भारत के ऐसे क़ानून जो सीधे हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़े हैं

क़ानून का ज्ञान ही अपराध रोकने और भ्रष्टाचार मिटाने में सहयोगी हैं।

<p>भारत के ऐसे क़ानून जो सीधे हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़े हैं</p>
क़ानून की सही और पुख्ता जानकारी ही हमें परेशानी और कानूनी कार्यवाही से बचा सकती है। साथ ही हम अपने अधिकारों से भी परिचित होते हैं। भारत में संविधान ने आम नागरिकों को अधिकार तो बहुत दिए हैं लेकिन, ज़्यादातर लोग इन कानूनी अधिकारों से अनभिज्ञ हैं। लेकिन यह भी ज़रूरी है की हम इनसे वाक़िफ़ हों। इसी को ध्यान में रखते हुए हम शेयर कर रहे हैं कुछ ज़रूरी क़ानून और उनसे जुडी महत्वपूर्ण धाराएं, जो हमारी आम ज़िंदगी से जुड़े हुए हैं। साथ ही कुछ ऐसे कानूनों की भी चर्चा करेंगे जो बहुत विचित्र और रोचक हैं। आज की इस दूसरी कड़ी में हम ऐसे ही कुछ कानूनों पर चर्चा करेंगे।

यह कहा बेंच ने
न्यायालय ने कहा कि कई मामलों में अपराधी का पता नहीं चलता या पहचान नहीं हो पाती है। जबकि पीडि़त की पहचान सार्वजनिक हो जाती है। ऐसे में पीडि़त अथवा उसके आश्रित मुआवजे के लिए राज्य या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को आवेदन दे सकते हैं। गौरतलब है कि सीआरपीसी की धारा 357 ए (2009) के प्रावधानों के तहत कोर्ट को लगे कि क्रिमिनल केस में पीडि़त मुआवजे का हकदार है, तो वह राज्य सरकार को पुनर्वास हेतु मुआवजा देने को कह सकती है।

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