24 साल से जलवायु परिवर्तन का शाप झेल रहा है ये देश

स्केटिंग से पहचाने जाने वाले देश के लिए बड़ी चुनौती, क्योंकि… मौसम के दुष्परिणाम का कितना बड़ा खमियाजा इस देश को भुगतना पड़ रहा है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां 1997 के बाद से ही कोई आइस स्केटिंग प्रतियोगिता आयोजित नहीं हो सकी है। दो पीढ़ियों के बीच का सबसे लंबा अंतराल है जो 24 साल से जारी है। अब तो लोग उम्मीद छोड़ चुके हैं कि यह रेस शायद फिर कभी आयोजित हो पाए।

<p>24 साल से जलवायु परिवर्तन का शाप झेल रहा है ये देश</p>
जलवायु परिवर्तन का असर अब खेलों को भी प्रभावित कर रहा है। इसी की एक बानगी है नीदरलैंड का लोकप्रिय खेल आइस स्केटिंग जो बर्फ पर खेला जाता है। यह नीदरलैंड में फुटबॉल, हॉकी और वॉलीबॉल के बाद सबसे ज्यादा खेला जाने वाला खेल है लेकिन अब इस खेल पर जलवायु परिवर्तन के कारण खतरा मंडराने लगा है। नीदरलैंड में आयोजित होने वाली 217 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी की एक आइस स्केटिंग रेस का आयोजन पिछले 24 साल से नहीं हो सका है। यह बर्फ से जमी उन नहरों पर होती है जो नीदरलैंड के फ्राइसलैंड प्रांत के 11 शहरों को जोड़ती हैं। 110 साल पुरानी यह प्रतियोगिता दुनियाभर में लोकप्रिय है। इस प्रतियोगिता के आगामी आयोजन में 26 हजार से ज्यादा प्रतिभागियों, 20 लाख दर्शकों और विभिन्न देशों के करीब 3 हजार संवाददाताओं के आने का अनुमान है लेकिन यहां 1997 के बाद से ही कोई आइस स्केटिंग रेस आयोजित नहीं हो सकी है। यही वजह है कि यह इंतजार बहुत खास और ऐतिहासिक है।

डीएनए में बसती है आइस स्केटिंग
फ्राइसलैंड में जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम रोजमर्रा की जिंदगी में भी देखे जा सकते हैं। यहां चलने लायक होने पर ही बच्चे स्केटिंग सीख लेते हैं। यहां के लोगों में स्केटिंग इस कदर बस गई है कि बर्फ के इन्डोर स्टेडियम में कृत्रिम बर्फ पर बच्चे स्केटिंग का प्रशिक्षण लेते हैं। उनके लिए आइस स्केटिंग खेल से बढ़कर है। यह उनकी सांस्कृतिक विरासत और इतिहास का हिस्सा है। यह नहर 11 शहरों के लोगों को जोड़ती हैं, लेकिन अब इस रिश्ते के टूटने से सांस्कृतिक पतन का खतरा मंडराने लगा है।

इस वजह से टल रही प्रतियोगिता
वैज्ञानिकों का मानना है कि पानी और बर्फ पर आयोजित होने वाले खेल 2050 तक 50 फीसदी तक घट जाएंगे। जलवायु परिवर्तन के चलते स्कीइंग, सर्फिंग, नौकायन और वॉटर स्केटिंग जैसी गतिविधियां तेजी से घट रही हैं। तेज गर्मी की वजह से खिलाडिय़ों का प्रशिक्षण भी बेदह कम दिया जा रहा है। 1880 के बाद बीता साल पृथ्वी के सबसे गर्म साल में दर्ज किया गया है। हाल यह है कि कई आयोजन तो कृत्रिम रूप से तैयार बर्फ पर करवाए जा रहे हैं। नीदरलैंड में इस प्रतियोगिता के चेयरमैन विएब विलिंग का कहना है कि रेस के लिए कम से कम 6 इंच मोटी परत का होना जरूरी है। लेकिन बीते साल भी बर्फ की परत बमुश्किल 2 इंच थी, ऐसे में उस पर रेस आयोजित नहीं की जा सकी। दो दशकों के हालात को देखते हुए इस साल भी इसकी उम्मीद कम है।

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