Corona Karmveer: इरादे मजबूत हों तो चुनौतियां भी ढेर हो जाती हैं!

Highlight

दिव्यांग चिकित्सक ने तोड़ी कोरोना की चेन
सीधी जिले में जिला प्रशासन की मुस्तैदी रंग लाई
पत्नी और बेटी से बनाई दूरी, अलग जगह पर बिताया समय

<p>Corona Karmveer: इरादे मजबूत हों तो चुनौतियां भी ढेर हो जाती हैं!</p>

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

सीधी (मध्यप्रदेश)। हौसलों की उड़ान मजबूत हो तो दिव्यांगता भी आड़े नहीं आती। इसी जज्बे के बूते एक दिव्यांग अपनी टीम के साथ कोरोना संक्रमण की कड़ी तोड़ने में जुटा और कामयाब होकर लौटा। घर पर पत्नी इंतजार करते हुए 11 साल की बेटी को दिलासा देती रही तो बेटी शिकायत करती रही कि सबके पापा की छुट्टी चल रही है तो मेरे पापा का काम इतना क्यों बढ़ गया? तमाम सवालों और परेशानियों के बावजूद यह पिता एक ही बात कहकर बच्ची को चुप कर देता कि देश जब कोरोना से जंग जीतेगा तो इस योगदान के लिए उनका नाम भी कोरोना कर्मवीर (Karmvir Awards) के रूप में लिया जाएगा। हालांकि कोरोना से जंग तो जारी है, लेकिन जिले के लोग इनको ‘कोरोना कर्मवीर’ जरूर कहने लगे हैं।

 

हम बात कर रहे हैं शारीरिक दिव्यांगता को चुनौती देकर कोरोना की चेन तोड़ने में अहम भूमिका निभाने वाले सीधी जिले के चिकित्सक पी. एलीकोंडा रेड्डी की। कोरोना महामारी के नियंत्रण में 24 घंटे तैनात रहने वाले एलीकोंडा आज भी एक सूचना पर टीम के साथ संदिग्धों के सैम्पल एकत्र कर परीक्षण के लिए भिजवाने में जुटे हैं। संक्रमितों को क्वारंटीन सेंटर भिजवा रहे हैं। डॉ. एलीकोंडा बैक्टीरिया जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के जिला सलाहकार पद पर हैं, लेकिन जिले में कोरोना संक्रमण का खतरा शुरू हुआ तो उन्हें जिला महामारी नियंत्रक के रिक्त पद पर तैनात कर दिया गया। वे जिला कलेक्टर व मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी की सौंपी गई जिम्मेदारी पर खरा भी उतरे।

 

 

घर में अलग कमरा बनाकर रहे :-

एलीकोंडा के दाहिने पैर में पोलियो है। पर, कोरोना वायरस के विरुद्ध युद्ध में उन्होंने जीत के लिए दिन-रात एक कर दिया। मूलत: आंध्र प्रदेश निवासी रेड्डी महीनों तक अपनों को समय नहीं दे पाए। घर में आने के बाद भी कई दिनों तक बेटी से दूर रहे। सुरक्षा के चलते घर में ही अलग कमरे में रहे। जब समय मिलता थोड़ा आराम कर पाते। विपरीत हालात में मिली जिम्मेदारी का निर्वहन कर वे दूसरे चिकित्सकों के लिए प्रेरणास्रोत भी बने।

 

एक फोन पर रवाना हो जाते हैं:-

जिले में जब प्रवासी श्रमिकों का अन्य प्रांतों से आगमन शुरू हुआ तो कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ गया। जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग के लिए यह समय चुनौतीपूर्ण था। खासकर अन्य प्रांतों से आने वाले संदिग्ध श्रमिकों का स्वास्थ्य परीक्षण कर सैंपल लेना या क्वारंटीन सेंटर में भर्ती करवाना। रात 12 या इसके बाद भी कंट्रोल रूम से गांवों में संदिग्ध प्रवासी श्रमिकों के आने का फोन आता है तो वे तुरंत टीम लेकर संबंधित गांव की ओर रवाना हो जाते।

 

 

भाग जाते थे प्रवासी श्रमिक:-

एलीकोंडा ने बताया, देर रात कोरोना संदिग्ध प्रवासी श्रमिक के आने की सूचना मिलती और टीम के साथ कई किलोमीटर की यात्रा कर संबंधित गांव पहुंचते तो हमारे आने की सूचना मिलने पर संबंधित प्रवासी श्रमिक घर से भाग जाते थे। उन्हें 14 दिन क्वारंटीन सेंटर में रहना गंवारा नहीं था। ऐसे में श्रमिक की तलाश के लिए पुलिस की सहायता लेनी पड़ती थी। उनके मिलने का घंटों इंतजार करना पड़ता था। सबको समझाना भी बड़ी चुनौती थी।

 

(डिस्क्लेमर : फेसबुक के साथ इस संयुक्त मुहिम में समाचार सामग्री, संपादन और प्रकाशन पर पत्रिका समूह का नियंत्रण है)

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