OZONE DAY : पर्यावरण ही नहीं खाद्य शृंखला भी बदल रहा ओजोन का छेद

International Day for the Preservation of the Ozone Layer
1.60 करोड़ वर्ग किलोमीटर था ओजोन का छेद 1991 में-आज यानी 16 सितंबर को ओजोन दिवस है। ये ओजोन परत की सेहत के लिए हुए मॉन्ट्रियल समझौते के मुताबिक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के संकल्प को याद दिलाता है।

<p>ओजोन परत पृथ्वी का कवच</p>
जयपुर. ओजोन परत पृथ्वी का ऐसा कवच है, जो सूर्य की घातक पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करता है। इसमें डेढ़ करोड़ वर्ग किलोमीटर से बड़ा छेद असल चिंता है। ओजोन का छिद्र दक्षिणी गोलाद्र्ध में है, इसलिए प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में भी बदलाव आ रहा है, जिससे न केवल स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि खाद्य शृंखला भी बदल रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पराबैंगनी किरणों के दुष्प्रभाव से पौधों में 6 फीसदी की उत्पादकता कम हुई है।
इस छेद का आकार बढऩे के पीछे सबसे बड़ा कारण ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन है। हालांकि 1987 में ह़ुए मॉन्ट्रियल समझौते के तहत 1996 में क्लोरोफ्लोरोकार्बन का इस्तेमाल बंद हो गया था, तब से इसमें थोड़ा सुधार दिखा है। समझौते मेें सदी के मध्य तक ओजोन छिद्र ठीक होने की संभावना जताई गई है। उधर इसी वर्ष अप्रेल में उत्तरी गोलाद्र्ध के आर्कटिक क्षेत्र में ओजोन का छेद काफी हद तक बंद हो गया।
धरती का सुरक्षा कवच
जमीन से 10-40 किलोमीटर की ऊंचाई पर मौजूद ओजोन परत पृथ्वी को अल्ट्रावायलेट विकिरण से बचाने में काफी मददगार है। पृथ्वी की ज्यादातर ओजोन वायुमंडल के ऊपरी स्तर यानी समताप मंडल में होती है। इसमें छेद से बर्फ के पिघलने की गति बढ़ सकती है और यह जीवधारियों के प्रतिरोधक प्रणाली को प्रभावित कर सकती है।
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