महिलाओं ने इस व्रत में पति दर्शन के लिए आधुनिकता का भी सहारा लिया है। करवाचौथ व्रत का क्षेत्र में धूमधाम रही। नई नवेली से लेकर लगभग सभी सुहागिन महिलाओं ने व्रत रखा। इस दौरान महिलाएं दिनभर अन्न जल ग्रहण नहीं किया। शाम को निकले चांद के साथ चलनी के ओट से पति का दीदार कर व्रत तोड़ा है। इस दिन महिलाएं अलग-अलग परंपराओं के अनुसार चांद की ओट से पति को देखकर, वहीं सुहागिनों ने पति के हाथ से पानी या जूस पीकर व्रत को तोड़ दिया है।
सोलह श्रृंगार से सजी रहीं व्रती महिलाएं
व्रती महिलाओं ने करवाचौथ के दिन सजती संवरती रही। आसपास की महिलाएं एकत्रित होकर समूह में एक-दूसरे को सजाने संवारने में जुटी रही। इस तरह श्रृंगार के इस त्यौहार में महिलाओं ने ब्यूटी पार्लर का सहारा लिया। शहर के अधिकांश ब्यूटी पार्लरों में दिनभर भीड़ लगी रही। मेंहदी लगाने से लेकर सोलह श्रृंगार करने बैठी महिलाओं ने चूड़ी-कंगन, बिंदिया के साथ बेहतर से बेहतर आभूषण, वस्त्रों से सुसज्जित रहीं और अपने पिया को लुभाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
व्रती महिलाओं ने करवाचौथ के दिन सजती संवरती रही। आसपास की महिलाएं एकत्रित होकर समूह में एक-दूसरे को सजाने संवारने में जुटी रही। इस तरह श्रृंगार के इस त्यौहार में महिलाओं ने ब्यूटी पार्लर का सहारा लिया। शहर के अधिकांश ब्यूटी पार्लरों में दिनभर भीड़ लगी रही। मेंहदी लगाने से लेकर सोलह श्रृंगार करने बैठी महिलाओं ने चूड़ी-कंगन, बिंदिया के साथ बेहतर से बेहतर आभूषण, वस्त्रों से सुसज्जित रहीं और अपने पिया को लुभाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
विधि-विधान से हुई पूजा-अर्चना
हिन्दू धर्म संस्कृति में करवाचौथ का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जिससे गृहणियां दिन भर निर्जला व्रत रखकर शाम ढलते ही चलनी के माध्यम से चांद का दीदार की हैं। करवाचौथ का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। शाम को आंगन व छतों पर पूजा के थाल सजाए गए और पूरे विधि-विधान के साथ भगवान चंद्रमा की पूजा की गई। चांद के दर्शन होते ही सुहागिनों ने पूरे विधि-विधान से चांद की पूजा कर उन्हें अघ्र्य देकर माता करवा के कथा के माध्यम से पुरोहितों से पूजा कराई।
हिन्दू धर्म संस्कृति में करवाचौथ का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जिससे गृहणियां दिन भर निर्जला व्रत रखकर शाम ढलते ही चलनी के माध्यम से चांद का दीदार की हैं। करवाचौथ का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। शाम को आंगन व छतों पर पूजा के थाल सजाए गए और पूरे विधि-विधान के साथ भगवान चंद्रमा की पूजा की गई। चांद के दर्शन होते ही सुहागिनों ने पूरे विधि-विधान से चांद की पूजा कर उन्हें अघ्र्य देकर माता करवा के कथा के माध्यम से पुरोहितों से पूजा कराई।