बहुत काम करने से भी घटती है आपकी उत्पादकता

भागदौड़ भरी इस जिंदगी में काम के दौरान अपने लिए कुछ देर सुस्ताने का समय निकालना बहुत मुश्किल है। मीटिंग की डैडलाइंस, टारगेट और ओवरटाइम पूरा करने के बावजूद न तो काम खत्म होता है न ही हमारी थकान। उस पर बॉस का ये तंज कि हम ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं।

<p>बहुत काम करने से भी घटती है आपकी उत्पादकता</p>
बज्जफीड में वरिष्ट कल्चर राइटर एनी हेलन पीटरसन का कहना है कि काम का अत्यधिक बोझ और हमारी आदतें हमारे फ्री समय को घटा देती हैं। इसी विषय पर उन्होंने बीते साल एक लेख ‘बर्नआउट’ लिखा था जिस पर अब वे एक किताब भी लिख रही हैं। इसी लेख के हवाले से वे बताती हैं कि हमारा प्रयास किसी तरह से इस खाली समय को उत्पादकता में बदलना है। भले ही यह सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने का समय हो या टीवी देखने का। ऐसा नहीं है कि इस विषय पर यह कोई पहला लेख है। इससे पहले भी लेखकों और चिंतकों ने लगातार हमें काम और खुद के लिए समय निकालने के बारे में सचेत किया है। लेकिन पीटरसन कुछ हालिया लेखकों में से एक हैं जिन्होंने काम और आराम करने के प्रति हमारे रुझान की आलोचना की है। इस विचारधारा के समर्थक इन लेखकों का कहना है कि बहुत ज्यादा काम भी हमारी उत्पादकता और परिणाम देने की क्षमता को प्रभावित करता है।
उनका कहना है कि वर्तमान परिवेश में हमें उत्पादकता की अवधारणा पर फिर से विचार करना चाहिए। 1929 में आई आर्थिक मंदी के दौरान उत्पादकता उद्योगों की जरुरत और कर्मचारियों की आदत बन गई। यह पूरी तरह से एक राष्ट्रीय पूर्वाग्रह में तब्दील हो गई थी क्योंकि पहले से ही सुस्त पड़ी उद्योग इकाइयोंं की गति आर्थिक मंदी के चलते और मंथर पड़ गईं। इसके बाद के सालों में काम और हमारा जीवन अधिक डिजिटल हो गया। लेकिन आज परिस्थितियां वैसी नहीं हैं। प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार डिजिटल प्लेटफॉर्म इकोनॉमी के माध्यम से एक चौथाई अमरीकी आज अतिरिक्त आय अर्जित कर रहे हैं। सरकार और कंपनियां ‘Output Per Hour’ के अनुसार हमारी उत्पादकता का अनुमान लगाती हैं। लेकिन आज स्मार्टफोन और सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स ने हमें निरंतर काम और रोजगार मुहैया कराने वाले समूहों से जोडऩे का काम किया है। इसने हमें डिजिटल डिटाक्स होने में मदद की है। वहीं अब दुनिया भर में सप्ताह में केवल चार दिन काम करने और तीन दिन अवकाश की मांग भी बढ़ रही है। प्रोडक्टिविटी एक्सपट्र्स का मानना है कि पहले की तुलना में आज के डिजिटल युग में हमारे दिमागों और शरीर को मानसिक और शारीरिक आराम की ज्यादा जरुरत है।
बहुत काम करने से भी घटती है आपकी उत्पादकता
ज्यादा काम यानी कम उत्पादकता
अपनी किताब ‘ऑफ द क्लॉक’ के लिए वक्ता और लेखिका लौरा वेंडरकम ने 900 से अधिक लोगों को सोमवार को एक टाइम डायरी रिकॉर्ड करने के लिए कहा। जिन लोगों ने ‘समय से अपना काम’ करने की बात कही उन्होंने माना कि वे अपने लक्ष्य की ओर एक कदम और बढ़ गए हैं या वे बचे हुए टाइम को अपने दोस्तों के साथ बिता सकते हैं या ऐसा काम कर सकते हैं जो उन्हें खुशी देते हैं। ऐसे लोगों ने काम के दौरान अपना मोबाइल, सोशल मीडिया स्टेटस और ईमेल कम चेक किया था। वेंडरकम ने कहा कि टीवी देखना या दोस्तों के साथ घूमना अथवा सोना समय की बर्बादी नहीं है। हम ऐसा मान लेते हैं क्योंकि यह समय के सदुपयोग का गलत उदाहरण है। लोवा कार्वर विश्वविद्यालय की मनोविज्ञान विभाग की नैन्सी सी. एन्ड्रीसेन का कहना है कि दिमागी स्तर पर यह बुनियादी सच है। एंड्रीसेन अब उच्च प्रदर्शन करने वाले एक छोटे क्रिएटिव समूह का अध्ययन कर रही हैं। कला, विज्ञान और गणित से जुड़े इन लोगों पर अध्ययन के दौररान उन्होंने पाया कि अपने दिमाग को स्वतंत्र रूप से काम करने देने पर इन लोगों की रचनात्मकता का स्तर बढ़ गया था।
बहुत काम करने से भी घटती है आपकी उत्पादकता
इसलिए जरूरी है फुर्सत
एन्ड्रीसेन का कहना है कि ध्यान लगाकर योजनाबढ़ तरीके से किए गए काम और स्वतंत्र एवं आराम करते हुए स्वाभाविक रूप से दिमाग में आने वाले विचारों में अंतर होता है। लेकिन सामान्य तौर पर फोकस्ड हो काम करना तभी संभव है जब हमारा दिमाग थका हुआ न हो। यह अराम और सुकून ही वह स्रोत है जो आपको ध्यानकेन्द्रित कर काम करने की ऊर्जा देता है।

मिलेनियल्स को पसंद नहीं
पीटरसन और उनके जैसे युवा लेखकों का कहना है कि रचनात्मक लोग दिमाग को शांत रखने और आराम देने पर बार-बार जोर देते हैं। आज कीअमरीकी श्रम शक्ति का एक बड़ा हिस्सा मिलेनियल्स की युवा पीढ़ी है। वे भी अधिक और ज्यादा कुशल काम वाली विचारधारा के कटु आलोचक हैं। कलाकार और लेखक जेनी ओडेल का तर्क है कि उत्पादकता के साथ जुड़ाव हमारी पूर्ति और विकास की भावना को प्रभावित करता है। कुछ न करना आपको तरोताजा महसूस नहंी करवाता बल्कि काम को इस तरह पूरा करना कि आपके दिमाग को बहुत ज्यादा थकान न हो हमें ज्यादा उत्पादक और रचनात्मक बनाता है, ओडेल कहती हैं। सच्ची उत्पादकता सृजन की तुलना में रखरखाव की तरह ज्यादा लग सकती है।
Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.