कृष्ण जन्माष्टमी विशेष._ भगवान कृष्ण की 181 वीं पीढ़ी में है करौली के यदुवंशी-जादौन

कृष्ण जन्माष्टमी विशेष.
भगवान कृष्ण की 181 वीं पीढ़ी में है करौली के यदुवंशी-जादौन
जन्माष्टमी जैसी शुभ तिथियां धार्मिक कथाओं का केवल एक हिस्सा ही नहीं होती, वे हमारी प्राचीन स्थलाकृति और उन परिवारों द्वारा जीवित, जीवंत संस्कृति की गवाही भी देती हैं, जिनकी वंशावली अटूट रूप से जुड़ी हुई है। इसी का उदाहरण है भगवान कृष्ण और उनके वंशज के रूप में करौली के राजपरिवार सहित क्षेत्र के जादौन परिवार। भगवान कृष्ण को करौली के शासक परिवार सहित यदुवंशी जादौन का मुखिया माना जाता है।

<p>कृष्ण जन्माष्टमी विशेष._ भगवान कृष्ण की 181 वीं पीढ़ी में है करौली के यदुवंशी-जादौन</p>
कृष्ण जन्माष्टमी विशेष.
भगवान कृष्ण की 181 वीं पीढ़ी में है करौली के यदुवंशी-जादौन


जन्माष्टमी जैसी शुभ तिथियां धार्मिक पौराणिक कथाओं का केवल एक सार हिस्सा ही नहीं होती, वे हमारी प्राचीन भूमि की स्थलाकृति और उन परिवारों द्वारा जीवित, जीवंत संस्कृति की गवाही भी देती हैं, जिनकी वंशावली इन भूमि से अटूट रूप से जुड़ी हुई है। इसी का उदाहरण है भगवान कृष्ण और उनके वंशज के रूप में करौली के राजपरिवार सहित क्षेत्र के जादौन परिवार।
भगवान कृष्ण को करौली के शासक परिवार सहित यदुवंशी जादौन (शाब्दिक रूप से यदुओं के वंशज) का मुखिया माना जाता है। करौली के यदुवंशी जादौन परिवारों का भगवान श्री कृष्ण के वंशज होने का उल्लेख राजा विजय पाल के शासन समय के बीजक में भी पाया जाता है जो बयाना के प्रसिद्ध विजैमंदिर्गर्ह किले में मिले हैं । राजा विजय पाल की दसवीं पीढ़ी के वंशज राजा अर्जुन देव जी ने करौली शहर को स्थापित किया था। इस बीजक के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के 181 वे वंशज के रूप में करौली राजपरिवार सहित यदुवंशी जादौन परिवारों को माना जाता है।
भगवान कृष्ण के वंश में थे वज्र नाभ

कृष्ण के वंशज के रूप में जो ऐतिहासिक तथ्य मिलते हैं उसके अनुसार भगवान कृष्ण के परपोते के वंशज में वज्र नाभ का नाम प्रमुख रूप से सामने आता है, जो चंद्र वंश या चंद्रवंश के उप-कबीले हैं । उनको ब्रजभूमि का ऐतिहासिक शासक और भगवान कृष्ण के परपोते के वंशज माना जाता है। धार्मिक कथाओं में उल्लेख है कि यदुवंश में वज्र नाभ ही द्वारका के द्वीप साम्राज्य के विनाश से बचे।
भगवद पुराण के अनुसार, भगवान कृष्ण द्वारका में अपने वंशजों के बीच होने वाली लड़ाई से क्षुब्ध थे। भगवान तो स्पष्ट रूप से भाई-भतीजावाद से मुक्त हैं क्योंकि उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने कबीले के भीतर कलह को इस हद तक बढ़ा दिया था कि सदस्य खुद एक-दूसरे पर गिर पड़े, क्योंकि द्वारका का तैरता स्वर्ग समुद्र में डूब गया था। इस दौरान वज्र नाभ को बचा लिया गया क्योंकि वह अपने परदादा भगवान कृष्ण के बचपन के घर मथुरा यात्रा पर थे।
वज्रनाभ ने बनाया मदनमोहन जी विग्रह

वज्र नाभ को मथुरा के शासक के रूप में ताज पहनाया जाने के बाद, उन्होंने ब्रज पत्थर से सोलह मूर्तियों का निर्माण किया। इनमें से एक जन-जन के आराध्य मदन मोहन जी महाराज भी हैं। मदन मोहन जी गोविंद देव जी के साथ, और गोपीनाथ जी की त्रिमूर्ति बनाई गई, जिनको एक साथ भगवान कृष्ण का पूर्ण रूप माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वज्र नाभ ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के निर्देश पर मूर्तियों का निर्माण किया था, जिन्होंने वास्तव में स्वयं भगवान का साक्षात दर्शन किया था।
सपना देकर करौली पधारे मदनमोहनजी

मथुरा से मदन मोहन जी जिस प्रकार करौली पधारे, यह कथा भी प्रभु की अपार महिमा को दर्शाती है। औरंगज़ेब के विनाशकारी राज्य में मदन मोहन जी महाराज की प्रतिमा को जयपुर ले ज़ाया गया था।
फिर 18 वीं शताब्दी में करौली के महाराज गोपाल सिंह जी को सपने में दिव्य दृष्टि प्रदान हुई, मदन मोहन जी ने उन्हें दर्शन दिया कि वे वापस ब्रजभूमि पधारना चाहते हैं। महाराजा गोपाल सिंह जी की बहन उस समय जयपुर की महारानी थी और उन्होंने भाई का यह सपना अपने पति को बताया। जयपुर के महाराजा ने तीन एक सामान्य मूर्तियाँ तैयार की। महाराजा गोपाल सिंह जी की आँखों पर पट्टी बाँध के बोला गया की इनमे से मदन मोहन जी को पहचान लीजिए। प्रभु की कृपा से उन्होंने मदन मोहन जी की प्रतिमा को पहचान लिया और इसी तरह मदन मोहन जी बड़ी धूम धाम के साथ करौली पधारे।
श्री भागवत पुराण के दृश्य और यदुवंश के गौरवशाली इतिहास जन्माष्टमी की भावना को पूरी तरह से प्रतिबिंबित करते हैं, जहां हर साल भगवान का आशीर्वाद उनके भक्तों पर नवीनीकृत होता है।
गेस्ट राइटर- विवस्वत पाल, भंवर विलास, करौली
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