नॉलेज: क्या इंसान अब भी विकसित हो रहा है? वैज्ञानिक तो यही मानते हैं

मानव विकास के एक लंबे सफर के बाद हम आज शारीरिक और बुद्धि के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच चुके हैं। लेकिन क्या हम भी विकसित हो रहे हैं? या हम अपने पूर्ण बदलाव को प्राप्त कर चुके हैं? लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि मानव अब भी विकसित हो रहे हैं।

<p>नॉलेज: क्या इंसान अब भी विकसित हो रहा है? वैज्ञानिक मानते हैं हां हम अब भी विकसित हो रहे हैं</p>
प्रकृति की सबसे उन्नत प्रजाति के रूप में मनुष्य पृथ्वी के लगभग हर कोने में आबाद है। विकासक्रम की लंबी यात्रा में हमने ऐसी तकनीकें और संस्कृति विकसित की हैं जिसने इस पूरी दुनिया को हमारे अनुरूप ढाल दिया है। ‘प्रकृति हमेशा श्रेष्ठतम को ही चुनती है’ (Natural Selection) या ‘सर्वाइवल ऑफ द फिट्टेस्ट’ (Survival of The Fittest) का सिद्धांत हम पर आदि मानव युग की सच्चाई थी लेकिन क्या यह सिद्धांत आज भी मनुष्यों पर लागू होता है। क्या इंसान अब भी विकसित हो रहे हैं? इस सवाल का 12 विशेषज्ञों ने अपने अनुभवों के आधार पर जवाब दिया है। इन सभी विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें कोई शक नहीं कि इंसान अब भी विकसित हो रहे हैं। हालांकि इन वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि इस सवाल से पहले हमें यह समझना होगा कि वास्तव में बदलाव है क्या और विकास का मानव के संदर्भ में क्या मतलब है?

एवोल्यूशन प्रकृति के चयन पर निर्भर नहीं
मानव के संदर्भ में विकास का मतलब है परिवर्तन जिसे अंग्रेजी में एवोल्यूशन (Human Evolution) कहते हैं। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि यह परिवर्तन हमेशा ‘नेचुरल सिलेक्शन'(Natural Selection) यानी प्राकृतिक चयन पर निर्भर नहीं करता। एवोल्यूशन को अक्सर ‘सर्वाइवल ऑफ द फिट्टेस्ट’ और ‘नेचुरल सिलेक्शन’ के साथ बिना किसी भेद के उपयोग किया जाता है। लेकिन वास्तव में ये दोनों सिद्धांत एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि एवोल्यूशन का अर्थ है समय के साथ जनसंख्या का क्रमिक विकास। जबकि नेचुरल सिलेक्शन वह साधन (मैकेनिज्म) है जो इस विकास को संभव बना सकता है। आदिमानव (Stoneage human) मैमथ (Mammoth) से बचने के लिए तेज दौड़ सकते थे और वे तेजी से अपनी आबादी भी बढ़ा सकते थे, यह है प्राकृतिक चयन। जबकि उसी दौरान एक प्रजाति के रूप में पूरी मानव जाति तेजी से दौड़ पाने में सक्षम बन रही थी यह विकास है।

बदलाव प्राकृतिक चयन के बिना भी संभव
ये बातें आदिम युग के मानवों के लिए तो ठीक थीं लेकिन आज के मनुष्य को ऐसा करने की जरुरत नहीं। आज हमारे पास साधन हैं, दवाएं हैं भोजन जुटाने के लिए हमें भटकना नहीं पड़ता। दरअसल, नेचुरल सिलेक्शन के लिए ‘चयन के दबाव’ की भी जरुरत होती है। जैसे मैमथ के पांव तले रौंदे जाने के डर ने आदिमानवों को तेज दौडऩे की क्षमता विकसित करने के लिए दबाव बनाया। अगर हमारे पास ‘चयन का दबाव’ (Selection Pressure) नहीं होगा तो क्या हम विकसित होना बंद कर देंगे? लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा नहीं है और बदलाव दूसरे तरीकों से निरंतर जारी रहता है।

जीन में बदलाव भी एवोल्यूशन है
इलिनोइस विश्वविद्यालय के मानव विज्ञानी प्रोफेसर स्टेनली एम्ब्रोस का कहना है कि समय के साथ जीन या जीन वेरिएंट के अनुपात में हुए किसी परिवर्तन को भी विकास माना जाता है। वेरिएंट कार्यात्मक रूप से समतुल्य हो सकता है, इसलिए विकास स्वचालित रूप से ‘सुधार’ के बराबर नहीं होता है। जहां कुछ जीन प्राकृतिक चयन से प्रभावित होते हैं वहीं हमारे डीएनए में हुए अन्य परिवर्तनों का हमारे ऊपर कोई स्पष्ट प्रभाव नजर नहीं आता। कई बार जेनेटिक ड्रिफ्ट के कारण भी बदलाव होते हैं। जेनेटिक ड्रिफ्ट को किसी भी चयन दबाव की आवश्यकता नहीं है और यह आज भी हो रहा है।

मानव में अब भी जारी है नेचुरल सिलेक्शन
भले ही तकनीक और प्रौद्योगिकी से हमने अपने लिए चीजों को आसान बना लिया है लेकिन चारों ओर अब भी चयन दबाव मौजूद हैं। जिसका मतलब है कि नेचुरल सिलेक्शन अभी भी हो रहा है। उदाहरण के लिए अगर सभी स्तनधारियों की तरह, मनुष्य स्तनपान बंद करने पर दूध को पचाने की क्षमता खो देता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम लैक्टेज नामक एंजाइम बनाना बंद कर देते हैं। ऐसे ही कुछ देशों की आबादी ने ‘लैक्टेज प्रतिरोध’ () विकसित कर लिया है जिसका अर्थ है कि इन देशों के लोग अपने पूरे जीवनकाल में लैक्टेज बनाते हैं। यह भी प्राकृतिक चयन का एक उदाहरण है जहां हमने वास्तव में चयन दबाव को खुद बनाया है। क्योंकि हमने दूध पीना शुरू कर दिया है इसलिए हमने इसे पचाने की क्षमता भी विकसित कर ली है। बर्मिंघम विश्वविद्यालय के डॉ. बेंजामिन हंट कहते हैं कि हमारे आसपास हमेशा चयनात्मक दबाव होते हैं, यहां तक कि हम खुद भी बनाते हैं। हमारे तकनीकी और सांस्कृतिक परिवर्तन हमारे पर्यावरण के भीतर चयन दबाव की ताकत और संरचना को बदल देते हैं। लेकिन चयन दबाव अभी भी मौजूद हैं।

बदलाव को रोका नहीं जा सकता
हमारे आस-पास का पर्यावरण लगातार बदल रहा है और नेचुरल सिलेक्शन भी जारी है। यहां तक कि अगर हमारा पर्यावरण हमारे लिए बिल्कुल ‘सही’ है, तो भी हम विकसित होते रहेंगे। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के विकास और अनुवांशिकी के विशेषज्ञ डॉ. एल्विन स्केली का कहना है कि जब तक मानव प्रजनन में अनियमितता और आनुवांशिक उत्परिवर्तन (Genetic Mutation) मौजूद रहेगा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक बदलाव जारी रहेगा। जिसका अर्थ है कि एवोल्यूशन की यह प्रक्रिया कभी नहीं रुकेगी।

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