एक या दो बावड़ी पास हो तो चलता है, लेकिन एक साथ सात बावड़ी हो तो अचंभित होना लाजमी हैं। वीरपुर एकमात्र ऐसा स्थान हंै जिसे सात बावड़ी एक साथ होने का एक उपहार मिला है। यहां के राधेश्याम गौंड, झझारसिंह बारेला, भगवत जयसवाल बताते हैं कि यह सभी सात बावड़ी नदी में है। कोलार डैम के निर्माण नहीं होने से पहले गर्मी के मौसम में नदी के सूखने पर पानी का संकट आ जाता था। उस समय इन्हीं सात बावडिय़ों के पानी से लोग अपनी प्यास बुझाते थे। हालांकि डैम बनने के बाद जरूर पानी समस्या दूर हो गई।
कुंड की तरह है बावड़ी
ग्रामीणों की माने तो सात बाबड़ी मटके के आकार की गोल बड़े बड़े कुंड की तरह है। दो बावड़ी 20 फीट और पांच बावड़ी 8 बॉय 10 फीट चौड़ाई वाली है। हालांकि यह बावडिय़ा कितनी गहरी है उसका आज तक पता नहीं चल पाया है। 80 वर्षीय राधेश्याम गौंड बताते हैं कि यह बावड़ी वर्षो पुरानी है और इनको देखकर लगता है कि यह मानव निर्मित नहीं होकर कुदरती है। जिस तरह से यह बावड़ी है उससे आकर्षण का केंद्र भी बनी हुई है। यही वजह है कि दूर दराज से लोग इनको देखने पहुंचते हैं। सात बाबड़ी के पास ही दाना बाबा का पुराना मंदिर है। कोई बावड़ी देखनेे आया तो वह मंदिर में दर्शन व पूजा अर्चना करने जरूर पहुंचता है।