विज्ञान और टेक्नोलॉजी

अजब-गज़ब: अब वैज्ञानिक मिनटों में तैयार कर सकते हैं ‘दुर्लभ हीरे’

हार्ड सेल वाले शुद्ध हेक्सागोनल क्रिस्टल बनाने के लिए एनविल सेल का उपयोग कर बना रहे हीरे

जयपुरNov 27, 2020 / 04:35 pm

Mohmad Imran

अजब-गज़ब: अब वैज्ञानिक मिनटों में तैयार कर सकते हैं ‘दुर्लभ हीरे’

प्रकृति में अत्यधिक उच्च तापमान और दबाव में कार्बन परमाणुओं के रूप में एक-दूसरे से जुड़ते हुए वे क्रिस्टल के रूप में ढल जाते हैं। ये क्रिस्टल्स ही हीरे होते हैं। लेकिन प्राकृतिक रूप से कार्बन से चमकदार हीरा बनने में इन परमाणुओं को सामान्यत: अरबों वर्ष का लंबा समय लगता है। पृथ्वी की गहराई में मौजूद अत्यधिक दबाव और तापमान के कारण हीरा धीरे-धीरे बनना शुरू होता है। यह पूरी प्रक्रिया करीब 1 अरब से 3.3 अरब वर्ष के बीच होती है। यह अवधि हमारी पृथ्वी की आयु का लगभग 25 फीसदी से 75 फीसदी है। लेकिन, अब ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय विश्वविद्यालय (एएनयू) के वैज्ञानिकों ने मिनटों में हीरा बनाने की विधि विकसित कर ली है। यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने अपने सर्वाधिक शुद्ध और कठोर हेक्सागोनल हीरे बनाने की तकनीक विकसित की है।

ऐसे बना रहे मिनटों में हीरे
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में हीरे बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय वैज्ञनिकों की यह टीम ‘डायमंड एनविल सेल’ नामक एक छोटे उपकरण का उपयोग कर रही है। इस उपकरण में दो हीरे एक-दूसरे के बिल्कुल आमने-सामने लगे हुए हैं जो खास तकनीक की मदद से अत्यंत उच्च दबाव पैदा करते हैं जो एरिजोना में कैनाइन डियाब्लो में क्रेटर बनाने जितने दबाव के बराबर हैं। इस तकनीक की बदौलत अब वैज्ञानिक कमरे के तापमान में मिनटों में इन कीमती क्रिस्टल्स को बनाने में सक्षम हैं।

अजब-गज़ब: अब वैज्ञानिक मिनटों में तैयार कर सकते हैं 'दुर्लभ हीरे'

640 अफ्रीकी हाथियों जितना दबाव डाला

एएनयू और आरएमआइटी विश्वविद्यालय (ANU & RMIT Universities) के वैज्ञानिकों ने अत्यंत कठोर पत्थर बनाने के लिए एक बैले शू पर 640 अफ्रीकी हाथियों के बराबर सुपर हाई प्रेशर उत्पन्न करने के लिए डायमंड एविल सेल का इस्तेमाल किया। इससे डिवाइस के कार्बन परमाणुओं पर अप्रत्याशित प्रतिक्रिया हुई। एएनयू रिसर्च स्कूल ऑफ फिजिक्स के प्रोफेसर जोडी ब्रैडबी ने बताया कि प्राकृतिक रूप से हीरे पृथ्वी की कम से कम 150 किमी की गहराई में करीब 1000 डिग्री सेल्सियस के अत्यधिक तापमान और उच्च दबाव पर अरबों वर्षों की रासायनिक प्रक्रिया के दौरान बनते हैं। उन्होंने कहा कि इस उच्च दबाव ने शूज के कार्बन पर इतना दबाव पैदा किया कि परमाणुओं में बदल गया और अंतत: लोंसडेलाइट और सामान्य हीरे में तब्दील हो गया। लेकिन सामान्य हीरे की तुलना में लोंसडेलाइट हीरे दुर्लभ हैं क्योंकि वे आमतौर पर उन स्थानों पर बनते हैं जहां कभी कोई उल्कापिंड (metior) टकराया हो।
अजब-गज़ब: अब वैज्ञानिक मिनटों में तैयार कर सकते हैं 'दुर्लभ हीरे'

सामान्य हीरे से 58 फीसदी ज़्यादा कठोर
शोधकर्ताओं ने इस स्टडी को जर्नल स्मॉल में प्रकाशित किया है। उन्होंने नमूनों की जांच करने के लिए उन्नत इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल किया और पाया कि हीरे शत-प्रतिशत शुद्ध थे। उन्हें यह भी उम्मीद है कि इस तकनीक का उपयोग लोंसडेलाइट जैसे दुर्लभ हीरों के लिए किया जा सकेगा, जो नियमित हीरे की तुलना में 58 फीसदी तक दुर्लभ और ज्यादा कठोर होते हैं। साथ ही अब हीरों का लैब में ही उत्पादन किया जा सकता है। लोंसडेलाइट हीरों में अल्ट्रा सॉलिट मैटीरियल्स को भी काटने की क्षमता होती है। टीम की वरिष्ठ प्रोफेसर ब्रैडबाइ ने बताया कि जो हीरा उन्होंने बनाया है वह नैनो क्रिस्टलाइन फॉर्म में है इसलिए यह सामान्य हीरे से ज्यादा कठोर और अपने से कई गुना जटिल मटीरियल को काटने में सक्ष्म भी है।

अजब-गज़ब: अब वैज्ञानिक मिनटों में तैयार कर सकते हैं 'दुर्लभ हीरे'
यह टीम इससे पहले अत्यधिक तापमान का उपयोग कर इससे पहले लैब में लोंसडेलाइट हीरे बना चुकी है। हालांकि यह नया परीक्षण यह दिखाने के लिए था कि कमरे जितने तापमान में भी हीरा विकसित किया जा सकता है। हालांकिक इन हीरों का इस्तेमाल गहनों में नहीं किया जा सकेगा बल्कि इनका उपयोग खनन के दौरान अत्यधिक कठोर चट्टानों को काटने में किया जाएगा।

Home / Science & Technology / अजब-गज़ब: अब वैज्ञानिक मिनटों में तैयार कर सकते हैं ‘दुर्लभ हीरे’

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.