यह है वजह
कुछ चयनित विदेशी विश्वविद्यालय भारतीय टीकों और रूसी स्पुतनिक-वी वैक्सीन को अपने स्वास्थ्य मानकों पर खरा नहीं मान रहे हैं। ये विश्वविद्यालय इसके लिए इन टीकों की प्रभावशीलता और सुरक्षा संबंधी डेटा की कमी का हवाला दे रहे हैं। अमरीकी रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र की प्रवक्ता क्रिस्टीन नॉर्डलंड के अनुसार, दो अलग-अलग टीके लगवाने पर वायरस से सुरक्षा और प्रभावशीलता का अभी तक अध्ययन नहीं किया गया है। क्रिस्टीन ने कहा कि जिन भारतीय छात्रों ने अपने यहां कि स्वदेशी वैक्सीन लगवाइं है, उन्हें उन्हें भी दोबारा टीकाकरण के लिए 28 दिनों की अवधि का इंतजार करना होगा। गोरतलब है कि डब्ल्यूएचओ की आसेर से अनुमोदित और अमरीकी विश्वविद्यालयों द्वारा मान्य टीकों में अमरीका की ही फाइजर इंक, जॉनसन एंड जॉनसन और मॉडर्ना इंक कंपनी की बनाई वैक्सीन शामिल हैं।
हर साल 2 लाख भारतीय छात्र जाते
अमरीकी विश्वविद्यालयों में हर साल 2 लाख से अधिक भारतीय छात्र प्रवेश लेते हैं। ऐसे में टीका संबंधी इन नए नियमों से उन विश्वविद्यालयों को आर्थिक नुकसान होने की आशंका भी है। अनुमानत: हर साल इन विश्वविद्यालयों में शिक्षण शुल्क के रूप में करीब 28,38,91,72,50,000रुपए (39 बिलियन डॉलर) सिर्फ ट्यूशन फीस से ही कमाते हैं।