सेंधवा किले की दीवारों पर मिले रहस्यमयी चित्र

नगर के किले को हमेशा से ऐतिहासिक कहा जाता रहा है, उनका अर्थ जानने का प्रयास कर रहे पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञ, पूर्वी हिस्से की दीवारों का जल्द होगा अध्ययन

<p>Mysterious images found on the walls of Sendhwa Fort</p>

बड़वानी/सेंधवा. नगर के किले को हमेशा से ऐतिहासिक कहा जाता रहा है। इसके अतीत में सैकड़ों वर्षों पुरानी परंपरा और गौरवशाली इतिहास की कई कहानियां है। सेंधवा किला अपने आप में बेहद समृद्ध, मजबूत और अनेक रहस्यों को अपने में समटे हुए कई सालों से अडिग खड़ा है। किले के निर्माण से लेकर वर्तमान तक कई महत्वपूर्ण घटनाओं और किवंदतियों ने हमेशा से ही किले को रोचक बनाए रखा। वर्तमान में किले की दीवारों पर काले पठारों के बीच ऐसी आकृतियां मिली है, जो अचम्भे में दाल रही है। उनके अर्थ नहीं मिलने से रहस्य गहरा रहा है। जिनके अर्थ और उपयोगिता का अध्ययन पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञ कर रहे है। पत्रिका की पड़ताल के बाद सेंधवा के इतिहास में पहली बार रहस्ययी चित्रों का खुलासा हुआ है, जो नगर के 37 एकड़ में फैले किले का अतिमहत्वपूर्ण होना बता रहे है।
पूर्वी दीवार पर मिले तीन आकृतियों के रहस्यमयी चित्र
पत्रिका द्वारा की गई पड़ताल में किले के पूर्वी हिस्से की दीवार पर कई रहस्यमयी चित्र पत्थरों पर अंकित पाए गए हैं। पूर्वी हिस्से की दीवार बेहद मजबूत और बड़ी होने के साथ ही विशेष महत्व रखती है। इस दीवार पर 4 स्थानों पर पत्थरों के बीच ऐसी आकृतियां अंकित है जो किसी मानचित्र या निशानी को दर्शा रही है। इन आकृतियों का अर्थ क्या है। ये तो कहना मुश्किल है, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि सेंधवा किले की दीवारों पर विशेष आकृति के चित्र दिखाई दिया है। ये चित्र कब और किसने बनवाए थे। फिलहाल इसकी जानकारी नहीं है। पत्थरों पर अंकित चित्रों का अर्थ क्या है और ये क्यों बनाए गए थे। ये कहना भी मुश्किल है। हालांकि पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञ अब इन चित्रों का अर्थ खोजने का प्रयास कर रहे हैं। सेंधवा किले का इतिहास बेहद पुराना होने के साथ ही आम लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है, लेकिन अब विशेष तरह की आकृतियां मिलने के बाद हजारों लोग सेंधवा किले से जुड़े जानकारियों को जानना चाहते हैं। हजारों लोगों की पहचान सेंधवा किला प्राचीन समय में कितना महत्वपूर्ण था। इसकी पड़ताल जल्द शुरू हो सकती है।
3 दरवाजे और एक गमले की आकृति का अर्थ खोज रहे विशेषज्ञ
दक्षिण मुखी किले के पूर्वी हिस्से में बनाई गई दीवार किले की अन्य दीवारों की तरह ही बेहद सामान्य दिखती है, लेकिन जब इसे गौर से देखा गया तो विशेष तरह की आकृतियां हजारों पत्थरों के बीच उभरी हुई दिखाई दी। कई मीटर लंबी दीवार पर तीन स्थानों पर पत्थरों पर 3 दरवाजे अंकित है। वहीं एक पत्थर पर गुलदस्ता की आकृति निर्मित की गई है। सभी आकृतियों की साइज 4 स्क्वायर फीट तक है। फिलहाल आकृतियां सिर्फ पूर्वी दीवार के पत्थरों में ही दिखाई दी है, जो अभी तक आम लोगों की नजर से दूर थे। 3 दरवाजों के आकृति के तहत दो आकृतियां बिल्कुल एक जैसी है। वहीं तीसरी आकृति में 1 दरवाजे के अंदर ही कई मेहराब बनाए गए है। जिन का अर्थ अब रहस्य बन चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि दक्षिण मुखी किले के पूर्वी हिस्से में कुछ विशेष बात होगी। इसलिए इस तरफ विशेष आकृतियां बनाई गई है। हालांकि किले की अन्य दीवारों पर देवी-देवताओं की प्रतिमाएं हाथी की प्रतिमा सहित अन्य धार्मिक प्रतिमाएं बनाई गई है, लेकिन कहीं भी दरवाजे या गुलदस्ते की आकृति नहीं थी जो अब दिखाई दे रही है।
परमारकालीन है ये किला
सेंधवा निवासी प्रो. डॉ. आईए बेग ने बताया कि सेंधवा का किला परमार कालीन है। उत्तर दक्षिण की सीमाओं की रक्षा के लिए इसका निर्माण किया गया था। सेना की टुकड़ी भी यहां तैनात रहती थी। शस्त्रागार भी यहां मौजूद था। इसकी निशानियां तोपों के रूप में आज भी किले की दीवारों पर दिखाई देती हैं। देखरेख न होने के चलते किला एवं तोप अब जर्जर स्थिति में पहुंचने लगे हैं। निमाड़ की ऐतिहासिक धरोहर इतिहास के पन्नों में गुम न हो जाए, इसके लिए शासन को इस ओर गंभीरता से चिंतन करनी चाहिए। मेरे द्वारा इस संबंध में शासन को लेखों द्वारा अवगत कराया गया था।
सेंधव से बना सेंधवा
कहा जाता है, किसी समय सेंधवा घोड़े की बड़ी मंडी थी। अच्छी नस्ल के घोड़ों के लिए राजा-महाराजा यहां आते थे। घोड़े की बड़ी मंडी होने की वजह से नगर का नाम सेंधवा पड़ा। बता दें, घोड़े को सेंधव नाम से भी जाना जाता है। किले में मुख्य द्वार के पास घोड़ों को बांधने के लिए अस्तबल भी बना हुआ था, लेकिन अब इसका अस्तित्व खत्म हो चुका है।
वर्जन…
किले की दीवारों पर मिली विशेष आकृतियों की जानकारी मिली है। इनका अध्ययन किया जा रहा है। दीवार पर आकृतियों को किस कारण बनाया गया था। ये कितनी पुरानी है इसकी जानकारी अध्ययन के बाद ही दी जा सकती है।
-प्रकाश परांजपे, वरिष्ठ अधिकारी, पुरातत्व विभाग इंदौर

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