्या, श्रीलंका, जर्मनी, स्वीडन, बेल्जियम और नीदरलैंड में भी शुरू हो चुका है।
मेघना कहती हैं कि मैं ‘सेंड योर साड़ी’ प्रोजेक्ट भी चलाती हूं, जो पिछले पांच वर्ष से चल रहा है। इसमें महिलाएं पुराने कपड़े और साड़ियों के बैग व सूटकेस लेकर मेरे पास आती हैं। साड़ियों के साथ काम करने में समय लगता है, क्योंकि प्रत्येक कपड़े के टुकड़े पर व्यक्तिगत रूप से काम करना पड़ता है। मेरा काम ताइवान, इंग्लैंड, केन्या, श्रीलंका, जर्मनी, स्वीडन, बेल्जियम और नीदरलैंड में भी शुरू हो चुका है।
ताकि नष्ट न हो पुराना फैब्रिक
मेघना कहती हैं कि मैं फैब्रिक के खजाने को ऐसे नष्ट नहीं होना देना चाहती थी, यह बिना इस्तेमाल के ही खराब हो रहा है। रोज बढ़ती हुई मांग के चलते भारी मात्रा में नया कपड़ा बनाया जा रहा है, लेकिन पुराने कपड़ों को अपसाइकल नहीं किया जा रहा, इसलिए उन्होंने यह काम शुरू किया।
मेघना कहती हैं कि मैं फैब्रिक के खजाने को ऐसे नष्ट नहीं होना देना चाहती थी, यह बिना इस्तेमाल के ही खराब हो रहा है। रोज बढ़ती हुई मांग के चलते भारी मात्रा में नया कपड़ा बनाया जा रहा है, लेकिन पुराने कपड़ों को अपसाइकल नहीं किया जा रहा, इसलिए उन्होंने यह काम शुरू किया।