डिजिटल एजुकेशन जरूरी, पर प्रिंट की कीमत पर नहीं

-कोरोना महामारी के दौरान डिजिटल एजुकेशन का महत्व बढ़ गया है। लेकिन इससे शिक्षा का मौलिक स्वरूप बिगडऩे का डर है। छात्रों से बिना संवाद और छात्र-शिक्षक के बीच भागीदारी के बिना कैसी शिक्षा?

<p>डिजिटल एजुकेशन जरूरी, पर प्रिंट की कीमत पर नहीं</p>
जयपुर. डिजिटल युग में स्कूल एजुकेशन का तेजी से कंप्यूटीकरण हो रहा है। नई शिक्षा नीति में प्रिंट की उपेक्षा कर डिजिटल शिक्षा पर जोर देने से बचना चाहिए। जापान में पिछले दिनों शिक्षा विशेषज्ञों ने इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट दोनों ही तरीकों के संतुलित समावेश से स्कूली शिक्षा को बेहतर करने का सुझाव दिया। सम्मेलन में लेखक तकाशी अतोदा ने कहा कि निश्चय ही डिजिटल शिक्षा में कुशल होना महत्वपूर्ण है, लेकिन प्रिंट संस्कृति की ठोस बुनियाद के बिना अगली पीढ़ी आगे नहीं बढ़ सकती। इसके लिए लोगों को प्रशिक्षित करना अनिवार्य है, ताकि वे डिजिटल तकनीक का कुशलता से उपयोग कर सकें।
डिजिटल शिक्षा से बच्चों की समझ पर असर
कुछ शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि छात्रों में अत्यधिक डिजिटल उपकरणों का इस्तेमाल करने से विचलन की आदत पैदा हो सकती है, जो बच्चों की समझ को नुकसान पहुंचाता है। हालंाकि ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म के कारण बच्चों में पढऩे की इच्छा और क्षमता पर असर जरूर पड़ता है। गहन विचार और भावनात्मक क्षमता विकसित करने के लिए जरूरी है कि बच्चों को प्रिंट मैटर का अनमोल अनुभव हो। डिजिटलाइजेशन मुद्रित सामग्री को पढऩे और सीखने का आधार बनना चाहिए।
पहले खामियों को दूर करना होगा
ऑनलाइन शिक्षा या डिजिटल एजुकेशन पर बहस के बीच जरूरी है कि पहले इसकी इसकी खामियों को दूर कर नियोजित ढंग से तैयारी की जाए। क्योंकि कहीं शिक्षक प्रशिक्षित नहीं हैं, तो कहीं बच्चों के पास डिजिटल डिवाइस ही नहीं। पिछले दिनों एक वेबिनार में राइट टू एजुकेशन फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अम्बरीष राय ने कहा कि डिजिटल शिक्षा से 80 फीसदी बच्चों के पढ़ाई से अलग होने का खतरा है क्योंकि सभी के पास डिजिटल डिवाइस नहीं हैं। फिर विशेषज्ञों के साथ अभिभावकों से भी विमर्श जरूरी है।
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