40 फीसदी नए खरीदे गए कपडे पहनते ही नहीं विकसित देशों के लोग

दुनिया का 20 फ़ीसदी पानी सिर्फ कपड़ों की रंगाई पर हो रहा खर्च] WHO के अनुसार। एक जोड़ी कपड़ा 9 महीने से ज्यादा पहनने पर 30 फीसदी कार्बन फुटप्रिंट कम कर सकते हैं। अगर नए कपड़ों की बजाय रीसायकल कपड़े खरीदें तो हम करीब 2.7 किलोग्राम ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन को रोक सकते हैं।

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फैशन इंडस्ट्री में कपड़ों के निर्माण में उपयोग होने वाले पानी, वनस्पति, केमिकल, बिजली और कार्बन फुटप्रिंट के कारण पृथ्वी को जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग जैसे खतरों का सामना करना पड़ रहा है। फैशन उद्योग के कारण यह समस्या तेजी से बढ़ रही है। एक अनुमान के मुताबिक हमारे पर्यावरण में कार्बन उत्सर्जन का 8.10 फीसदी हिस्सा सिर्फ फैशन इंडस्ट्री के कारण होता है। फैशन उद्योग पानी का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। वहीं अब ‘फास्ट फैशन’ (Fast Fashion) भी एक बड़ी समस्या बन गया है। 2050 तक जलवायु परिवर्तन के एक चौथाई कार्बन उत्सर्जन (Carbon Emmision) के लिए फैशन इंडस्ट्री ही जिम्मेदार होगी। इसलिए फैशन उद्योग पर नैतिक जिम्मेदारी भी है।

हम क्या कर सकते हैं
व्यक्तिगत रूप से हम सभी बड़ा बदलाव ला सकते हैं। थ्रेडअप जैसी कुछ वेबसाइट पर ऐसे ब्रांड्स की जानकारी उपलब्ध हैं जो पुराने और रिसाइकिल कपड़ों से बने हैं। इनमें से कई कपड़े तो २० साल पुराने रिसाइकिल कपड़ों से बने हो सकते हैं। रिसेल, रिसाइकिल और पुराने कपड़ों को पहनकर हम धरती को नष्ट होने से बचा सकते हैं।

सिर्फ एक जोड़ी पुराने कपड़े की खरीदारी से बचा सकते हैं 241 लीटर पानी

पुराने कपड़ों के फायदे
कैरेन टाउलोन ने पति के लिए एक रिसाइकिल सूट पसंद किया। 20 फीसदी डिस्काउंट के बाद यह 180 डॉलर का पड़ा। रियल-रियल साइट के अनुसार इस पुराने सूट की खरीदारी से कैरेन ने पैसों के साथ ही एक सूट बनाने में खर्च होने वाला 241 लीटर पानी और करीब 70 किमी कार चलाने जितना कार्बन फुटप्रिंट भी बचा लिया।

सिर्फ एक जोड़ी पुराने कपड़े की खरीदारी से बचा सकते हैं 241 लीटर पानी

‘फास्ट फैशन’ समस्या
आज फैशन सामाजिक प्रतिष्ठा बन गया है। फास्ट फैशन ऐसे ट्रेंडी कपड़े हैं जो सस्ते दामों में सभी की पहुंच में हों। इसलिए अब लोग 60 फीसदी ज्यादा कपड़े खरीदने लगे हैं। हर साल 35,618 अरब रुपए मूल्य के कपड़े रिसाइकल (Recycle) नहीं करने से नष्ट हो जाते हैं। जो कपड़े उपयोग में नहीं ले रहे हैं उन्हें जरुरतमंदों को दे दीजिए। कपड़ा थोड़ा बहुत कट या फट गया है तो उसे फेंकने की बजाय रफू कर लीजिए। कपड़ों की उतनी ही खरीदारी कीजिए जितनी जरुरत हो। कई ऐसे देश हैं जहां लोग खरीदे गए 40 फीसदी कपड़ों को जीवन में कभी पहनते ही नहीं हैं।

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वो कारण जो चौंकाते हैं
2020 के अंत तक फैशन उद्योग 3200 करोड़ रुपए का बाजार बनने जा रहा है। 20 फीसदी केमिकल, 5 लाख टन सिंथेटिक माइक्रोफाइबर कचरे का सालाना उत्पादन करता है। 24 फीसदी कीटनाशकों और 11 फीसदी पेस्टीसाइड के लिए भी फैशन उद्योग ही जिम्मेदार है। अमरीकन लेखक स्टीफन लेह्य की किताब ‘योर वॉटर फुटप्रिंट’ के अनुसार एक जींस और टी-शर्ट का जोड़ा बनाने में 12,900 लीटर से ज्यादा पानी खर्च होता है। यूनाइटेड नेशन्स एनवायरमेंटल प्रोग्राम के मुताबिक एक सामान्य अमरीकी का प्रतिदिन औसतन वॉटर फुटप्रिंट 8000 लीटर पानी है।

सिर्फ एक जोड़ी पुराने कपड़े की खरीदारी से बचा सकते हैं 241 लीटर पानी

दुनिया भर में इसलिए ‘प्री-ओंड’ कपड़ों की बढ़ रही है मांग
-20 % पानी सिर्फ कपड़ों को रंगने में ही खर्च हो जाता है दुनियाभर में (विश्व बैंक के अनुसार)
-30 % तक कार्बन फुटप्रिंट कम से कम 9 महीने तक कपड़े पहने से कम कर सकते हैं
-40 % खरीदे नए कपड़े विकसित देशों में लोग कभी नहीं पहनते हैं
-50 % ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि होगी 2030 तक फैशन इंडस्ट्री के कारण

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