बाढ़ से तबाह हो गए थे जंगल, इन्होंने लाखों पेड़ लगाकर फिर खड़ा कर दिया

-2015 में पर्यावरण के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए जादव पायेंग को पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
-अब करीब 1360 हेक्टेयर में घने जंगल हैं, जो हाथी, हिरण और बाघ सहित कई वन्यजीवों का बसेरा हो गया।

<p>असम के जादव पायेंग</p>
जयपुर. वर्ष 1979 में आई बाढ़ ने असम के जोरहाट जिले में रहने वाले जादव पायेंग के जीवन की दिशा ही बदल दी। उस वक्त 15-16 वर्ष के किशोर ने जब देखा कि बाढ़ ने इलाके की पूरी हरियाली को निगल लिया और हजारों जानवर मारे गए, सैकड़ों सांप तलछट में तड़प रहे हैं। पेड़ धराशायी हुए तो परिंदों का बसेरा छिन गया। ये देख जादव द्रवित हो गए और विचार आया कि एक दिन इंसान भी इसी तरह मर जाएंगे। यहीं से इस किशोर ने ठान लिया कि इस जंगल को फिर आबाद करेगा। शुरू में जादव ने ब्रह्मपुत्र के किनारे रेतीली पट्टियों में बांस के पौधे लगाए। ये सूखें नहीं, इसलिए पानी देने के लिए दसवीं में पढ़ाई छोड़ दी और ज्यादातर समय इन्हीं पेड़ों के पास रहने लगे। अब उनका जज्बा जुनून बन चुका था। कुछ वर्षों में ही बंजर धरती पर बांस का जंगल खड़ा हो गया। फिर दूसरे पेड़ लगाने शुरू किए। जमीन की उर्वरता बढ़ाने के लिए सड़ी-गली पत्तियां और केंचुए लाकर यहां छोड़े। अब करीब 1360 हेक्टेयर में घने जंगल हैं, जो हाथी, हिरण और बाघ सहित कई वन्यजीवों का बसेरा हो गया।
ग्रामीणों की नाराजगी झेली
जंगल गहरे हुए तो हाथी आसपास के गांवों में फसल बर्बाद करने लगे। कई बार बाघ भी आ जाते थे। ग्रामीणों ने कहा, यदि ऐसे ही रहा तो जंगल में आग लगा देंगे। इसके बाद उन्होंने जंगल में ही केले के बहुत सारे पेड़ लगाए ताकि हाथी खेतों में ना घुसें।
कई सम्मान और पुरस्कार
अब जादव देशभर में आयोजित सेमिनारों में हिस्सा लेते हैं। फ्रांस भी जा चुके हैं। जादव को 2012 में जेएनयू ने ‘फॉरेस्ट मैन’ की संज्ञा दी और 2014 में इसी नाम से उन पर डॉक्यूमेंट्री बनी, जिसे कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। 2015 में पर्यावरण के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
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