मां पार्वती के पीहर आष्टा में सावन के एक महीने होती है दामाद भूतेश्वर की सेवा

सावन का दूसरा सोमवार : नगर में भगवान भूतेश्वर की निकली की बारात

<p>मां पार्वती के पीहर आष्टा में सावन के एक महीने होती है दामाद भूतेश्वर की सेवा</p>

सीहोर. आष्टा भगवान भोलेनाथ की ससुराल है, यहां सावन मास के पूरे महीने भगवान भोलेनाथ की दामाद की तरह खातिरदारी की जाती है। माता पार्वती के पीहार आष्टा में सावन मास के हर सोमवार को शिव बारात निकाली जाती है, जिसकी तैयारी काफी समय पहले से शुरू हो जाती है, लेकिन बीते दो साल से कोरोना संक्रमण के चलते नगर में शिव बारात औपचारिक रूप से ही निकाली जा रही है।

आष्टा में पार्वती नदी के किनारे बने भूतेश्वर मंदिर के बारे में बताते हैं कि यह काफी प्राचीन है। लंका का राजा रावण भी यहां पूजा करने आता था। वेद-शास्त्रों में भी आष्टा का जिक्र है। भूतेश्वर मंदिर के पुजारी 65 वर्षीय हेमंत गिरी ने बताया कि यह मंदिर पांडव कालीन है। सीहोर जिला मुख्यालय स्थित एतिहासिक गणेश मंदिर की वास्तुकला के अनुरूप ही भूतेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण श्रीयंत्र आकृति में किया गया है। कालांतर में भूतेश्वर मंदिर का निमा्रण मराठा शैली के अनुरूप पूर्वामुखी किया गया है। पुजारी ने बताया कि बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार पेशवाओं ने कराया। इस मंदिर स मां पार्वती की धारा सटकर बांयी तरफ बहती है। मंदिर के गर्भ गृह में मस्तक के आकार में त्वाचा रंग का अद्भुत शिवलिंग स्थापित है, जिसके वाम भाग में कुबेर देव की प्रतिमा है। यहां माता पार्वती की प्राचीन मूर्ति स्थापित है। बताते हैं कि इस मंदिर के आसपास बड़ी संख्या में पुरामहत्व की संपदा बिखरी हुई है।

अष्टवक्र ऋषियों ने आष्टा में की तपस्या
जीवनदायिनी मां पार्वती के उद्गम स्थल के कारण आष्टा नगर को भगवान भोलेनाथ की ससुराल माना जाता है। भगवान भूतेश्वर आष्टा के दामाद हैं। बताते हैं कि पार्वती नदी आष्टा नगर की सीमा में प्रवेश करते ही स्थिर हो जाती है, यहां से मां पार्वती की धार रूक-रूककर आगे बढ़ती है। मां पार्वती की इस विशेषता के कारण आष्टा नगर को पार्वती के पीहर के रूप में जाना जाता है। बताया जाता है कि हिन्दू प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक इस मंदिर में रावण आकर भगवान शिव की आराधना करता था। इसके अलवा देवतागण भी शिव आराधना के लिए यहां आते थे। अष्टवक्र जैसे ऋषियों ने यहां पर तपस्या की थी। योगी अजय पाल यौगिक क्रियाओं को देशभर में यहां से फैलाया गया था। ऋषि अष्टवक्र का माता पार्वती से मां और पुत्र जैसा पवित्र रिश्ता था। मां पार्वती का उद्गम भी आष्टा के कुछ किलोमीटर दूर बताया जाता है।

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