इस छेद का आकार बढऩे के पीछे सबसे बड़ा कारण ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन है। हालांकि 1987 में ह़ुए मॉन्ट्रियल समझौते के तहत 1996 में क्लोरोफ्लोरोकार्बन का इस्तेमाल बंद हो गया था, तब से इसमें थोड़ा सुधार दिखा है। समझौते मेें सदी के मध्य तक ओजोन छिद्र ठीक होने की संभावना जताई गई है। उधर इसी वर्ष अप्रेल में उत्तरी गोलाद्र्ध के आर्कटिक क्षेत्र में ओजोन का छेद काफी हद तक बंद हो गया।
धरती का सुरक्षा कवच
जमीन से 10-40 किलोमीटर की ऊंचाई पर मौजूद ओजोन परत पृथ्वी को अल्ट्रावायलेट विकिरण से बचाने में काफी मददगार है। पृथ्वी की ज्यादातर ओजोन वायुमंडल के ऊपरी स्तर यानी समताप मंडल में होती है। इसमें छेद से बर्फ के पिघलने की गति बढ़ सकती है और यह जीवधारियों के प्रतिरोधक प्रणाली को प्रभावित कर सकती है।
जमीन से 10-40 किलोमीटर की ऊंचाई पर मौजूद ओजोन परत पृथ्वी को अल्ट्रावायलेट विकिरण से बचाने में काफी मददगार है। पृथ्वी की ज्यादातर ओजोन वायुमंडल के ऊपरी स्तर यानी समताप मंडल में होती है। इसमें छेद से बर्फ के पिघलने की गति बढ़ सकती है और यह जीवधारियों के प्रतिरोधक प्रणाली को प्रभावित कर सकती है।