पदक मिलते रहे, लेकिन नहीं बढ़े मदद के हाथ

जानकी 95 फीसदी तक दृष्टिबाधित हैं। उन्होंने पैरा जूडो चैम्पियनशिप में वर्ष 2015 में गोल्ड मेडल हासिल किया था। उनकी मां कहती हैं पूरा परिवार गरीबी से बदहाल जीवन जी रहा है। जानकी को कई सम्मान मिले हैं, लेकिन उनसे सिर्फ दीवार की शोभा बढ़ सकती है, पेट नहीं भर सकता।

<p>पदक मिलते रहे, लेकिन नहीं बढ़े मदद के हाथ</p>
नेहा सेन
जबलपुर. बचपन आंखों की रोशनी के बिना बीता, वहीं गरीबी का आलम भी बेहिसाब रहा। वर्ष 2015 में जब एक साइट सेवर्स संस्था द्वारा ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाया गया तो उसमें मुझे खुद को साबित करने का मौका मिला। मुझे जूडो की ट्रेनिंग दी गई, जो मैंने मन लगाकर पूरी की। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेला। इस वर्ष खेल शिखर अलंकरण भी प्राप्त हुआ। यह कहना है कि जबलपुर के पास सिहोरा के गांव कुर्रे में रहने वाली 30 वर्षीय जानकी बाई गोंड का। जानकी 95 फीसदी तक दृष्टिबाधित हैं। उन्होंने पैरा जूडो चैम्पियनशिप में वर्ष 2015 में गोल्ड मेडल हासिल किया था। जानकी के परिवार में उनकी मां और बहन भी आंशिक दिव्यांग है। माता, पिता के साथ भाई-बहन भी मजदूरी करते हैं, जो पैसे मिलते हैं उससे चूल्हा जलता है। जानकी की मां पुनिया बाई का कहना है कि बेटी ने प्रदेश और देश का नाम रोशन किया है, लेकिन इन पांच वर्षों में हमारे जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं आया। पूरा परिवार गरीबी से बदहाल जीवन जी रहा है। वे कहती हैं कि जानकी को कई सम्मान मिले हैं, लेकिन उनसे सिर्फ दीवार की शोभा बढ़ सकती है, पेट नहीं भर सकता। सरकार को ऐसे खिलाडिय़ों को आर्थिक रूप से सशक्त करने की तरफ भी ध्यान देना चाहिए, ताकि वे भी बेहतर जीवन जिएं।
कई अवॉर्ड किए अपने नाम
जानकी अब ओलम्पिक में जाने की तैयारी में है। वर्ष 2017 में जानकी का चयन एशियन पैरा जूडो चैम्पियनशिप के लिए हुआ। इंटरनेशनल टूर्नामेंट में जानकी को जकार्ता में रजत पदक मिला था। उन्हें खेल शिखर सम्मान में विक्रम अवॉर्ड भी प्रदान किया गया।
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