हम आने वाली पीढ़ी के लिए क्या छोड़कर जाएंगे पीने के लिए कोयला खदानों का पानी, ड्रग माफिया आने वाली पीढ़ी को पंगु बना देगी

वर्चुअल संवाद सेतु… शहडोल के विकास के मुद्दों पर सवाद

<p>हम आने वाली पीढ़ी के लिए क्या छोड़कर जाएंगे पीने के लिए कोयला खदानों का पानी, ड्रग माफिया आने वाली पीढ़ी को पंगु बना देगी</p>

शहडोल. पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने शहडोल के विकास के मुद्दों पर बुधवार को पाठकों और प्रबुद्धजनों से चर्चा की। वर्चुअल संवाद सेतु कार्यक्रम में उन्होने जिले के जनप्रतिनिधियोंं, शिक्षाविद् और समाजसेवियों के साथ विकास और सामाजिक मुद्दों पर विचार-विमर्श किया। प्रधान संपादक कोठारी ने शुरुआत में दगना कुप्रथा, आदिवासी परिवारों को जंगल से बेदखल और कोल माफिया और खाद्यान्न घोटाला पर चलाए पत्रिका के अभियानों का जिक्र किया। उन्होने कहा कि २०१३ में संवाद सेतु में कई समस्याएं रखी गई थी। माफिया छाए हुए थे, अवैध खनन बढ़ रहा था। इन सभी मुद्दों को लेकर पत्रिका ने अभियान चलाया और बहुत सी समस्याओं का समाधान भी हुआ। चारों तरफ माफिया राज, अवैध कार्य हो रहे, अपराधी बढ़ रहे हैं और युवा मौन है। ऐसे में राष्ट्र आगे बढऩे का सपना कैसे देखेगा। साढ़े चार करोड़ अनाज भण्डारण की कमी की वजह से सड़ गया। मोटे अनाज पैदा हो यह अफसर चाहते हैं नहीं, जबकि मोटे अनाज से किसी को बीमार होते नहीं देखा। इसके लिए अभियान चलाया जाना चाहिए। गेहूं चावल की कटौती करना चाहिए। पूरा जिला वनोपज से भरा पड़ा है लेकिन कोई उद्योग स्थापित नहीं हो सके। पास में नदी है लेकिन आजादी के ७० साल बाद भी गांव तक पानी नहीं पहुंचा पाए।

पत्रिका आदिवासियों का दर्द समझा और प्राथमिकता से उठाया
वर्चुअल संवाद सेतु कार्यक्रम में कोठारी ने कहा कि दागने जैसे कुप्रथा ने आदिवासियों को अंधविश्वास के कुचक्र में फंसा रखा था। मासूमों को दागा जा रहा था लेकिन किसी का दिल नहीं फूटा। आदिवासियों को जमीन से अफसरों ने बेदखल कर दिया किसी ने आवाज नहीं उठाई। पत्रिका ने मासूमों और आदिवासियों के दर्द को समझा और उसे प्राथमिकता से उठाया। पत्रिका का यह प्रयास रंग लाया और दगना जैसी कुप्रथा से मुक्ति के साथ आदिवासियों को वनभूमि का पट्टा भी मिला। दुखद पहलु यह है कि उन अफसरों पर कार्रवाई नहीं हुई जिन्होने आदिवासियों को बेदखल किया और मासूमों को दागते हुए देखते रहे। किसानों की बात की जाए तो अफसरों की नीतियां किसानों को भ्रमित कर रही हैं। उन्होने कहा कि आदिवासियों की जमीन बेच नहीं सकते हैं, कानून हैं, फिर दलाल लोग बेच रहे हैं। कागजों में हेरोफेरी की जा रही है। पूरा जिला घोटाले से घिरा है।


अफसर आते हैं, चले जाते हैं उन्हे माटी से क्या लेना
कोठारी ने आगे कहा युवा शक्ति सोई हुई है तो कहां से स्वतंत्रता मिलेगी। युवाओं के हाथ से माफिया रोटी छीनकर ले जा रहे हैं, डम्पिंग यार्ड की लड़ाई लंबे अर्से से चल रही है। प्रति माह १० हजार से ज्यादा मरीज नागपुर जा रहे हैं ट्रेन का मुद्दा भी कई बार उठा। सरकार सुन नहीं रही है। १०-१० करोड़ का कोयला अवैध तरीके से सप्लाई हो रहा है। युवा इसे नहीं रोकेगा तो भूखा रहेगा ही। स्वतंत्रता के लिए लडऩा होगा। आदिवासी जिले में अफसर आते हैं और चले जाते हैं उन्हे इस माटी से क्या लेना देना। जो यहां पैदा हुआ है उसे माटी के लिए संकल्प लेना होगा। उनके मन में पीड़ा उठनी चाहिए तभी विकास संभव हो पाएगा।

