कोरोनाकाल में दुनिया ने खाद्य आपूर्ति शृंखला का बड़ा सबक सीखा। महामारी की शुरुआत में अमरीका में सिर्फ खाद्यान्न ही नहीं टॉयलेट पेपर जैसी रोजमर्रा की वस्तुओं तक की बाजारों में कमी आ गई थी। संकट के समय दक्षता से ज्यादा जरूरी बदलाव के लिए तैयार रहना है। जैसे दूध की सप्लाई जहां आम दिनों में स्कूल, संस्थानों और कैफेटेरिया की मशीनों के लिए होती थी, उसे कोरोना काल में सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए सुपर मार्केट भेज दिया गया। किसानों ने फसलों में विविधता पर जोर दिया। उन्होंने इस बात को समझा कि संकट के समय एक की जगह दस फसलें उगानी पड़ सकती हैं, भले ही इसमें श्रम अधिक लगेगा।
किसानों ने जल्द ही अपने काम का तरीका बदला। जहां पहले उनके उत्पाद होटल, रेस्टोरेंट में थोक से बेचे जाते थे, अब ये सामुदायिक समर्थित खेती (सीएसए) के आधार पर आम आदमी तक प्रॉडक्ट पहुंचाने लगे। डेयरी क्षेत्र में भी यही हुआ। जो डेयरी संचालक पाश्चुरीकृत दूध बेचते थे, वे अब थोक विक्रेताओं को कच्चा दूध बेचने के बजाय सीधे उपभोक्ताओं को तैयार उत्पाद बेचने लगे।
स्थानीय खेती की तरफ बढ़ा रुझान
महामारी के कारण लोगों का फिर से स्थानीय और वनस्पति आधारित खेती की ओर रुझान बढ़ा है। प्राकृतिक आपदा से निपटने के दौरान इसके कई फायदे सामने आए हैं। कई देशों ने गैर पारंपरिक खेती को प्रयोग के तौर पर आजमाया, लेकिन इनमें से कई अब किसान के साथ ही एक सफल उद्यमी भी बन गए हैं। तो कुछ इनसे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
स्रोत का पता होना जरूरी
इस शृंखला को समझना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि कई बार चेन इतनी बड़ी हो जाती है कि उसके मूल उत्पादक और उत्पादन की अवधि का अंदाजा नहीं लग पाता। इससे लापरवाही की गुंजाइश बढ़ जाती है और खाद्य पदार्थों से बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है। हाल ही अमरीका के कुछ शहरों में मांस, अंडों और सलाद के लैट्यूस से बीमारी फैलने के पीछे यही कारण सामने आए। इसलिए लोगों को यह पता होना चाहिए कि खाना किस स्रोत से और कब आया है।