निगहबान : सतर्कता व वैक्सीन ही हथियार हैं

विकसित देशों से हम कम नहीं, आस्था का प्रदर्शन जरूरी नहीं

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संदीप पुरोहित
चीन के वुहान शहर से निकले वायरस ने दुनिया को खौफ के साये में जीने को मजबूर कर रखा है। अब तक लाखों जाने चली गई पर इससे छुटकारा नहीं मिला है। इसकी कोई निश्चित दवा भी तैयार नहीं हो पाई है लेकिन वैक्सीन के आने से राहत जरूर मिली है पर यह सुरक्षा की सौ फीसदी गारंटी नहीं देती है, हमे वैक्सीन लगाने के बाद भी सारे प्रॉटोकोल को फॉलो करना जरूरी है, वैक्सीन के साथ-साथ सतर्कता भी जरूरी है।
इस महामारी पर विजय प्राप्त करनी है, तो यह जन सहयोग के बिना संभव नहीं है। सरकारों की इससे लडऩे की एक सीमा है पर वे इसे खत्म नहीं कर सकती है। इस बीमारी को रोक सकते है तो सिर्फ हम और आप। हमारे काम, शादी-समारोह और आस्था जो कि अडिग है। पर क्या इसका प्रदर्शन जरूरी है? हम मंदिरों, मस्जिदों व गिरिजाघरों और सार्वजनिक कार्यक्रमों में जाए बिना भी अपनी आस्था के साथ न्याय कर सकते हैं। हमें यह ध्यान रहे कि वुहान की वायरोलोजी लैब या सी-फूड मार्केट से निकला कोरोना सुरसा के मुंह की तरह पूरी दुनिया में फैल चुका है।
हम आस्था का ढोल पीटकर जो भी धार्मिक व सामाजिक कार्यक्रम लगातार कर रहे हैं, वे सब खतरनाक साबित हुए हैं। हाल ही में कुंभ हुआ है, इसके अलावा सभी धर्मों के कुछ न कुछ कार्यक्रम होते रहे हैं। इन सभी में भीड़ जुटी है जो खतरनाक साबित हुई है। इसके अलावा पांच राज्यों के चुनावों की कहानी तो सबको मालुम है। इन सभी में भीड़ जुटी है जो खतरनाक साबित हुई है, क्या हम इन सबको कुछ समय के लिए टाल नहीं सकते। यह आस्था, अस्मिता और चुनाव तक का ही मामला नहीं है बल्कि हजारों लोगों की जान का सवाल है। यह समझदारी और सजगता का परिचय होगा अगर हम भविष्य में इन गलतियों को न दोहराएं। हमारे धर्मग्रंथ इस बात के गवाह हैं कि स्वयं श्रीकृष्ण भी पीछे हटे थे, भले ही भगवान रणछोड़ कहलाए तो किसी भी कार्यक्रम से पीछे हटने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
सामाजिक संस्थाएं अगर पीछे नहीं हटती तो हैं तो हमें इस बारे में लोगों को जागरूक करना होगा, अगर वे फिर भी नहीं मानते है तो कानून का डंडा चलाना होगा तभी हम इस महामारी का मुकाबला कर पाएंगे। यह सुरक्षा के साथ परिवार और समाज के लिए भी जरूरी है। कोरोना एक के बाद सभी को अपना शिकार बनाने को आतुर है। पूरी दुनिया को एक चेन में जकडऩे की उसकी इस क्रिया को तभी रोका जा सकता है, जब हम उस चेन को तोड़ दें। वह तभी हो सकता है। जब हम कम से कम संपर्क में रहें। खासकर जब तक वैक्सीनेशन का कार्यक्रम पूरा नहीं हो जाए तब तक अपनी यात्राएं व कार्यक्रम स्थगित रखे तो ही बेहतर रहेगा।
जान का यह ‘दुश्मन’ अगर तीसरी बार फिर आया तो इस पर पार पाना मुश्किल हो जाएगा। यह ध्यान रहे कि तीसरी लहर कमजोर तब ही होगी जब हम सतर्क रहेंगे। हम चीन के रास्ते चल नहीं सकते। इतनी सख्ती भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में संभव नहीं है। हमको एक अच्छे नागरिक का परिचय देते हुए संक्रमण के लक्षण दिखने पर खुद ही को अलग कर देना चाहिए जिससे संक्रमण किसी प्रकार दूसरे तक नहीं जाए। हम बिना किसी डर के वैक्सीन लगाए और कोरोना गाइडलाइन की पालना करें और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करें।
कोरोना के रोगियों के साथ किसी प्रकार का दुव्र्यवहार नहीं होना चाहिए। वे भी समाज का हिस्सा है। आज आवश्यकता है उनके साथ सहानुभूति रखी जाए, उनके इलाज के लिए आवश्यक सभी दवाएं, इंजेक्शन उपलब्ध कराए जाए। इलाज में आने वाली दवाओं व इंजेक्शन की कालाबाजारी को रोका जाना भी बहुत जरूरी है, इस और सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए।
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सरकार की जिम्मेदारी सभी का वैक्सीनेशन कराना भी है पर एक ही दिन में सबका वैक्सीनेशन संभव नहीं है, सबको अपनी बारी का इंतजार करना होगा। सरकार वैक्सीनेशन के अलावा ऑक्सीजन, दवाएं, मेडिकल इन्फ्रास्ट्राक्चर जैसे फ्रंट पर भी लड़ रही है। हां एक बात जरूर है कि केन्द्र व राज्य सरकारों को इसमें सियासत नहीं करके, मरीज की प्राथमिकता पर ध्यान देना चाहिए। खैर जाने दीजिए सियासत करने वाले अपना काम करते आए वैसे ही करेंगे, आरोप-प्रत्यारोप के दौर चलते आए है और चलते रहेंगे पर इसका दूसरा पहलू यह भी है कि भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में केन्द्र व राज्य सरकारों का काम विकसित देशों की सरकारों से कहीं कम नहीं रहा है। हम मुस्तैदी से लड़े है, बार-बार विवाद हो जाने से इस लड़ाई की गति धीमी हो जाती है।
आज सबसे बड़ी आवश्यकता है वैक्सीन की, उस पर एक पूरी राष्ट्रीय नीति बननी चाहिए ताकि सारा विवाद खत्म हो जाए तब तक हमे सतर्क रहना होगा तब ही सुरक्षित रह पाएंगे। इस युद्ध को जीतने के लिए हमारे पास दो ही हथियार है वैक्सीन व सतर्कता, इन दोनों की पालना करना होगी तभी हम इस युद्ध में विजयी होंगे।

Sandeep Purohit

साहित्य, सिनेमा और राजनीतिक मसलों में गहरी रूचि। खबरों की मीमांसा वाले कॉलम निगहबान के लेखक। 22 वर्षो से पत्रकारिता में सक्रिय। प्रिंट, डीजिटल और टीवी में समान अधिकार। वर्तमान में उदयपुर संस्करण के संपादक का दायित्व। पत्रिका के ही डेली न्यूज का संपादन भी किया। पत्रकारिता में डॉक्टरेट।

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