SAVE EARTH : इन आसान उपायों से बचाएं पृथ्वी और पर्यावरण, वरना सिर्फ मलाल बचेगा !

-संयुक्त राष्ट्र में पर्यावरण संरक्षण पर संबोधन दे चुके जयपुर के अब्दुल मुकीत (abdul muqeet) बता रहे हैं प्रकृति सहेजने का मंत्र
-पर्यावरण संरक्षण के उपायों को दिनचर्या का हिस्सा बना लें
-युवा घर-घर जाकर पर्यावरण का महत्व और प्रदूषण का खतरा समझाएं

<p>पौधरोपण से खिलेगी प्रकृति</p>
आपने कभी सोचा है कि पिछले दो दशकों में पर्यावरण संरक्षण क्यों इतना बड़ा मुद्दा बन गया? इसे समझने के लिए आपको अतीत में झांकना चाहिए। पहले हमारी जरूरतें छोटी और प्रकृति पर निर्भर थीं, आज हमने इनका विकल्प तो ढूंढ लिया, लेकिन इसके विनाशकारी परिणामों पर ध्यान नहीं दिया। खेती के लिए रसायन, पानी के लिए सिंगल यूज बोतलें, आराम के लिए एसी, आवागमन के लिए बेशुमार गाडिय़ां ..। विकास के इस विनाशकारी फॉर्मूले में हम जीवनदायी प्रकृति को भूल गए, जो शुद्ध जलवायु देकर हमारी सांसों को सहेजती है। पर्यावरण की सुरक्षा का दायित्व सभी का है, लेकिन युवाओं पर इसका विशेष दारोमदार है। वे बिना वक्त गंवाए इसके आज से ही सोचें, वरना देर हो जाएगी। घर-घर जाकर पर्यावरण का महत्व और प्रदूषण का खतरा समझाएं। स्कूल खुलें तो शाला प्रधान की मदद से जागरूकता का दायरा बढ़ाएं। नए दशक में इस अभियान को आंदोलन बना लें। तभी हम और हमारा पर्यावरण सुरक्षित रह सकेगा। वरना प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसे खतरे आसन्न खड़े हैं।
इन उपायों को जीवन का हिस्सा बना लें
1. बाजार जाते वक्त प्लास्टिक की जगह कपड़े या जूट के बैग का प्रयोग करें, इससे प्लास्टिक का खतरा कम होगा।
2. दफ्तर, स्कूल या सफर पर जाते वक्त प्लास्टिक की बोतल की बजाय घर से धातु की बोतल या कैंपर ले जाएं।
3. गाडिय़ों से निकलने वाला धुआं पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है, इसलिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करें।
4. सरकार प्राथमिकता के साथ पर्यावरण सुरक्षा के लिए कठोर नियम बनाए। पोस्टर-बैनर और मीडिया के जरिए जागरूता फलाए।
5. प्राकृतिक संसाधनों के अनावश्यक दोहन पर सख्ती से रोक लगाए। सख्ती के बिना पर्यावरण का मूल्य समझ नहीं आएगा।

खाने की बर्बादी रोकें
फूड वेस्ट से जहां अनाज की बर्बादी होती है, वहीं इसके लैंडफिल कचरे से मीथेन जैसी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है, जो पर्यावरण के लिए काफी खतरनाक हैं। फूड वेस्ट कम करें, यदि हुआ है तो कई तरह के ऐप्स के जरिए इसे जरूरतमंदों तक पहुंचाने का प्रयास करें। यदि वेस्ट होता ही है तो इससे खाद बनाया जा सकता है।
पिपलांत्री जैसा जज्बा जरूरी
राजस्थान के राजसमंद जिले का पीपलांत्री गांव पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बेहतर उदाहरण है, यहां कन्या के जन्म पर 51 पौधे लगाए जाते हैं। हर गांव-कस्बा, शहर इस मंंत्र को आत्मसात कर ले। हर खुशी के मौके पर पौधरोपण और उसकी सुरक्षा का संकल्प लें, प्रकृति चहक उठेगी और जीवन महक उठेगा।
कचरा जलाने से करें तौबा
लोग घरों के आसपास सफाई तो करते हैं, लेकिन उसको जलाकर पर्यावरण को बड़े घाव दे रहे हैं। कचरे में खासकर प्लास्टिक के रैपर और थैलियां को जलाने से कार्बन डाइ ऑक्साइड के अलावा मीथेन जैसी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है।
स्विटजरलैंड से सीखें
यूरोप का स्विटजरलैंड दुनिया का सबसे बड़ा ईको फे्रंडली देश है। ये अकेला देश है, जहां पर्यावरण संरक्षण को लेकर सबसे ज्यादा कानून बने हैं और इसे नुकसान पहुंचाने वालों को दंड का प्रावधान है। जानिए क्यों आगे है स्विटजरलैंड-
-रिसायकिलिंग : प्लास्टिक और अन्य कचरे को अलग रखते हैं, ताकि रिसायकिलिग आसान हो।
प्लास्टिक बैग पर चार्ज : इसलिए लोग घर से जूट या कपड़े के बैग ले जाने लगे।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट : खुद के वाहनों से अधिक मेट्रो या अन्य पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग।
-रिन्यूएबल एनर्जी : कोयले का उपयोग सीमित, पवन और सौर ऊर्जा उत्पादन में अग्रणी।
नागरिकों का जज्बा : देश के हर नागरिक में स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण का जज्बा।
(दुबई में रहने वाले जयपुर के अब्दुल मुकीत से पुष्पेश शर्मा की बातचीत)
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