रियो. कहते हैं जिंदगी में मां से बड़ा कुछ नहीं है। उज्बेकिस्तान की 41 वर्षीय ओकसना चुसोवितना इसकी एक मिसाल हैं। रियो ओलंपिक में जिम्नास्टिक खेल में उज्बेकिस्तान का प्रतिनिधित्व कर रहीं ओकसना ने अपने बेटे को कैंसर से बचाने के लिए घर तक बेच डाला था। मजबूरी में देश तक छोड़ दिया था और जर्मनी की खिलाड़ी बनी थीं। आज बेटा ठीक हो चुका है तो अपने मुल्क उज्बेकिस्तान की ओर से ओलंपिक में खेलने रियो पहुंची हैं।ओलंपिक में सबसे अनुभवी खिलाड़ीरियो ओलंपिक पहुंचने पर दुनिया का हर खिलाड़ी उनके जज्बे को देख हैरान है। हर कोई उनकी बातेें कर रहा है। वह सातवीं बार ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेकर जिम्नास्टिक खेल में सबसे अनुभवी खिलाड़ी बन चुकी हैं। साल 1992 में वो पहली बार ओलंपिक खेल में शामिल हुई थीं। उनके साथी प्रतिद्वंदियों का कहना है कि वो कमाल हैं। ओकसना के संघर्ष से जिंदगी में बहुत कुछ सीखा जा सकता है। बहरहाल, उन्होंने अपनी जिंदगी के संघर्षों के पुराने पन्नों पर नजरें डालीं। उन्होंने बताया कि साल 2000 में जब वह अपने पहलवान पति के साथ एशियन गेम्स में उज्बेकिस्तान की ओर से खेलने गई थीं, तब बेटे अलिशर को अचानक से खून की उल्टियां होने लगी थीं। मां ने फोन कर जानकारी दी थी। वो बताती हैं कि कुछ दिनों बाद वर्ष 2002 में डॉक्टर ने कहा उनके बेटे को कैंसर है। बता दें कि इस खिलाड़ी के पास इलाज के लिए पैसा नहीं था। डॉक्टर ने इलाज के लिए जर्मन जाने की सलाह दी थी। इसके बाद वह जर्मनी गईं। पैसा जुटाया और वहां के लिए खेली। जर्मन के खेल संघ ने पैसा दिया। अब बेटा 17 साल का है और पूरी तरह से स्वस्थ है।…जब उज्बेकिस्तान ने प्रतिबंध लगायाजिम्नास्टिक की इस खिलाड़ी ने जब जर्मनी से खेलना का फैसला किया तो उज्बेकिस्तान ने प्रतिबंध लगाया। वो बताती हैं कि ये सुन मैं सदमे में चली गई थीं क्योंकि मुझे उस देश से बहुत प्यार है जहां मैं पैदा हुईं और बढ़ी हुईं। खिलाड़ी बताती हैं कि उन्होंने उज्बेकिस्तान के अधिकारियों से प्रतिबंध न लगाने की गुहार भी लगाई थी लेकिन वो सफल नहीं हो सकीं। ओकसना के अनुसार, साल 2012 तक बेटा धीरे-धीरे ठीक होने लगा था। वो जर्मनी के माहौल में ढल गया। वहीं पढऩे लगा था। अब उसका सपना एक सफल बैंकर बनना है। खैर, इस अनुभवी खिलाड़ी का कहना है कि उसका सपना अपने देश उज्बेकिस्तान के लिए गोल्ड मेडल जीतना है।धैर्य रखा, दिमाग में हमेशा बेटा रहा इस खिलाड़ी ने बताया कि जब उनका बेटा बीमार था तो जिम्नास्टिक खेल के दौरान दिमाग को शांत रखना पड़ता था। इस खेल में यदि थोड़ा सा भी ध्यान भटकता है तो खिलाड़ी हार जाता है। वो बताती हैं कि मैं जीतने पर ही ध्यान देती थीं। हालांकि दिमाग में बीमार बेटे के इलाज से जुड़ी बातें चल रही होती थीं।