अफसर बुद्धिमान है समझदार नहीं है वह कुछ करना नहीं चाहते हैं। पूरा जिला करोड़ो के घोटाले से भरा पड़ा है, आदिवासियों के नाम पर करोड़ो के उधार ले लिए गए और वसूली उनसे की जा रही है। ऐसे में युवाओ का भविष्य कैसे बनेगा। युवाओं को अपने बूते पर खड़ा होना होगा, माटी के लिए संकल्प लेना होगा। लोग पराधीनता के सपने देखते हैं नौकर बनकर जीना चाहते हैं ऐसे में स्वतंत्रता कैसे आएगी। इन्वेस्टर पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं कई साल बीत जाते हैं लेकिन उद्योग स्थापित नहीं हो पाते, साल बीत जाते हैं और लीपापोती करते रहते हैं। मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज आ गए अब समझ आनी चाहिए। ट्रेनें नहीं चलेगा तो उद्योग स्थापित नहीं होंगे। क्रांति आनी चाहिए, युवा शक्ति को आगे आकर अपने अधिकारों के लिए लडऩे की आवश्यकता है। जब युवा जागृत होगा तभी विकास संभव हो पाएगा। हम आने वाली पीढ़ी के लिए क्या छोड़कर जाएंगे पीने के लिए कोयला खदानों का पानी, ड्रग माफिया आने वाली पीढ़ी को पंगु बना देगी। हम अलग नहीं है पत्रिका शहडोल लड़ाई लड़ रहा है । युवा शक्ति के जागरण का अवसर है पत्रिका उनके साथ खड़ा है अब नहीं जागे तो कब जागोगे।

ये रहे मौजूद
कार्यक्रम में पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष प्रकाश जगवानी, सोनाली गुप्ता, साधना जैन, जागृति सिंह, अंकित जेठानी, अजय विजरा, राखी शर्मा, डॉ राम टांडिया, शिरीष नंदन श्रीवास्तव, प्रखर तिवारी, प्रो अमित निगम, एमके भटनागर, ओमजी मिश्रा, मोहम्मद इकबाल, पुष्पराज सिंह, पुष्पेन्द्र सिंह, चंद्रेश द्विवेदी, मनोज यादव, सलीम खान, संतोष मिश्रा सहित कई जन मौजूद रहे।


संतोष शुक्ला ने कहा कि वनोपज के क्षेत्र में बेहतर है। आदिवासी लोगों को महुआ आय देता है लेकिन आज तक सरकार के पास महुआ प्लांटेशन, कलेक्शन के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। दशकों पुराने महुआ पेड़ है लेकिन खत्म हो रहे हैं। डेवलपमेंट और प्राकृतिक इसका कारण है। इसके लिए व्यवस्था हो।

स्टेट काउंसलर सुचिता शर्मा ने कहा कि आज भी आदिवासी अंचल की महिलाओं को पोषण और एनीमिया के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। ये मृत्यु का का कारण भी बनता है। किशोरी बालिकाओं से शुरुआत करनी चाहिए। मैदानी स्तर पर फोकस करना होगा। एनीमिया के खिलाफ अभियान चलना चाहिए।

अरविंद पांडेय ने कहा कि पत्रिका हमेशा जनसरोकार के मुद्दे उठाता आया है लेकिन यहां जनप्रतिनिधि सक्रिय नहीं हैं। अखबारों को अलग-अलग दिशा में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। उन्हे जिम्मेदारी देनी होगी।आदत बतानी होगी। जनप्रतिनिधियों की कमजोरी को बताना होगा कि कहां पीछे हैं।

 

पूर्व कृषि वैज्ञानिक भानू प्रताप सिंह ने कहा है कि जिले मे कृषि उपज हल्दी, सहजन, सीताफल बहुतायत मात्रा में पाया जाता है यह काफी पुरानी प्रजाति के पौधे हैं। महुआ और कोदौ का प्रसंस्करण छोटे-छोटे गृह उद्योग के रूप में किया जाए और इन्हे बड़े कृषक उत्पादक संगठन से जोड़ा जाए। इससे जिले के कृषक बहुतायत मात्रा में लाभान्वित होंगे। आधुनिक खेती से गौ आधारित खेती की ओर लौटना समय की मांग है।

महिला आयोग की पूर्व सदस्य अमिता चपरा ने कहा कि शहडोल नगर की जनता अभी अकेले सरफा डैम के पानी पर पूरी तरह से निर्भर है। नगर की जीवनदायनी कही जाने वाली मुडऩा नदी में एक डैम और फिल्टर प्लांट स्थापित हो जाए तो नगर की जनता को पर्याप्त मात्रा में जलापूर्ति संभव हो पाएगी। इससे नगर में होने वाली पानी की किल्लत पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी।

युवा छात्र उत्कर्ष नाथ गर्ग ने कहा कि पूरा जिला सोन नदी के इर्द-गिर्द बसा है लेकिन इसका लाभ यहां के लोगों को नहीं मिल रहा है। जड़ी बूटी पर्याप्त मात्रा में है आवश्यकता है तो रिसर्च सेंटर की। इसके अलावा यहां की आदिवासी संस्कृति व ज्ञान को समझने के लिए भी रिसर्च सेंटर स्थापित करने की आवश्यकता है।

समाज सेवी राजेश्वर उदानिया ने कहा है कि जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने की जरूरत है। मेडिकल कॉलेज में दबाव बढ़ता जा रहा है। स्वास्थ्य सुविधाओं और स्टॉफ की कमी की वजह से पर्याप्त लाभ मरीजों को नहीं मिल पा रहा है। यहां डॉक्टर, नर्स स्टाफ, पैरामेडिकल स्टॉफ बढ़ाया जाए तो जिले के साथ आस-पास के जिले के मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ मिल सकेगा।

समाजसेवी व सीए सुशील सिंघल ने कहा कि जिले में कोयले का उत्पादन तो हो रहा है लेकिन इसका लाभ यहां के लोगों को नहीं मिल पा रहा है। जिले में डम्पिंग यार्ड की सुविधा मिल जाए तो कोयला आधारित रोजगार युवाओं को मिलने लगेगा। आदिवासियों की जमीन को बेंचने के लिए जो कानून बना है उससे आदिवासियों का नुकसान हो रहा है। उन्हे आदिवासी को ही कम कीमत में जमीन बेंचनी पड़ती है जिससे उन्हे ही नुकसान होता है।

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