क्रूरकाल ने छीन लिया है अपने प्यारे लालों को, कैसा काल ये बर्बादी का मंजर ये कैसा आया है। और जब अपने भी पराए बन न पास आए, न चैन से देख पाए हैं।
हे प्रभु! नाश करो इस कोरोनाकाल को, एक चिता पर लेटी दस लाशें
फफक-फफक कर दिल रोता है…दूर रहो, सब दूर रहो अपनों से भी दूर रहें। कैसा यह संकट आन पड़ा, कैसी यह पीड़ा आन पड़ी
हे परमेश्वर! अब तो बख्श दो हमको
तो भी हे पथिक! तुम ठहरो मत कभी, आओ फिर से चल उठें हम सभी
रात होती है, सवेरा भी हो जाता है, दु:ख आता है, सुख भी आता है।
फफक-फफक कर दिल रोता है…दूर रहो, सब दूर रहो अपनों से भी दूर रहें। कैसा यह संकट आन पड़ा, कैसी यह पीड़ा आन पड़ी
हे परमेश्वर! अब तो बख्श दो हमको
तो भी हे पथिक! तुम ठहरो मत कभी, आओ फिर से चल उठें हम सभी
रात होती है, सवेरा भी हो जाता है, दु:ख आता है, सुख भी आता है।
कोरोना काल की सीख भली इस धरती का संदेश यही
आओ प्रकृति की ओर लौट चलें हम, आओ प्रकृति की ओर लौट चलें हम।
रे सोच मनुज! रे सोच मनुज! क्या हमनें देखे नहीं वो दुर्दिन, भला प्राणदायी आक्सीजन के लिए
सब कुछ तो लुटा दिया तो भी रे पथिक! अब उठ चल तू फिर से उठ चल।
आओ प्रकृति की ओर लौट चलें हम, आओ प्रकृति की ओर लौट चलें हम।
रे सोच मनुज! रे सोच मनुज! क्या हमनें देखे नहीं वो दुर्दिन, भला प्राणदायी आक्सीजन के लिए
सब कुछ तो लुटा दिया तो भी रे पथिक! अब उठ चल तू फिर से उठ चल।
हे धरती के गौरव पुत्रों! इस संकट के महा समर में धैर्य को बनाएं अपना हथियार
और फिर से चलें हम प्रगति के उस पार, आओ फिर से चलें हम प्रगति के उस पार। घर में रहकर अभी हमें तो गिलोय-अदरक को पीना है
घर के बुजुर्गों और बच्चों को अपने प्यार में बांधना है।
और फिर से चलें हम प्रगति के उस पार, आओ फिर से चलें हम प्रगति के उस पार। घर में रहकर अभी हमें तो गिलोय-अदरक को पीना है
घर के बुजुर्गों और बच्चों को अपने प्यार में बांधना है।
दो गज दूरी और मास्क की पट्टी को अपनाना है, तरल पदार्थ और इम्यूनिटी को हमें बढ़ाए जाना है। जीवन रहा तो सब कर लेंगे पहले जीवन सबको बचाना है। है सुंदर सा संदेश यही आपको बस कोरोना से बचकर जीवन बचाना है।
अब तो यकीनन फिर हम चल उठेंगे, यकीनन फिर हम महक उठेंगे
यकीनन फिर हम बुलंदियों को छू लेंगे, यकीनन फिर हम जीवन की गहराइयों को छू लेंगे।।
अब तो यकीनन फिर हम चल उठेंगे, यकीनन फिर हम महक उठेंगे
यकीनन फिर हम बुलंदियों को छू लेंगे, यकीनन फिर हम जीवन की गहराइयों को छू लेंगे।।
-कवि : डॉ. शंकरलाल शास्त्री, निदेशक, राजस्थान ग्रामोत्थान एवं संस्कृत अनुसंधान संस्थान शाहपुरा, जयपुर