आश्विन कृष्ण अष्टमी: धन धान्य की वृद्धि के लिए इस दिन किया जाता है महालक्ष्मी व्रत

आश्विन कृष्ण अष्टमी की कथा व पूजा विधि

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हिंदू संस्कृति में देवी मां लक्ष्मी को धन-धान्य की देवी माना गया है। ऐसे में हर कोई देवी मां का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है। जिसके तहत भक्त समय समय पर लक्ष्मी पूजन व अन्य धार्मिक कर्म करते रहते हैं। ऐसा ही एक व्रत माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए आश्विन कृष्ण अष्टमी को भी रखा जाता है।

दरअसल जानकारों के अनुसार यह व्रत राधा-अष्टमी से शुरु होकर आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को समाप्त होता है। इस व्रत को 16 दिन तक रखना चाहिए।

आश्विन कृष्ण में महालक्ष्मी व्रत तब किया जाता है जब चंद्रमा अष्टमी तिथि में उदय हो। इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा करनी चाहिए।

आश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन सबसे पहले लक्ष्मी जी कीर प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराने के पश्चात उन्हें नए वस्त्र पहनाकर भोग लगाना चाहिए। साथ ही आचमन कराकर फूल, धूप, दीप, चंदन आदि से आरती करें और भोग को आरती के बाद बांट दें।

इस दिन पूरे दिन व्रत रखकर, रात्रि को चंद्रमा के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर व पूजन के पश्चात भोजन करना चाहिए। माना जाता है कि इस व्रत को करने से धन-धान्य की वृद्धि होती है और सुख मिलता है।

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आश्विन कृष्ण अष्टमी की कथा
प्राचीनकाल में किसी गांव में एक विद्वान, गरीब ब्राह्मण रहता था। वह हर रोज जंगल में एक पुराने विष्णु मंदिर में पूजा करने जाया करता था। एक दिन उसकी पूजा को देखकर भगवान विष्णु उस पर प्रसन्न हो गए और बोले हे ब्राह्मण देवता! मैं आपकी सेवा-भक्ति को देखकर बहुत प्रसन्न हूं।

आज में आप पर कुछ उपकार करने की इच्छा रखता हूं। तुम एक निर्धन ब्राह्मण हो, मेरे मंदिर के सामने एक औरत कंडे थापने आती है। सुबह आकर तुम उसकी छोटी अंगुली पकडत्र लेना और अपने घर में रहने का आग्रह करना। जब तक वह तुम्हारे घर में निवास करने का वचन न दे तब तक उसकी अंगुली को मत छोड़ना। वह मेरी स्त्री लक्ष्मी है,उसके तुम्हारे घर में आते ही सारे दुख दूर हो जाएंगे।

इतना कहकर भगवान अंतर्धान हो गए और वह ब्राह्मण अपने घर चला गया। इसके बाद दूसरे दिन ब्राह्मण ने वैसा ही किया जैसा भगवान विष्णु ने उससे कहा था।

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यानि दूसरे दिन वह सुबह चार बजे से ही मंदिर के सामने जाकर बैठ गया। जब लक्ष्मीजी कंडा थापने आईं तो उस ब्राह्मण ने उनको पकड़ लिया। ऐसे में लक्ष्मी जी इस बात से परेशान हो गईं कि आज मेरा आंचल किसने पकड़ लिया? उन्होंने देखा किएक ब्राह्मण उनका आंचल पकड़े खड़ा है।

उन्होंने ब्राह्मण से आंचल छोड़ने को कहा, लेकिन ब्राह्मण ने नहीं छोड़ा। लक्ष्मी जी बहुत विनय कर ब्राह्मण को समझाने लगीं। इस पर ब्राह्मण बोला,आप मुझसे वादा करें कि मैं तेरे घर में निवास करूंगी,तब छोड़ूंगा।

लक्ष्मी जी नारायण की रचनाको समझकर बोलीं, ‘हे ब्राह्मण! तुम कल मेरा महालक्ष्मी का व्रत सारे दिन रखना और रात्रि को सपरिवार चंद्रमा की पूजा करके उत्तर दिशा की ओर मुख करके मुझे पुकारना। तब मैं तेरे घर अवश्य आउंगी।’

अगले दिन ब्राह्मण ने वैसा ही किया। जब रात्रि को चंद्रमा की पूजा करके उसने उत्तर दिशा में आवाज लगाई तो लक्ष्मी जी पधारी और उसके साथ भोजन करके उसी के घर में निवास करने लगीं।

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