रॉयल बॉटैनिकल गार्डन, केव और स्टॉकहोम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि यह पहली बार है जब वैज्ञानिकों ने एक वैश्विक अवलोकन कर इस तेजी से विलुप्त हो रही प्रजातियों के बारे में पता लगाया है। अनुसंधान दुनिया पर मनुष्यों के प्रभाव के बारे में गंभीर अध्ययन की एक बानगी भर है। वैज्ञानिकों का कहना है कि महाद्वीपों, उष्णकटिबंधीय एवं भूमध्य क्षेत्रों में जहां मानव आबादी ज्यादा है वहां इन पौधों और जीव-जंतुओं के नष्ट होने की दर सर्वाधिक थी। अध्ययन में कहा गया है कि पौधों के विलुप्त होने की दर में वृद्धि एक छोटे भौगोलिक क्षेत्र में स्थित प्रजातियों के प्राकृतिक आवास को पहुंची हानि हो सकती है। आइए जानते हैं कि शोधकर्ताओं ने और क्या-क्या कहा रिपोर्ट में:
-1000 गुना तेज है जीव-जंतुओं की दर विलुप्त होने की
-571 प्रकार के पेड़-पौधों की प्रजातियां विलुप्त
-500 गुना ज्यादा तेज है विलुप्त होने की यह दर
-430 प्रजातियों को वैज्ञानिकों ने पुन: खोजा था
-250 सालों में 1 हजार से ज्यादा जीव-जंतुओं की प्रजातियां भी लुप्त
-90 फीसदी पर हमेशा के लिए विलुप्त होने का खतरा इनमें से
-80 लाख प्रजातियां मौजूद हैं पृथ्वी पर जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की
-10 लाख पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा इनमें से
-01 करोड़ साल में विलुप्त होने की यह वैश्विक दर सैकड़ों गुना अधिक है
-571 प्रकार के पेड़-पौधों की प्रजातियां विलुप्त
-500 गुना ज्यादा तेज है विलुप्त होने की यह दर
-430 प्रजातियों को वैज्ञानिकों ने पुन: खोजा था
-250 सालों में 1 हजार से ज्यादा जीव-जंतुओं की प्रजातियां भी लुप्त
-90 फीसदी पर हमेशा के लिए विलुप्त होने का खतरा इनमें से
-80 लाख प्रजातियां मौजूद हैं पृथ्वी पर जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की
-10 लाख पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा इनमें से
-01 करोड़ साल में विलुप्त होने की यह वैश्विक दर सैकड़ों गुना अधिक है