पंडित मनीष पाठकने बताया कि भगवान राधाकृष्ण के मंदिर में हर साल जन्माष्टमी का पर्व सवा महीने तक अलौकिक रूप से मनाया जाता है। पहले दिन रात 12 बजे भगवान की महाआरती बाद भगवान श्रीकृष्ण की जन्म पत्रिका का वाचन किया जाता है। सवा माह तक चलने वाले कार्यक्रम में भगवान के जन्म, विवाह से लेकर मोक्ष तक के संस्कार पूर्ण होते हैं। वही अंतिम दिन भगवान को झूले से उतारकर उनके मुख्य स्थान पर विधि-विधान से विराजित किया जाता है। इस साल मंदिर के बाहर और अंदर विशेष साज-सज्जा की जा रही है। रविवार शाम तक तैयारी पूरी हो जाएगी और सोमवार से जन्माष्टमी पर्व मनाने की शुरूआत होगी। प्रथम दिन काफी श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है।
400 साल पुराना है इतिहास
जगदीश्ररधाम मंदिर श्री राधे-कृष्ण मंदिर का इतिहास 400 साल से ज्यादा पुराना है। पंडित मनीष पाठक ने बताया कि नगर पुरोहित परिवार सात पीढिय़ों से इस मंदिर का संचालन कर रहा है। दिवंगत लक्ष्मण भट्ट, सुंदर भट्ट, गप्पा भट्ट, मदनलाल पौराणिक, गैंदालह्याल पौराणिक,जगदीशचंद्र पाठक ने अपने रहते हुए मंदिर संचालन में भूमिका निभाई थी। वर्तमान में पंडित पाठक और उनके छोटे भाई डॉ. दीपेश पाठक इस पंरपरा का निर्वहन करते हुए मंदिर की देखरेख और पूजा पाठ की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
ये है मंदिर की खासियत
पाठक के अनुसार पहली बार 1990 और दूसरी बार 2014 में मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था। मंदिर का दोबारा जीर्णोद्धार के समय स्थानीय लोगों के साथ राजस्थान के शिल्पकारों की मदद ली गई। जिस तरह से मंदिर को नए डिजाइन और सामने से पूरा कांच का बनाया उससे आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। मंदिर को नीचे से लेकर ऊपर तक वास्तु के आधार पर बनाया है। इस वजह से दूर दराज तक से श्रद्धालु मंदिर में त्योहारों पर भगवान के दर्शन और पूजा-अर्चना करने आते हैं। जगदीश्वरधाम के प्रथम तल पर राधा-कृष्ण और द्वितीय तल पर भगवान भोलेनाथ का मंदिर है। भोलेनाथ के मंदिर में प्रति सोमवार भगवान का अभिषेक जाता है। पूर्णिमा पर भगवान सुखदेव की कथा होने के साथ एकादशी पर महिलाएं भजन-कीर्तन करती हंै।
इन मुहूर्त में कर सकते हैं पूजा
पंडित मनीष पाठक के अनुसार जन्माष्टमी के दिन सुबह 6 से 7.55 तक अमृत, 9.30 से 11.04 शुभ, 12.13 से 1.04 तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा। इन मुहूर्त में लोग भगवान की पूजा अर्चना के साथ अभिषेक आदि कर सकते हैं। वही रात 12 बजे महाआरती का समय है।