जर्मनी Germany के फ्रीबर्ग यूनिवर्सिटी university के शोधार्थी एलिजाबेथ हर्नस्टीन ने ट्रांसक्रेनियल डायरेक्ट करेंट स्टिम्यूलेशन (टीडीसीएस) ने टेक्नोलॉजी tecnology के जरिए ऐसा कर दिखाया है। जिसमें टीडीसीएस सिर से इलेक्ट्रोड लगाकर दिमाग को बिजली के हल्के झटके दिए जाते हैं।
इस बारे में न्यूरो साइंस science का मानना है कि पॉजिटिन इलेक्ट्रोड (एनोड) करंट की वजह से दिमाग की कोशिकाएं कड़ी मेहनत करती हैं, जबकि निगेटिव इलेक्ट्रोड (कैथोड) का उल्टा असर होता है।
ब्रेन brain स्टिम्यूलेशन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, “22 मिनट तक टीडीसीएस के बाद यूनिवर्सिटी के छात्रों ने तीन स्टैंडर्ड टेस्ट दिए जिनमें उन्हें अच्छे परिणाम मिले हैं। मनोवैज्ञानिक क्रिएटिविटी को मापने के लिए इस टेस्ट का उपयोग करते हैं।
स्टूडेंट्स के इस अच्छे प्रदर्शन के पीछे की वजह यह थी कि जब उनके दिमाग के दाएं हिस्से के ऊपर इनफीरियर फ्रंटल जाइरस (आईएफजी) नाम का एनोड लगाया गया था। जो उस हिस्से की समस्याएं सुलझाने और तात्कालिक प्रतिक्रिया से संबंधित था। वहीं उनके बाएं तरफ आईएफजी का कैथोड फिट किया गया। जिससे दिमाग के दाएं हिस्से की गति विधि बढ़ सके और बाएं हिस्से की गति विधि को कम करने का प्रयास किया जा सके।
रिसर्च ग्रुप के सदस्य क्रिस्टोफ निसेन के अनुसार- जिन छात्रों को टीडीसीएस दिया गया, उन्होंने 10 से 20% अच्छे परिणाम दिए। जिन्हें बनावटी करंट दिया गया था, उनका प्रदर्शन कम रहा। जब इलेक्ट्रोड की स्थिति उल्टी कर दी गई तब क्रिएटिविटी में गिरावट देखी गई। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि टीडीसीएस दिमाग पर कैसे प्रभाव डालता है।