’जन्मभूमि और कर्म भूमि’

राजाखेड़ा. मैं कहना चाहूंगा कि आप और हम लोग अपनी जन्मभूमि को भूल जाते हैं कर्मभूमि के चलते। हम लोग जहां पैदा होते हैं। पले बड़े होते हैं। जिस मिट्टी में खेलते हैं, जहां के वातावरण जलवायु में हमारे जीवन के सुनहरे पल होते है, जहां से हम किसी काबिल बनते हंै। हम जिस स्कूल में पढ़ कर किसी काबिलियत तक पहुंचने के लिए तैयार होते है।

<p>’जन्मभूमि और कर्म भूमि’</p>
’जन्मभूमि और कर्म भूमि’
राजाखेड़ा. मैं कहना चाहूंगा कि आप और हम लोग अपनी जन्मभूमि को भूल जाते हैं कर्मभूमि के चलते। हम लोग जहां पैदा होते हैं। पले बड़े होते हैं। जिस मिट्टी में खेलते हैं, जहां के वातावरण जलवायु में हमारे जीवन के सुनहरे पल होते है, जहां से हम किसी काबिल बनते हंै। हम जिस स्कूल में पढ़ कर किसी काबिलियत तक पहुंचने के लिए तैयार होते है। हम उन सभी जगहों को भूल जाते हैं। सिर्फ कर्म भूमि के चलते, क्योंकि हमारी कर्मभूमि हमारी जन्मभूमि से दूर होती है, तो हम सभी को ऐसा प्रयास करना चाहिए, कि हमें अपनी कर्मभूमि के चलते जन्म भूमि को नहीं भूलना चाहिए। हम जब भी अपने कर्म भूमि से वापस अपने जन्म भूमि पर जाते हैं, तो हमें उस कर्ज को चुकाने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए। जिससे हमें लगे कि हम अपनी जन्मभूमि का कर्ज उतारने के काबिल है। हमें जब भी मौका मिलता है अपनी जन्मभूमि पर जाने का तो हमें सिर्फ यह सोचकर नहीं वहां जाना चाहिए कि हमें सिर्फ छुट्टियां बितानी है। हमारा जो फर्ज है, वह भी याद रखना चाहिए, इसके लिए मैं बताना चाहूंगा अगर हम फौज में है, तो जब भी हम छुट्टियों पर आते हैं, अपनी जन्मभूमि पर तो हमें आसपास के लोगों को बच्चों को फौज में भर्ती कैसे होना है। दौड़ कैसे करनी है, शारीरिक मापदंड के लिए क्या तैयारी करनी चाहिए, यह सब बच्चों को बताना चाहिए। अगर हम डॉक्टर हैं, तो आप बता सकते हैं साफ सफाई के बारे में और भी जो भी आप सही समझते हो। टीचर हो तो बच्चों को शिक्षा संबंधी बातें जागरूकता फैलाने वाली बातें, शिक्षा का महत्व, इस तरह की बातें अपने आसपास बच्चों को बतानी चाहिए। इसका यही मतलब है कि हमसे जुड़े हुए जो लोग हैं, उनको हमारी कर्मभूमि से संबंधित जानकारी देनी चाहिए। जिससे अगर वहां के बच्चे उस क्षेत्र में जाना चाहते हैं, जिस क्षेत्र में आप हो जो आप की कर्म भूमि है, तो उनको उस क्षेत्र में जाने में असुविधा नहीं होगी। अपनी जन्मभूमि को ना भूलें, अपनी कर्मभूमि के चलते और आपने देखा भी होगा कोरोना महामारी के समय सभी लोगों को उनकी जन्मभूमि नहीं बचाया था, कर्मभूमि से सभी लोगों को जन्म भूमि की गोद में ही जाना पड़ा था, तो हमें अपनी जन्मभूमि को कभी नहीं भूलना चाहिए। हमें इसका ऋण चुकाने का प्रयास हमेशा करना चाहिए।
लेखक नरेंद्र, रक्षा सेवा में तैनात है और मोटीवेशनल स्पीकर है। यू ट्यूब पर उनके फॉलोवर्स की संख्या एक लाख पार कर चुकी है।
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